उत्तराखंड: बदरीनाथ वन प्रभाग के जंगल सुलगे
चमोली जिले में बदरीनाथ वन प्रभाग की घाट रेंज में पुनियार के जंगल 12 फरवरी की रात से धधक रहे हैं, लेकिन आग पर काबू पाने के अब तक कोई प्रयास नहीं हुए हैं।
गोपेश्वर, [जेएनएन]: अग्निकाल (फायर सीजन) शुरू होने से पहले ही उत्तराखंड में जंगल सुलगने लगे हैं। चमोली जिले में बदरीनाथ वन प्रभाग और नंदा देवी बायोस्फीयर रिजर्व के जंगल दो दिन से सुलग रहे हैं, मगर आग बुझाने के प्रयास नहीं किए जा रहे। परिणामस्वरूप, इस हिमालयी क्षेत्र के जंगलों में वन संपदा को क्षति पहुंच रही है। उस पर कर्मचारियों के चुनाव ड्यूटी पर रहने से महकमे की दुश्वारियां बढ़ गई हैं। वे पशोपेश में हैं कि आग बुझाने भेजें तो भेजें किसे। हालांकि, दावा किया जा रहा कि आग पर काबू पाने के लिए कवायद चल रही है।
चमोली जिले में बदरीनाथ वन प्रभाग की घाट रेंज में पुनियार के जंगल 12 फरवरी की रात से धधक रहे हैं, लेकिन आग पर काबू पाने के अब तक कोई प्रयास नहीं हुए हैं। वहीं, जोशीमठ के निकट नंदा देवी बायोस्फीयर रिजर्व में हेलंग के जंगलों में भी आग लगी हुई है और वन संपदा धू-धूकर जल रही है। इससे पहले एक फरवरी से अब तक चमोली रेंज में भी तीन बार जंगल सुलग चुके हैं।
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नंदादेवी बायोस्फीयर रिजर्व के डीएफओ चंद्रशेखर ने बताया कि हेलंग के पास खड़ी चट्टान वाली पहाड़ी पर आग लगी है। संबंधित रेंजर को आग पर काबू पाने के लिए कदम उठाने के निर्देश दिए गए हैं। हालांकि, उन्होंने लाचारगी भी बताई कि अधिकांश स्टाफ चुनाव ड्यूटी पर है। वह खुद भी इसमें लगे हैं। साथ ही लोगों से अपील की कि वे आग बुझाने में वनकर्मियों को सहयोग दें।
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उधर, बदरीनाथ वन प्रभाग के डीएफओ एनएन पांडेय ने बताया कि घाट क्षेत्र में कंट्रोल बर्निंग कराई गई थी। इससे यदि क्षेत्र में आग फैली है तो उसे बुझाने के प्रयास किए जाएंगे। इस सिलसिले में संबंधित कार्मिकों को निर्देशित किया जा रहा है।
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फायर सीजन यानी चुनौतीपूर्ण वक्त
71 फीसद वन भूभाग वाले उत्तराखंड में 15 फरवरी से 15 तक की अवधि को फायर सीजन कहा जाता है। वजह ये कि इसी दरम्यान जंगलों में सबसे अधिक आग लगती है। पिछले साल तो पूरे सीजनभर जंगल सुलगते रहे। विकराल हुई जंगल की आग गांव-घरों की देहरी तक पहुंच गई थी।
इसे देखते हुए आग बुझाने को सेना के हेलीकॉप्टरों की मदद भी ली गई। मानसून आने के बाद ही विभाग को राहत मिल पाई। बावजूद इसके वन महकमे ने इससे निबटने को ठोस कार्ययोजना तैयार नहीं की। चमोली जिले में सुलगते जंगल तो यही बयां कर रहे हैं।
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