केदारनाथ त्रासदी ने ऐसा झकझोरा की बनारस से बदरीनाथ पैदल पहुंचे देवाशीष
वारणासी के रहने वाले देवाशीष दुबे को केदारनाथ त्रासदी ने इस कदर झकझोर दिया कि मृतकों की आत्मा की शांति के लिए वह पैदल ही बदरीनाथ और केदारनाथ की यात्रा पर निकल पड़े।
बदरीनाथ (चमोली), [जेएनएन]: चार वर्ष पहले केदारनाथ त्रासदी ने वाराणसी के एक युवक को इस कदर झकझोर दिया कि मृतकों की आत्मा की शांति के लिए वह पैदल ही बदरीनाथ और केदारनाथ की यात्रा पर निकल पड़ा। केदारनाथ में उसने काशी से लाए गंगा जल का छिड़काव किया तो बदरीनाथ में ब्रह्मकपाल पर पिंडदान।
गाय घाट वारणासी के रहने वाले 28 वर्षीय देवाशीष दुबे संपूर्णानंद विश्वविद्यालय से शास्त्री के डिग्री धारक हैं। पुरोहिताई करने वाले देवाशीष के पिता का 20 साल पहले स्वर्गवास हो गया था। घर पर केवल मां हैं। शनिवार को बदरीनाथ पहुंचे देवाशीष कहते हैं 'हालांकि केदारनाथ त्रासदी से मेरा या मेरे परिवार का सीधा संबंध नहीं है, लेकिन प्रभावित परिवारों की पीड़ा मुझे बेचैन किए रहती थी।'
देवाशीष बताते हैं कि यह विडंबना ही है कि अपनों को खो चुके कई परिवारों को तो मृत शरीर तक नहीं मिले। ऐसे में यह सवाल उन्हें बार-बार मथता था कि उन आत्माओं की शांति के लिए शास्त्र सम्मत विधि से कुछ करना चाहिए। शास्त्रों का अध्ययन कर बनारस के कई प्रकांड पंडितों के साथ विचार-विमर्श के दौरान उन्हें पता चला कि काशी में गंगा उत्तरवाहिनी है।
इसीलिए शास्त्रों के अनुसार काशी को मोक्षद्वार भी कहा गया है। देवाशीष के अनुसार उन्होंने तय किया कि काशी के गंगाजल से केदारनाथ में अभिषेक कर वहां इसका छिड़काव करेंगे ताकि मृतकों की आत्मा को शांति मिल सके। शास्त्र सम्मत विधि के तहत इसके लिए पैदल यात्रा आवश्यक थी।
उन्होंने बताया कि 28 अप्रैल को अक्षय तृतीया पर बिंदुमाधव मंदिर में पूजा-अर्चना के बाद गंगा से जल भर यात्रा पर निकल पड़े। देवाशीष कहते हैं अब तक वह करीब एक हजार किलोमीटर से ज्यादा की दूरी तय कर चुके हैं। वह प्रतिदिन सुबह चार बजे यात्रा शुरू करते हैं और हर रोज करीब 35 से 40 किलोमीटर चलते हैं। इस दौरान वह किसी आश्रम अथवा मंदिर में रात्रि विश्राम करते हैं।
हालांकि यात्रा की शुरुआत उन्होंने नंगे पांव की, लेकिन पांव में छाले पडऩे के कारण ऋषिकेश में चिकित्सक को दिखाना पड़ा। चिकित्सक की सलाह पर उन्होंने मोटे जुराब और सैंडिल पहनी। वह कहते हैं अब पैदल ही बनारस पहुंचना है। देवाशीष कहते हैं उत्तराखंड देवभूमि है और तीर्थयात्रा में कष्ट व त्याग तो करने ही पड़ते हैं।
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