Rebirth: भूटान के राजकुमार को सारनाथ में पूर्वजन्म के जुड़ाव की तलाश
भूटान का राजकुमार जिग्मे जिंगतेन वांगचुक को 824 वर्ष पूर्व के शिक्षाविद वेरोचना का पुनर्जन्म माना जाता है। पूर्वजन्म में जिग्मे का सारनाथ से गहरा नाता रहा।
वाराणसी (जेएनएन)। करीब तीन वर्ष का वह मासूम बच्चा मंद-मंद मुस्कुरा रहा था मानो कोई अधूरी इच्छा पूरी हो गई हो। सारनाथ के पुरातात्विक खंडहर परिसर, चौखंडी स्तूप, धमेख स्तूप को कभी गंभीरता से देखता, कभी हंस देता। भगवान बुद्ध की प्रतिमा को देखते ही उसके शांत मुखमंडल पर खुशी की लकीरें खिंच गईं। यह कोई आम बच्चा नहीं था। यह था भूटान का राजकुमार जिग्मे जिंगतेन वांगचुक। जिग्मे को भूटान में 824 वर्ष पूर्व शिक्षाविद वेरोचना का पुनर्जन्म माना जाता है। भूटान में पुनर्जन्म को लेकर मान्यताएं बहुत मजबूत हैं और यह भी माना जाता है कि पूर्वजन्म में जिग्मे का सारनाथ से गहरा नाता रहा।
भूटान राजघराना के बच्चे को आई पूर्वजन्म की याद, कहा- नालंदा विवि का था छात्र
बहरहाल, राजकुमार जिग्मे अपनी नानी और भूटान की महारानी आशी दोरजी वांग्मो वांगचुक, उनकी पुत्री आशी सोनम देक्षेन वांगचुक व राजपरिवार के जिग्से वांगचुक के साथ शुक्रवार को सारनाथ में था। इसके पूर्व महारानी ने अपने पूरे परिवार व 16 सदस्यीय दल के साथ सारनाथ का भ्रमण किया। पुरातात्विक खंडहर परिसर गईं जहां संरक्षण सहायक पीके त्रिपाठी ने इस शाही परिवार का स्वागत किया। इसके बाद महारानी ने धमेख स्तूप के समक्ष बैठकर पूजा की। मूलगंध कुटी बौद्ध मंदिर में महाबोधि सोसायटी आफ इंडिया के सहायक सचिव भिक्षु मेघानकर ने भी पूजा कराई। चौखंडी स्तूप में अपनी नानी के साथ जिग्मे ने भी पूजा की। यहां के हर स्थान को वह ध्यान से देख रहा था। ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो वह कुछ जानने की कोशिश कर रहा हो।
सचमुच पुनर्जन्म होता है, वाकई में होता है
दल के साथ बोधगया भूटान बौद्ध मठ से आए भिक्षु येरो ने बताया कि जिग्मे जब थोड़ा बहुत बोलने लगा तब वो नालंदा विश्वविद्यालय के बारे में ही बात करता था। जिग्मे ने 824 वर्ष पूर्व नालंदा में पढऩे की बात बताई। उसकी हर बात 824 वर्ष पूर्व के शिक्षाविद् वेरोचना से मिलती थी। इस जन्म में उसका भूटान के शाही घराने में महारानी के नाती के रूप में जन्म हुआ है। जिग्मे अक्सर अपनी नानी से सारनाथ आने की इच्छा जताता था। उसकी बातों को सुनकर महारानी ने बुद्ध से जुड़े स्थलों के दर्शन का निर्णय लिया। वह नालंदा विश्वविद्यालय के चप्पे चप्पे से वाकिफ है। जब वह नालंदा गया तो अपने कमरे तक पहुंच गया जहां पूर्वजन्म में रहता था। इतना ही नहीं, वहां उसने वह मुद्राएं दिखाईं जो नालंदा के छात्रों को सिखाई जाती थीं।
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