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    वाराणसी में आज से संस्कृति संसद: कॉमन सिविल कोड, सामाजिक समरसता पर चर्चा

    By Ashish MishraEdited By:
    Updated: Sat, 05 Nov 2016 11:11 AM (IST)

    बनारस में दो दिनों की ऐसी ही एक बौद्धिक जुटान होने जा रही है जिसमें अपने-अपने क्षेत्रों के प्रमुख हस्ताक्षर संस्कृति के विविध पक्षों पर विचार व्यक्त करेंगे।

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    वाराणसी [आशुतोष शुक्ल] । दर्शन मात्र से मुक्ति देने वाली गंगा जिस काशी के घाटों पर आकर उत्तर वाहिनी हो जाती है, जहां त्रिनेत्रधारी शिव घर-घर बाबा हो जाते हैं और जिस जीवंत नगर के वासी नित्य ही उत्सव मनाने का नया बहाना ढूंढ लेते हैं, भारतीय संस्कृति का कोई भी विमर्श केवल वहीं शोभित हो सकता है। बनारस में दो दिनों की ऐसी ही एक बौद्धिक जुटान होने जा रही है जिसमें अपने-अपने क्षेत्रों के प्रमुख हस्ताक्षर संस्कृति के विविध पक्षों पर विचार व्यक्त करेंगे।

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    शनिवार-रविवार को सूर्यदेव की आराधना के दिन गंगा महासभा और दैनिक जागरण द्वारा सूर्या होटल में आयोजित संस्कृति संसद में धर्म, कला, साहित्य, सिनेमा, अध्यापन आदि के वे सभी बड़े नाम होंगे जिनका कुछ भी बोला हुआ महत्वपूर्ण होता है लेकिन, उनके नामों की चर्चा से पहले समझते हैं कि यह आयोजन क्यों। वर्ष 1916 में महामना मदन मोहन मालवीय और अंग्रेज सरकार के बीच वह ऐतिहासिक समझौता हुआ। तय हुआ था कि गंगा की धारा सदा अविरल रखी जाएगी और गंगा के बारे में कोई भी निर्णय हिंदू समाज की सहमति के बिना नहीं हो सकेगा। इस नाते 2016 गंगा रक्षा समझौते का शताब्दी वर्ष है और इसी उपलक्ष्य में होने जा रही है संस्कृति संसद।


    संस्कृति संसद की परिकल्पना दैनिक जागरण के पूर्व प्रधान संपादक स्व. नरेंद्र मोहन की पुस्तक 'भारतीय संस्कृति पर केंद्रित है। पुस्तक के भारतीय संस्कृति और राजनीति शीर्षक अध्याय में नरेंद्र मोहन कहते हैं, '...भारतीय एकता और अखंडता को आज सबसे बड़ा खतरा उस अंग्रेजियत से है जिसका एकमात्र लक्ष्य भारतीय संस्कृति को लांछित करना और भारत को मानसिक स्तर पर विभाजित रखना रहा। आगे वह बादशाह अकबर का हवाला देकर लिखते हैं..., 'इस सम्राट ने बाद के वर्षों में इस्लामी आक्रमणकारी विजेताओं की भूलों को समझा और उनके द्वारा भारतीय संस्कृति को कुचलने की जो चेष्टा की गई थी, उसका सफलतापूर्वक प्रतिकार किया। इस समय राजनीति से लेकर फिल्मों और साहित्य तक यही बहस जारी है कि भारत एक सांस्कृतिक और राष्ट्रीय इकाई है अथवा नहीं। संस्कृति की विभिन्न धाराएं जब दो दिन तक संसद में मंथन करने बैठेंगी तो यह विषय वहां भी प्रमुखता से उठेगा।
    संस्कृति संसद उन सवालों के भी जवाब तलाशने का प्रयास करेगी जिनके कारण इन दिनों उथल पुथल मची हुई है। शनिवार को पहला सत्र सर्वधर्म संवाद का होगा जिसके वक्ता होंगे ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती, रामानंदाचार्य स्वामी हंसदेवाचार्य, प्रख्यात शिया मौलाना कल्बे सादिक, भंते असाजिथ और दैनिक जागरण के प्रधान संपादक संजय गुप्त। गंगा भारतीय अस्मिता की प्रतीक है लेकिन, अब गंदी-प्रदूषित और अनेक पर्यावरणविदों की राय में 'डाइंग रिवर। गंगा के उद्धार का वादा उतना ही पुराना है जितनी उसकी गंदगी। संसद में एक सत्र गंगा पर होगा जिसमें गंगा महासभा के महामंत्री स्वामी जितेंद्रानंद सरस्वती, पद्मश्री एससी मेहता, संकटमोचन मंदिर, वाराणसी के महंत प्रो. विश्वम्भरनाथ मिश्र और गंगा महासभा के प्रेमस्वरूप पाठक विचार व्यक्त करेंगे।
    इन दिनों समकालीन सिनेमा राष्ट्रीय मुद्दों पर विभाजित दिख रहा है। एक सत्र इसी विषय पर होगा जिसमें फिल्म निर्माता निर्देशक पंकज पाराशर, लोक व उपशास्त्रीय गायिका पद्मश्री मालिनी अवस्थी और संस्कार भारती के संरक्षक बाबा योगेंद्र बात करेंगे। कॉमन सिविल कोड आज का सबसे विवादित विषय है और इस पर केंद्रित सत्र में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के इंद्रेश कुमार, सूरा कमेटी के सदस्य मौलाना बेलाल अहमद मदनी और सुप्रीम कोर्ट में तीन तलाक मुद्दे की वकील नाजिया इलाही खान मुखर होंगे।

    सेनाधिकारी और किन्नर भी
    रविवार का पहला सत्र बलूच समस्या पर होगा और वक्ता होंगे बलूचिस्तान से आईं नायला कादरी बलोच (अध्यक्ष, विश्व बलूच महिला मंच) और बलूच आंदोलनकारी मीर मजदक दिलशाद खान। एक सत्र सामाजिक समरसता का होगा जिसमें अपनी बात कहेंगे जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के प्रो. विवेक कुमार, पावन चिंतन धारा के संस्थापक पवन सिन्हा और महामंडलेश्वर किन्नर अखाड़ा लक्ष्मीनारायण त्रिपाठी। राष्ट्रीय सुरक्षा की चुनौतियां सत्र में गंगा महासभा के मार्गदर्शक न्यायमूर्ति गिरिधर मालवीय, रक्षा विशेषज्ञ जनरल जीडी बख्शी और रॉ के पूर्व निदेशक आरएसएन सिंह से चर्चा करेंगे वरिष्ठ पत्रकार पुष्पेंद्र कुलश्रेष्ठ। दिन का अंतिम सत्र होगा-संस्कृति संरक्षण व बनारस की भूमिका और वक्ता ऐसे लोग होंगे जिन्हें बनारस सुनता और मानता है-संगीताचार्य डा. राजेश्वर आचार्य, साहित्यकार डा. नीरजा माधव, डा. जितेंद्रनाथ मिश्र, ओम धीरज और पद्मभूषण पं. छन्नूलाल मिश्र। जाहिर है, जब ऐसे नाम होंगे तो दो दिन काशी वैचारिक मंथन में डुबकी क्यों न लगाए।