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    लेप्टोस्पाइरोसिस से बचने का करें प्रयास

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    Updated: Tue, 03 Sep 2013 10:34 AM (IST)

    वाराणसी : बाढ़ के साथ रोगों का भंडार भी आता है। ऐसे में स्वास्थ के प्रति सावधानी जरूरी है। बाढ़ के पानी में अधिक चलने से लेप्टोस्पाइरोसिस हो सकता है। जहां पशुओं का जमावड़ा हो तो वहां इसके होने की आशंका बढ़ जाती है। सामान्य सिर दर्द, बदन दर्द व हल्का बुखार इसका लक्षण है। दस दिनों में यह अपना व्यापक असर दिखाने लगता है। सुश्रुत संहिता में इस रोग को 'दूषी विष। मूषिका विष।' कहा जाता है।

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    कैसे निकलें बाढ़ में : बीएचयू आयुर्वेद संकाय के एसोसिएट प्रोफेसर डा. आनंद चौधरी बताते हैं कि बाढ़ में निकलना मजबूरी है तो पूरे शरीर में तिल, नारियल या सरसों के तेल की मालिश कर लें। जब आसपास पशुओं का मल-मूत्र हो तो इसे अवश्य करना चाहिए। यदि शरीर में कहीं भी पहले से घाव या फोड़ा है तो उसपर 'एडहेसिव पट्टी' जरूर बांधें। हो सके तो रबर का बूट पहन कर निकलें।

    रोग हो तो यह करें : बदन दर्द, सिर दर्द या हल्का बुखार हो तो आराम करें। बिना चिकित्सकीय सलाह के अपने से कोई दवा न लें। डा. चौधरी बताते हैं कि इस स्थिति में शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता घटने लगती है। इसके लिए गिलोय का सेवन करें। इसके साथ ही वासावलेह, तुलसी व गोघृत को अवश्य लें। भोजन में मुख्य रूप से षष्ठी धान, मूंग, आंवला, अनार, जीवंती का साग को गर्म भोजन के रूप में लें।

    महंगी पड़ सकती है अनदेखी : बदन दर्द व हल्का बुखार आदि की शिकायत की अनदेखी महंगी पड़ सकती है क्योंकि लेप्टोस्पाइरोसिस दस दिन के भीतर ही पीलिया, डायरिया, फ्लू होने के साथ ही किडनी, लिवर व हृदय पर बुरा असर डाल सकता है। लापरवाही मुसीबत बन सकती है।

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