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राम को पवित्र करने वाली सई नदी के अस्तित्व पर खतरा

By Edited By: Published: Sat, 07 Jun 2014 06:59 PM (IST)Updated: Sat, 07 Jun 2014 06:59 PM (IST)
राम को पवित्र करने वाली सई नदी के अस्तित्व पर खतरा

असोहा, संवाद सूत्र: पवित्र गंगा से तुलना तो नहीं की जा सकती लेकिन सई का ऐतिहासिक व धार्मिक महत्व कम नहीं है। नदी से नाला बन चुकी सई कुछ दिन बाद मात्र इतिहास रह जाएगी। वन से वापस आते हुए भगवान राम, माता सीता और लक्ष्मण ने जिस सई नदीं में स्नान कर रावण से युद्ध में गलतियों से अपने को पवित्र किया, वह अपनी पवित्रता स्वच्छता ही नहीं अस्तित्व खोने के कगार पर है। कई सौ एकड़ जमीन को सिंचित और उपजाऊ बनाने वाली इस नदी को बचाने के लिए आवाज जरूर उठी लेकिन चर्चा मात्र बाढ़ के लिए हुई।

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नदी के किनारे पर स्थित प्रसिद्ध शिव मंदिर रेतेश्वर महादेव के संरक्षक शिवशंकर सिंह, नदी के किनारे बाबा रामेश्वर मंदिर के महंत बाबा गंगा दास, भवरेश्वर मंदिर के पुजारी गोस्वामी द्वारिका दास, असरेंदा के समाजसेवी राकेश शुक्ल का कहना है कि इस प्राचीन सई नदी का अस्तित्व ही खतरे में है। गंगा, गोमती नदी के प्रदूषण को लेकर आवाज अक्सर उठती रहती है। सई नदी के प्रदूषण तथा अस्तित्व पर भी आवाज उठी।

हरदोई की सीमा से रायबरेली की सीमा को छूती इस नदीं में जा रही गंदगी इसके प्रवाह को खत्म कर रही रही है। हरदोई सीमा के मोहान, हरौनी, बेती, बनी से कोटवा, धन्नी खेड़ा, जबरेला, असरेंदा, करदहा से रायबरेली तक इस नदी में दर्जनों कल कारखानों का प्रदूषित पानी नदी में बहाया जाता है। नदी के किनारे बसे हजारों गांवों के मुर्दे तथा पशुओं को इसमें बहाया जाता है। गांवों के का गंदा पानी, कचड़ा सभी इस नदी में जा रहा है। रही सही कसर नदी में मछली कछुओं का अवैध शिकार करने वाले पूरा कर देते हैं।

एक आंदोलन चला लेकिन फुस्स

कुछ दिन पहले भाजपा एमएलसी विंध्यवासिनी कुमार की अगुवाई में सई नदी बचाव यात्रा निकाली गई थी लेकिन इसका कोई परिणाम आज तक नहीं निकला।

नाला बन गई लोन नदी

कभी अपने प्रवाह से हजारों एकड़ का जिले में दोआबा देने वाली वाली लोन नदी अब नाले में तब्दील हो चुकी है। फैक्ट्रियों से आते पानी इसके प्रवाह खत्म किया तो सिमट रहे इसके अस्तित्व के किनारे कब्जे हो गए। उन्नाव के बिछिया ब्लाक के भदेसा स्थित तलाब से निकली जा रही यह रायबरेली में गंगा नदी मिलने वाली यह नदी अब खत्म हो गई है। लोगों का कहना है कि इसमें फैक्ट्रियों से निकला पानी बहता है। इससे नदी पटने लगी और प्रवाह कम हो गया है। गर्मी में तो इतना ही पानी होता है कि जितना फैक्ट्रियों से गंदा निकलता है।

कहां से जा रहा प्रदूषण

-दही चौकी की फैक्ट्रियों का गंदा पानी बिना शोधन के इस नदी में जाता है।

-इसके गांवों के मरे जानवर इसी में बहाए जाते हैं।

-कई स्लाटर हाउसों का गंदा पानी भी इसमें जाता है।


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