बुलंदशहर कांड: दरिंदों को सबक सिखाने के लिए बनूंगी आइपीएस
पढ़ाई पर ध्यान केंद्रित कर एक ही मकसद, बस आईपीएस बनकर बचपन के अपराधियों को सबक सिखाना है ताकि किसी परिवार पर दुख का पहाड़ न टूटे।
नोएडा(मनोज त्यागी)। मुरझाया चेहरा, पर आंखों में झलकता आत्मबल। हौलनाक हादसे से धीरे-धीरे उबर रही संज्ञा ने (काल्पनिक नाम) अब दरिंदों के खिलाफ सतत संघर्ष की राह चुन ली है। पढ़ाई पर ध्यान केंद्रित करते हुए एक ही लक्ष्य, एक ही मकसद, बस आईपीएस बनकर समाज और बचपन के अपराधियों को सबक सिखाना है ताकि फिर कोई बचपन न मुरझाये, किसी परिवार पर दुख का पहाड़ न टूटे।
बुलंदशहर में हाईवे पर हैवानियत का शिकार बनी बहादुर बेटी संज्ञा ने यह दृढ़ संकल्प दैनिक जागरण से बातचीत में जताया। संज्ञा मुरझाया सा चेहरा लिए मेरे सामने बैठी थी। सिर झुका था। चुप्पी तोडऩे के लिए सवाल किया कि आप तो मार्शल आर्ट जानती हैं तो फिर...। सवाल पूरा भी नहीं हुआ था किपास बैठे पिता की तरफ देखा और आंखें नम हो गईं। फिर यकायक चेहरे के भाव बदल गए। ऐसा लगा मानो मन ही मन उन दरिदों को मार्शल आर्ट के दांव पेच से धाराशायी कर देना चाहती हो। फिर बहादुरी से कहा, मैं मार्शल आर्ट जानती हूं और दरिंदों को पस्त करने की हिम्मत भी रखती थी...किंतु हैवानों ने पिता की कनपटी पर गन लगा दी थी। बताते-बताते फिर आंखों से आंसू छलक आये। फिर साहस बटोरा, जैसे सब कुछ भूल जाना चाहती हो और फिर बोली कि आत्मरक्षा के लिए हर लड़की को मार्शल आर्ट सीखनी चाहिए, न जाने कब जरूरत पड़ जाए।
भविष्य में क्या करना चाहती हैं? इस सवाल पर चेहरे पर दृढ़ता के भाव उभरे। कहा, अब आइपीएस बनना ही मेरा लक्ष्य है ताकि समाज के दरिंदों को सबक सिखा सकूं। पर उसके लिए तो बहुत मेहनत की जरूरत होगी ? हां, पर मैंने हार्डवर्क करना सीख लिया है। पहले पढ़ाई पर ज्यादा ध्यान नहीं देती थी, लेकिन अब देर तक पढ़ती रहती हूं। मुझे न्याय पालिका पर भरोसा है। उन दरिंदों को फांसी की सजा मिलने पर ही मुझे और मेरे परिवार को न्याय मिलेगा।
जवाब देते-देते संज्ञा शून्य में देखने लगती है और फिर कहती है कि मेरा बचपन कब खत्म हो गया मुझे पता ही नहीं चला। पहले किसी बात पर ध्यान नहीं देती थी। अब तो हर समय अपने साथ माता-पिता की भी चिंता सताती है। जब भी माता-पिता की आंखों में झांकती हूं, तो उनके चेहरे पर मुझे लेकर दर्द दिखाई देता है। मैं किसी से कुछ कह नहीं पाती हूं, लेकिन उनका दर्द...।
कई लोगों का रवैया दुख देता है
संज्ञा के पिता बताते हैं कि उस समय जिस तरह से राजनीतिक और समाज के लोग हमारे पास आए, बाद में उनमें से एक ने भी आकर हमारा दुख नहीं बांटा। मेरे मोबाइल में तमाम ऐसे लोगों की बात रिकार्ड हैं। जो आज बात करते समय अहसान जताते हैं। मुझे तरह-तरह से बहकाया जा रहा था। आज हालात बिलकुल अलग हैं। बात करते समय इन लोगों की भाषा ऐसी होती है जैसे मैं ही अपराधी हूं। पास बैठे संदीप सिंह (एवियर एजूकेशन हब के एमडी) की ओर इशारा कर कहते हैं कि यदि यह नहीं होते, तो हमारी मदद करने वाला कोई नहीं था। इन्होंने ही गाजियाबाद के जिलाधिकारी से बात कर बिटिया के लिए अच्छे स्कूल में दाखिले की बात की थी, लेकिन लाख कोशिश के बाद भी वहां से मदद नहीं मिल पाई। बाद में इन्होंने ही बात की तो गौतमबुद्ध नगर जिले के डीएम एनपी सिंह ने दो घंटे में नोएडा के एक अच्छे स्कूल में दाखिला करा दिया। इस बात से मैं बहुत खुश हूं कि बिटिया अच्छे स्कूल में पढ़कर अपने सपने को पूरा करेगी।
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