'अंग्रेजी राज' के खात्मे को छेड़ी थी मुहिम
मुजफ्फरनगर : जंग-ए-आजादी में जनपद के वीरों ने क्रांति को नयी दिशा दी थी। आंदोलन के दौरान खतौली निवासी पंडित सुंदरलाल ने 'भारत में अंग्रेजी राज' नामक कृति की रचना की थी। तमाम विरोध के बावजूद पुस्तक क्रांतिकारियों के बीच आयी और लोकप्रियता के शिखर तक पहुंची। जवाहर लाल नेहरू से लेकर महात्मा गांधी तक ने पं. सुंदरलाल की इस कृति की मुक्त कंठ से प्रशंसा की।
पं. सुंदरलाल का जन्म खतौली के कायस्थ परिवार में 1882 को तोताराम के घर में हुआ। बचपन से ही देश को पराधीनता की बेड़ियों में जकड़े देखा तो उनके दिल में देश को आजादी दिलाने का जज्बा पैदा हुआ। कम आयु में ही परिवार को छोड़ प्रयाग की ओर रुख किया। प्रयाग को कार्यस्थली बनाकर आजादी की लड़ाई में कूद पड़े।
बाकी क्रांतिकारियों का संपर्क और सहयोग मिला तो हौंसला बढ़ता गया और कलम से माध्यम से देशवासियों को आजाद भारत के सपने को साकार करने की हिम्मत दी।
गणेश शंकर को बनाया 'विद्यार्थी'
क्रांतिकारी गणेश शंकर विद्यार्थी पं. सुंदरलाल के प्रमुख शिष्यों में एक रहे। गुरु-शिष्य के रिश्ते का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि पंडितजी ने ही गणेश शंकर को 'विद्यार्थी' की उपाधि से नवाजा।
निभाई महती भूमिकाएं
पं. सुंदरलाल पत्रकार, साहित्यकार, स्तंभकार के साथ ही साथ स्वतंत्रता सेनानी और कर्मयोगी हिंदी साप्ताहिक पत्र के संपादक भी रहे। इतना ही नहीं लार्ड कर्जन की सभा में बम कांड करने वालों में पंडित सोमेश्वरानंद बनकर शामिल हुए।
दो दिन में बिकी 1700 प्रतियां
एक हजार शब्दों वाली 'भारत में अंग्रेजी राज' पुस्तक की दो हजार प्रतियां पंडित सुंदरलाल द्वारा 31 मार्च 1931 को प्रकाशित कराई गई। अंग्रेजी हुकूमत की मुखालफत वाली इस पुस्तक को दो दिन में ही प्रतिबंधित कर दिया गया। पुस्तक इतनी लोकप्रिय रही दो दिन में ही इसकी 1700 प्रतियां बिक गई। बाकी 300 कॉपियां रेल और डाक से सरकार द्वारा जब्त कर ली गई।
गांधी जी ने लिखा पुस्तक पर लेख
इस पुस्तक से प्रभावित होकर महात्मा गांधी ने 'यंग इंडिया' में इस किताब के पक्ष में लेख लिखा और सराहना की। 104 साल की आयु में पंडितजी ने दुनिया अलविदा कह दिया, लेकिन आज भी इनकी रचना युवाओं का मार्गदर्शन कर रही हैं।
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