मुजफ्फरनगर ने बदली दंगे की तस्वीर
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मेरठ : गंगा-यमुना दोआब में बसे जनपद मुजफ्फरनगर के गांव कवाल में 12 दिन पूर्व छेड़छाड़ प्रकरण में मारे गए तीन युवकों के बाद उठी नफरत की आग ने मुजफ्फरनगर ही नहीं आसपास के जनपदों को सांप्रदायिक हिंसा में जला दिया। देश की आजादी के बाद ऐसा पहली बार हुआ कि गांव-गांव में सांप्रदायिक आधार पर दरार पड़ गई है। शहर ही नही, गांव में दो समुदायों के बीच विश्वास का संकट पैदा हो गया है। यही कारण है मुजफ्फरनगर ने उप्र ही नही देश में दंगे की तस्वीर बदल कर रख दी है। पूर्व में एक गांव में हुए तनाव का असर शहरों में दंगे के रूप में तब्दील हुआ है पर ऐसा पहली बार हुआ कि एक गांव में भड़की चिंगारी न केवल शहर वरन आसपास के गांव में आग के रूप में धधक रही है। ढाई दशक बाद ऐसा पहली बार हुआ है जब मुजफ्फरनगर में शांति के लिए सेना की मदद लेनी पड़ी है।
केन्द्रीय गृह मंत्रालय द्वारा जारी रिपोर्ट की मानें तो उप्र में अखिलेश यादव सरकार के कार्यकाल में अब तक 105 दंगे हुए है, जिसमें 55 से अधिक लोग मारे गए और 900 से अधिक घायल हुए। अगस्त माह 2013 में ही 11 दंगे हुए, जिसमें 31 जुलाई-एक अगस्त को लखनऊ में रमजान के जुलूस पर पथराव, तीन अगस्त को एटा के अमापुर कस्बे में छात्राओं से छेड़छाड़ के बाद बवाल, छह अगस्त को रामपुर के बहादुर गंज में लाउडस्पीकर को लेकर बवाल, नौ अगस्त को अमरोहा में ईद की नमाज के दौरान बवाल, 12 अगस्त को जौनपुर के मछली शहर में बवाल, 16 अगस्त को बुलंदशहर में एक युवती के साथ सामुहिक दुष्कर्म के बाद बवाल, 22 अगस्त को अलीगढ़ के खैर में जाट समुदाय द्वारा 450 विशेष बिरादरी के लोगों के बहिष्कार के बाद बवाल, 25 अगस्त को झांसी में तनाव, 27 अगस्त को कन्नौज के छिबरामऊ में बवाल व 29 अगस्त को मुजफ्फरनगर के कवाल में बवाल हुआ।
मुजफ्फरनगर के हिस्से में 12 बार दंगे हुए हैं। इन दंगों में 79 लोग मारे गए। सात बाद विभिन्न मामलों को लेकर कुछ दिन अघोषित कर्फ्यू जैसी स्थिति रही। कभी न भूलने वाला दंगा गांधी कालोनी रामलीला में पात्रों को उठाने को लेकर अक्टूबर 1988 में हुआ। कांग्रेस सरकार में गृहराज्य मंत्री रहते हुए सईदुज्जमां को अपनी ही पार्टी के नगर अध्यक्ष हरीश छाबड़ा पर मीसा की कार्रवाई करानी पड़ी। हालांकि बाद में हरीश से मीसा हटाई गई। 35 दिन तक चले इस दंगे में सरकारी मशीनरी फेल हुई तो सेना बुलानी पड़ी। हमलों में सात लोगों की मौत 112 घायल हुए। आजादी से पहले 2 अक्टूबर 1939 को हुए दंगे में दो जानें गई। वर्ष 1946 में 7-11 नवम्बर के बीच हुए दंगे में 6 लोगों की जान गयी। आजादी के बाद पहला दंगा 5 अक्टूबर 1961 को मेरठ के साथ-साथ मुजफ्फरनगर में हुआ।
नफरत का इतिहास
तारीख मौत
2 अक्टूबर 1939 2
7-11 नवम्बर 1946 6
5-8 अक्टूबर 1961 3
28-30 जनवरी 1968 2
सितम्बर 1976 22
31 अक्टूबर से 7 नवम्बर 1984 6
अक्टूबर 1988 7
6 दिसम्बर 1992 4
2 सितम्बर 2002 3
19 जुलाई 2004 3
23 फरवरी 2006 5
5 व 6 सितम्बर 2013 22
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