भावनाओं का उमडता सैलाब लेकर कृष्ण भक्ति में रम गए झूमते गाते श्रद्धालु
कान्हा की बांसुरी बजी और श्रीकृष्ण जन्मस्थान पर भक्तों की भावनाओं का सैलाब उमडऩे लगा। लोग झूमकर कान्हा की भक्ति में थिरकने लगे।
मथुरा (जेएनएन)। श्रीकृष्ण जन्मस्थान पर कान्हा की बांसुरी बजी तो भक्तों की भावनाओं का सैलाब उमडऩे लगा। लोग झूम उठे और महिलाएं कान्हा की भक्ति में थिरकने लगी। हर कोई अपने-अपने अंदाज में भगवान के प्रति भाव प्रगट कर रहा था। श्रीकृष्ण जन्मस्थान पर सुबह से लेकर कान्हा के जन्म तकभक्ति की रसधार बहती रही और श्रद्धालु गोते लगाते रहे। दरअसल, भक्ति और श्रद्धा की नाव जब चलती है तो कोई भंवर रोक नहीं पाता। कृष्ण कृपा जिस पर बरसती है, उसका कोई बालबांका नहीं कर पाता। दुख तो बहुत छोटी चीज है, वह तो रासरचैया के नामभर से तार-तार हो जाता है। जन्माष्टमी पर यहां आने वाले ऐसे भक्तों की लंबी श्रंखला है, जिनकी कन्हैया ने हर मुराद पूरी कर दी। जरूरत पर उन्हें राह दिखाई।
रात 12 बजे ठाकुरजी का महाभिषेक, रात एक बजे से नंदोत्सव।
तूने खोला हर द्वार, कन्हैया तेरा आभार
मध्य प्रदेश के जनपद सीधी से एक बस श्रद्धालुओं की आई है। ज्यादातर ऐसे हैं, जिनकी कोई न कोई बड़ी मुराद कृष्ण के द्वार पर बतानेे के बाद पूरी हो गई। ऐसे में ये श्रद्धालु पारंपरिक रूप से यहीं जन्माष्टमी मनाने आते हैं। इनमें से एक जय शंकर बताते हैं कि दो साल पहले श्रीकृष्ण जन्म स्थान पर संतान की कामना की थी, जो पूरी हुई। वहीं बैतूल के रमापति और पटना के बृजेश झा भी ऐसे श्रद्धालुओं में से हैं, जो मनौती पूरी होने पर जन्माष्टमी पर दर्शन करने आए हैं। वहीं कुछ ऐसे भी हैं जो कृष्ण के उपदेशों से समस्याओं में राह खोजते हैं। गुडग़ांव के दिव्यांश नचिकेता एक कॉल सेंटर प्रबंधन से जुड़े हैं। वह कहते हैं कि अपनी टेबल पर भगवान श्री कृष्ण की फोटो हमेशा रखते हैं। संघर्षों के दौर से अपने पैरों पर खड़े हुए दिव्यांश कहते हैं कि एमबीए करने से उतना प्रबंधन नहीं सीखा, जितना मार्गदर्शन गीता से मिला। उन्हें गीता में के कई श्लोक और अर्थ कंठस्थ हैं। वह कहते हैं कि मुश्किल परिस्थिति में कृष्ण के उपदेशों में जाते हैं, तो समस्याओं का समाधान आसान हो जाता है, सबसे बड़ी बात तनाव कम होता है। श्री कृष्ण जन्म स्थान के मुख्य दरवाजे पर सुबह से लगी लंबी लाइन में लगे रीवा के कृपा शंकर बोले वह मधुमेह रोग से पीडि़त हैं और अक्सर भोजन करने के बाद दो घंटे तक उनकी स्थिति खराब हो जाती है, लेकिन यहां प्रसाद के बाद उन्हें आराम की आवश्यकता नहीं पड़ी। वहीं कुछ ऐसे भी हैं, जो मन्नत लेकर आए हैं। उन्नाव के गोवर्धन दास बताते हैं कि हर साल आने की कोशिश करते हैं। परंतु इस बार बिटिया की शादी की मनौती लेकर आए हैं।
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यशोदा तेरो मन मोहन
सुबह नौ बजे पुष्पांजलि कार्यक्रम शुरू हुआ। विनय प्रसन्ना एंड पार्टी के भजन गायक दीपाली प्रसन्ना, कुलदीप पवार फनीश पवार ने'नेनम मधुरम','मेरे गुरुदेव वृंदावन में बसाय दोगे तो क्या होगा', ' मेरे नैन में समा गयौ यशोदा तेरो मन मोहन' आदि भजनों पर श्रद्धालुओं की आस्था की थाह नहीं थी। भावनाओं के ज्वार से जन्मस्थान भक्ति में सराबोर हो गया। श्रद्धालु अपने को झूमने से रोक नहीं पा रहे थे। भक्तों को कोई सुध नहीं थी, वह तो भक्ति के समंदर में डूबे थे। सोमदत्त डांगी ने तबला, कंहैया ने ढोलक, अभिषेक ने की बोर्ड पर संगत देकर स्वरों को जीवंत कर दिया। इससे पूर्व सांस्कृतिक कार्यक्रम में मयूर नृत्य ने भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं को जीवंत किया। जन्मस्थान पर लग रहा था कि द्वापर युग की लीला फिर से जीवंत हो रही है। राधे-राधे-कृष्णा-कृष्णा के जयघोष हर तरफ गूंज रहे थे। इसके बाद शाम चार से बजे से फिर सांस्कृतिक कार्यक्रम शुरू हुए। इसके बाद शाम सात बजे श्रीकृष्ण जन्म लीला का मंचन शुरू हुआ, जिसे देखकर लोग भाव विभोर हो गए। आयोजन में शामिल होने के लिए श्रद्धालु सुबह से ही पहुंच गए थे और देर रात तक जमे रहे।
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