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पाक के ग्रंथागार में हिन्दी व संस्कृत की हजारों पांडुलिपियां

जागरण संवाददाता, वृंदावन(मथुरा): पाकिस्तान के लाहौर शहर स्थित पंजाब विश्वविद्यालय में हिन्दी और संस्

By Edited By: Published: Fri, 25 Mar 2016 11:45 PM (IST)Updated: Fri, 25 Mar 2016 11:45 PM (IST)
पाक के ग्रंथागार में हिन्दी व संस्कृत की हजारों पांडुलिपियां

जागरण संवाददाता, वृंदावन(मथुरा): पाकिस्तान के लाहौर शहर स्थित पंजाब विश्वविद्यालय में हिन्दी और संस्कृत भाषा की साढ़े आठ हजार से अधिक पांडुलिपियां रखी हैं। इनमें भगवान राम और उस काल के साधकों द्वारा तैयार की गई पोथियां विद्यमान हैं। इन पांडुलिपियों को भारत में लाए जाने के बाद अनेक विशिष्ट जानकारियां सामने आ सकती हैं।

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वृंदावन में ब्रज संस्कृति शोध संस्थान आए वरिष्ठ पांडुलिपिविद् उदय शंकर दुबे बताते हैं कि धार्मिक ग्रंथों में उल्लेख है कि पाकिस्तान के लाहौर शहर को मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम के पुत्र लव ने बसाया। वहां वैष्णव धर्म का बोलबाला रहा।

भारतीय संस्कृति से जुड़ी पांडुलिपियों के बारे में उन्होंने आज से छह साल पहले शोध कार्य शुरू किया। इस सबंध में उन्होंने महत्वपूर्ण जानकारियां जुटाई। पांच वर्ष पूर्व पंजाब विश्वविद्यालय लाहौर के पुस्तकालय अध्यक्ष डॉ. हारून उस्मानी से उन्हें हिन्दी और संस्कृत पांडुलिपियों की सूची प्राप्त हुई। तब उन्हें पता चला कि साढ़े आठ हजार से अधिक पांडुलिपियां पाकिस्तान में हैं। इसके अलावा फारसी, अरबी, तुर्की और उर्दू भाषा की भी हजारों पांडुलिपियां वहां पर संरक्षित हैं। लाहौर शहर में आज भी सनातन संस्कृति के चिह्न मौजूद हैं। वहां हिन्दू, सिख, जैन संस्कृति के मंदिर, गुरुद्वारा आदि के अवशेष मौजूद हैं। हालांकि समय की मार ने अनेक मंदिरों और गुरुद्वारों को जमींदोज कर दिया।

-लाहौर आर्यसमाज का गढ़ रहा

हिन्दू, मुगल, सिख और पठानों की मिश्रित संस्कृति वाला यह शहर कभी आर्य समाज का गढ़ रहा। सन 1882 में स्वामी दयानंद सरस्वती ने लाहौर में दयानंद एंग्लो वैदिक कॉलेज को स्थापित किया। ब्रिटिश हुकूमत में हिन्दू राजाओं के सहयोग से पंजाब विश्वविद्यालय की स्थापना हुई। सन 1883 में यहां पुस्तकालय की स्थापना हुई इसके बाद सन 1920 में पांडुलिपि विभाग बना।

पांडुलिपि संपदा को करना होगा संरक्षित

वृंदावन: पांडुलिपि संपदा को संरक्षित करना होगा। इनसे देश, काल, भाषा और संस्कृति की जानकारी उपलब्ध होती है। यह विचार ब्रज संस्कृति शोध संस्थान में शुक्रवार को आयोजित'हमारी पांडुलिपि संपदा'पर आयोजित संगोष्ठी के अवसर पर ब्रज संस्कृति शोध संस्थान के सचिव लक्ष्मीनारायण तिवारी ने व्यक्त किये। राजस्थान ब्रज भाषा अकादमी के पूर्व अध्यक्ष डॉ. कृष्ण चंद्र गोस्वामी ने कहा कि वैष्णव संतों द्वारा रचित पांडुलिपियां न केवल भारत बल्कि विदेशों में भी हैं। इनके संरक्षण के लिए प्रयास किये जाने चाहिए। लाहौर पंजाब विवि में रखी अनेक पांडुलिपियां (पोथियां)ब्रज के साधकों द्वारा रची गई। विभिन्न संप्रदाय की इन पोथियों को ब्रज में संग्रहित किया जाए।

केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय के फैलोशिप पर कार्य करने वाले ब्रज संस्कृति के अध्येता डॉ. राजेश शर्मा ने कहा कि विषम परिस्थितियों में वैष्णव संप्रदाय के ब्रज संदर्भ सुदूर क्षेत्रों में पहुंचे। इतिहास के रूप में बिखरे पड़े इन विवरणों को एक स्थान पर संयोजित करना जरूरी है। ब्रज संस्कृति के अध्येताओं के लिए यह उपयोगी होगा। संगोष्ठी में देवकीनंदन गोस्वामी, विष्णुमोहन नागार्च, वंशलोचन त्रिवेदी, नित्यविहारी दास गोस्वामी, मधुमिता द्विवेदी, परमानंद गुप्ता, रसिकानंद ब्रह्मचारी और छगन पारीक ने विचार रखे।


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