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    कैदियों की कब्रगाह बन रहीं उत्तर प्रदेश की अधिकांश जेल, पांच साल में 2002 की मौत

    By Ashish MishraEdited By:
    Updated: Thu, 12 Oct 2017 11:28 AM (IST)

    वर्ष 2012 से जुलाई 2017 के बीच हुई मौतों का यह आंकड़ा सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत आगरा के आरटीआइ कार्यकर्ता नरेश पारस ने जुटाया है।

    कैदियों की कब्रगाह बन रहीं उत्तर प्रदेश की अधिकांश जेल, पांच साल में 2002 की मौत

    अली अब्बास, आगरा । यूपी की जेलें कैदियों की कब्रगाह बन रही हैं। पांच साल में जेल की चहारदीवारी के भीतर दो हजार से अधिक कैदियों-बंदियों की जिंदगी का सूर्यास्त हो गया। वर्ष 2012 से जुलाई 2017 के बीच हुई मौतों का यह आंकड़ा सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत आगरा के आरटीआइ कार्यकर्ता नरेश पारस ने जुटाया है। प्रदेश में 62 जिला जेल, पांच सेंट्रल जेल और तीन विशेष कारागार हैं।

    जेल में जन्म, वहीं मौत : जेलों में मरने वालों में नवजात बच्चे भी शामिल हैं। सीतापुर जेल में कुंदना पत्नी सुरजाना के एक साल के बेटे अनमोल ने इस साल दम तोड़ दिया। हरदोई जिला जेल में 24 मई 2013 को वंदना के छह महीने के पुत्र प्रिंस की मौत हुई। मथुरा जिला जेल में वर्ष 18 अक्टूबर 2014 को जुमराती के नवजात बच्चे एवं कानपुर देहात जेल में 18 सिंतबर 2014 को रामकली के नवजात पुत्र की मौत हुई, जबकि वाराणसी जेल में रेखा के डेढ़ महीने के बेटे ने दम तोड़ दिया।

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    मृतकों में 50 फीसद विचाराधीन बंदी : मरने वालों में आधी संख्या विचाराधीन बंदियों की है। इनकी उम्र 25 से 45 साल के बीच थी। सबसे ज्यादा मौतें क्षय रोग और सांस की बीमारी के चलते होना बताई गई हैं।

    जेलों में क्षमता से अधिक कैदी : जेलों में क्षमता से अधिक कैदियों का होना भी इतनी मौतों का प्रमुख कारण है। आगरा जिला जेल की क्षमता 1015 कैदियों की है, लेकिन यहां 2600 से ज्यादा कैदी निरुद्ध हैं। इसी तरह 1110 कैदियों की क्षमता वाले केंद्रीय कारागार में 1900 से ज्यादा बंदी हैं।

    टीबी और सांस की बीमारी मौतों का प्रमुख कारण : जेलों में कैदियों की होने वाली मौतों में बड़ी संख्या बुजुर्गों की हैं। इनमें ज्यादातर टीबी, दमा और उच्च रक्तचाप से पीडि़त थे। बैरकों में क्षमता से अधिक कैदियों के चलते टीबी जैसी बीमारी तेजी से फैलती है।


    धूल फांक रहीं मुल्ला कमेटी की सिफारिशें : जेलों सुधार के लिए गठित मुल्ला कमेटी की सिफारिशें 25 साल बाद भी धूल फांक रही हैं। इसमें जेल नियमावली में संशोधन के साथ ही कैदियों के पुनर्वास से संबंधित सिफारिशें की गई थीं, जिन्हें आज तक लागू नहीं किया गया।


    मौतों का आंकड़ा
    वर्ष मौतें
    2012 360
    2013 358
    2014 339
    2015 359
    2016 412
    2017 188
    (नोट: आंकड़ा एक जनवरी से जुलाई 2017 तक का है।)