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    लोक सेवा आयोग समेत यूपी की 35 हजार नियुक्तियां जांच के दायरे में

    By Ashish MishraEdited By:
    Updated: Wed, 05 Apr 2017 12:29 PM (IST)

    जांच के दायरे में उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग के पूर्व अध्यक्ष डॉ. अनिल यादव के कार्यकाल समेत उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग और माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड की लगभग 35 हजार भर्तिंयां आएंगी।

    लोक सेवा आयोग समेत यूपी की 35 हजार नियुक्तियां जांच के दायरे में

    लखनऊ [हरिशंकर मिश्र]। प्रदेश सरकार ने यदि भर्तियों में भ्रष्टाचार की जांच बैठाई तो उसकी आंच में पूर्व सरकार के कई बड़े अधिकारी और वरिष्ठ नेता भी झुलसेंगे। जांच के दायरे में उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग के पूर्व अध्यक्ष डॉ. अनिल यादव के कार्यकाल समेत उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग और माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड की लगभग 35 हजार भर्तिंयां आएंगी। इनको लेकर प्रतियोगी छात्र गड़बडिय़ों के आरोप लगाते रहे हैं और चार सौ से अधिक मुकदमें दायर हैं। परदे के पीछे का वह सच भी सामने आएगा कि अध्यक्ष व सदस्यों की अवैध नियुक्तियों के पीछे सरकार के किन प्रभावशाली लोगों का हाथ था। 

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    प्रदेश की भाजपा सरकार ने अपने संकल्प पत्र में भर्तियों की अनियमितता की जांच कराने का वादा किया था। एक दिन पहले लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष अनिरुद्ध सिंह यादव को बुलाकर इसकी गंभीरता के संकेत भी दे दिए हैं। नियुक्तियों को लेकर सबसे अधिक आरोप उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग के पूर्व अध्यक्ष डॉ. अनिल यादव के कार्यकाल में लगे हैं। उस दौरान अधिकांश फैसले बंद कमरों में लिए गए और प्रतियोगी छात्रों को त्रिस्तरीय आरक्षण के माध्यम से बांटने की कोशिश हुई।

    उनके कार्यकाल में पीसीएस की पांच प्रमुख परीक्षाओं में दो हजार से अधिक नियुक्तियां हुईं। इसके अलावा लोअर सबार्डिनेट, पीसीएसजे, समीक्षा अधिकारी-सहायक समीक्षा अधिकारी और राज्य अभियोजन अधिकारी के लगभग चार हजार पदों समेत सीधी भर्ती के बीस हजार पदों पर नियुक्तियां हुईं। डॉ. अनिल यादव की नियुक्ति अवैध ठहराए जाने के बाद इन नियुक्तियों पर तो कोई असर नहीं पड़ा है लेकिन जांच का बिंदु यह भी रहेगा।
    भर्तियों की निष्पक्ष जांच प्रतियोगी छात्रों को इसलिए भी बड़ी राहत देगी क्योंकि उन्हें न्याय के लिए लंबी अदालती लड़ाई लडऩी पड़ रही है।

    प्रतियोगी छात्र संघर्ष समिति के मीडिया प्रभारी अवनीश पांडेय बताते हैं कि उनकी ओर से सीबीआइ जांच के लिए याचिका तो दाखिल ही है, कुछ सदस्यों की अवैध नियुक्तियों के खिलाफ दो कोवारंटों भी चल रहे हैं। याचिका में कहा गया है कि आयोग के दो और माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड के दो वर्तमान सदस्यों की नियुक्ति अवैध है। विभिन्न पदों पर भर्ती के खिलाफ हाईकोर्ट में 378 याचिकाएं अलग-अलग दाखिल हैं।
    इसके अलावा माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड में आठ हजार से अधिक माध्यमिक शिक्षकों की नियुक्ति में भी भेदभाव और अनियमितता के आरोप लगे हैं।

    यहां भी अध्यक्ष की नियुक्ति अवैध ठहराई गई। उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग का आलम यह है कि 1652 डिग्र्री कॉलेज शिक्षकों की भर्ती से पहले अध्यक्ष व दो सदस्यों को हटना पड़ा। इस परीक्षा में बड़ी संख्या में कॉपियां सादी पाई गईं थीं। फिलहाल दोनों भर्ती संस्थाओं में नियुक्तियां भाजपा सरकार ने ठप करा दी हैं लेकिन, यह तय है कि यहां भी जांच की तलवार पूर्व सरकार के कई बड़े नेताओं तक पहुंचेगी।