अब 'चाय वाला' संभालेगा उत्तर प्रदेश भाजपा की कमान
भाजपा ने उत्तर प्रदेश की कमान भी चाय बेचने वाले हाथों में सौंपी है। पार्टी हाईकमान ने प्रदेश अध्यक्ष पद पर फूलपुर सांसद केशव मौर्या को नियुक्त किया है। उल्लेखनीय है कि पीएम नरेंद्र मोदी के अभियान में मोदी चाय काफी चर्चा का विषय रही थी।
लखनऊ। मिस्ड कॉल से सदस्य बनाकर 'ऐप' पर सरकारी सफलता की जानकारी देने के दौर में भारतीय जनता पार्टी ने उत्तर प्रदेश इकाई का अध्यक्ष चुनते समय पिछड़ा कार्ड में उग्र्र हिंदुत्व की 'चिप' लगाई है। अब केशव प्रसाद मौर्य के रूप में एक 'बजरंगी' चुनावी वर्ष में यूपी भाजपा का रथ हांकते दिखेगा।
भारतीय राजनीति में मोदी युग के उदय के साथ हाईटेक राजनीति ने भी रफ्तार पकड़ी। पिछले वर्ष भाजपा ने मिस्ड कॉल से सदस्य बनाने की मुहिम शुरू की तो सर्वाधिक सदस्यों के साथ उत्तर प्रदेश ने बाजी मारी। पार्टी केंद्र सरकार की अपनी उपलब्धियों को जनता तक पहुंचाने के लिए मोबाइल 'ऐप' लांच करने जा रही है। इन हाइटेक गतिविधियों के बीच पिछले कुछ महीने पार्टी प्रदेश संगठन के मोर्चे पर 'हैंग' सी दिखी। प्रदेश भाजपा की कमान सौंपने की राह में तमाम जातिगत समीकरण बड़ी बाधा बन रहे थे। भाजपा हिंदुत्व के एजेंडे से पीछे हटते भी नहीं दिखना चाहती थी। हिंदुत्व के चेहरे के रूप में दूसरे नाम सामने तो आए, पर जातिगत समीकरण में फिट नहीं बैठ रहे थे।
उत्तर प्रदेश में सपा तो पिछड़ों की राजनीति करती ही है, बसपा ने भी प्रदेश अध्यक्ष व विधानमंडल दल के नेता पदों पर पिछड़ों को बिठा रखा है। इस परिप्रेक्ष्य में पिछड़ों की राजनीति को चुनौती देने के लिए भाजपा ने पिछड़े वर्ग से अध्यक्ष बनाने की रणनीति बनाई तो केशव प्रसाद मौर्य बाजी मार ले गए। मौर्य न सिर्फ अतिपिछड़े वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हैं, बल्कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से बजरंग दल व विश्व हिंदू परिषद के रास्ते भाजपा में आए हैं। स्वयंसेवक होने के साथ मौर्य बजरंग दल के विभाग संयोजक बने। बाद में विश्व हिंदू परिषद के पूर्णकालिक कार्यकर्ता के रूप में काम करना शुरू किया और विहिप काशी प्रांत के संगठन मंत्री बने। काशी के बाद वे दिल्ली प्रांत के भी संगठन मंत्री बने, जहां वे राष्ट्रीय नेतृत्व की नजर में आए। इसके बाद ही उन्हें पहले उपचुनाव, फिर विधानसभा चुनाव लड़ाया गया। सिराथू से विधायक बने तो पार्टी ने लोकसभा चुनाव लड़वाने में विलंब नहीं किया और अब प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी दे दी।
पहले भी बन चुका समीकरण
पिछड़ा व हिंदुत्व का समीकरण भाजपा ने पहली बार नहीं साधा है। इससे पहले 2002 में विनय कटियार को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर भाजपा ने यह प्रयास किये थे, हालांकि तब यह समीकरण बहुत अधिक सफल नहीं साबित हुआ था। पार्टी कल्याण सिंह को अध्यक्ष के साथ मुख्यमंत्री तक बना चुकी है, वहीं ओम प्रकाश सिंह को भी 1999 में नौ महीने के लिए प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया था।
अब तक ब्राह्मण रहे आगे
इसे संयोग ही कहेंगे कि भाजपा की स्थापना के 36 वर्षों में 23 वर्ष ब्राह्मïण नेता ही पार्टी की प्रदेश इकाई की कमान संभाले रहे। 1980 में माधव प्रसाद त्रिपाठी पहले प्रदेश अध्यक्ष बने थे। वह चार वर्ष इस पद पर रहे। 1991 में कलराज मिश्र को यह जिम्मेदारी सौंपी गयी तो वे तीन बार में सात साल से अधिक प्रदेश अध्यक्ष रहे। केशरीनाथ त्रिपाठी व रमापति राम त्रिपाठी तीन-तीन साल और डॉ.लक्ष्मीकांत वाजपेयी चार साल अध्यक्ष रहे। सूर्यप्रताप शाही भी दो साल के लिए प्रदेश अध्यक्ष बने थे। तीसरे अध्यक्ष बने राजेंद्र गुप्ता 1989 से 1991 तक दो वर्ष यह पद संभाले रहे। 1997 में प्रदेश अध्यक्ष बने राजनाथ सिंह ने ढाई साल तक यह जिम्मेदारी संभाली।
शुचिता की सियासत को ठेंगा
भारतीय जनता पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष पद पर केशव मौर्य की तैनाती होते ही विपक्ष नेहमले तेज कर दिए। मौर्य के खिलाफ मुकदमों को मुद्दा बनाकर भाजपा की शुचिता व साफ छवि की राजनीति करने के दावों की हवा निकालने की कोशिश की है। बसपा महासचिव और नेता प्रतिपक्ष स्वामी प्रसाद मौर्य ने आरोप लगाया कि भाजपा की कथनी करनी में अंतर साबित हो गया। दागदार चेहरे आगे लाकर भाजपा दहशत की सियासत करना चाहती है। कांग्रेस के प्रदेश महासचिव द्विजेंद्र त्रिपाठी का कहना है कि भाजपा ने आपराधिक चरित्र वालों को उभार कर सत्ता पाने की ठानी है। रालोद के प्रदेश अध्यक्ष मुन्ना सिंह चौहान ने आरोप लगाया कि मौर्य पर गंभीर अपराधों में मुकदमे दर्ज हैं।
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