मथुरा हिंसा : मारा गया मथुरा का 'कंस' रामवृक्ष, पर जिंदा है नेटवर्क
जवाहर बाग में गाइड लाइन का पालन नहीं होना और एक दिन पहले आपरेशन को अंजाम देना बड़ी चूक है। इस पर कार्रवाई हो सकती है। उधर सत्याग्रह के नाम पर देश भर में रामवृक्ष के स्लीपिंग मॉड्यूल नेटवर्क को जीवंत कर सकते हैं।
वृंदावन [कार्तिकेय नाथ द्विवेदी]।मथुरा के आपरेशन जवाहर बाग में उच्चाधिकारियों की निर्धारित गाइड लाइन का पालन नहीं होना और एक दिन पहले ही आपरेशन को अंजाम देना बड़ी चूक है। इस पर कार्रवाई भी बड़ी हो सकती है। उधर सत्याग्रह के नाम पर नेटवर्क चलाने वाला रामवृक्ष देश भर में स्लीपिंग मॉड्यूल के अंदाज में नेटवर्क फैला रहा था। गिरफ्तार साथियों ने बताया कि वह उत्तर प्रदेश और बिहार में अपना बहुत बड़ा नेटवर्क खड़ा कर चुका था। हजारों समर्थक एक आवाज पर कुछ भी करने को तैयार रहते थे। ऑपरेशन जवाहर बाग में रामवृक्ष के साथ उसके कुछ साथी भले ही मारे गए हों या पकड़े गए हों, लेकिन उसके द्वारा बिछाई गई वैचारिक माइन्स अब भी खतरे का अलार्म बजा रही हैं। साथ रहे कथित सत्याग्रहियों ने जागरण को बताया कि जिस तरह आतंकी धर्म से जोड़कर जेहाद के नाम पर हिंसा कराते हैं वैसे ही मंसूबों को पूरा करने के लिए रामवृक्ष यादव ने भी यही रास्ता चुना था। जय गुरुदेव बाबा के आश्रम में पहुंचने वाले अनुयायियों के बीच पहचान समाजसेवी के रूप में बनाई। बाद में सत्संग के नाम पर प्रभावशाली बातों से लोगों को अपने जाल में फांसता चला गया। धीरे-धीरे इतने लोग जुटा लिए कि जो जवाहरबाग में कैंप बनाकर पुलिस-प्रशासन से लोहा ले सकें।
ऐसी थी जवाहरबाग की दिनचर्या
ऑपरेशन जवाहरबाग में घायल होने के बाद आगरा के एसएन मेडिकल कालेज और मथुरा जिला अस्पताल से रेफर होकर सौ शैय्या अस्पताल में भर्ती कराए गए खरौलीपुरे, ऊंचाहार, रायबरेली निवासी कौशल किशोर (60) ने जवाहरबाग की दिनचर्या के बारे में बताया। उसके मुताबिक, सुबह तकरीबन 4 बजे सभी को जागना होता था। आठ बजे रामवृक्ष पहले प्रार्थना सभा, फिर सत्संग करता था। प्रार्थना सभा में- संकल्प है हमारा, अधिकार लेकर रहेंगे, देश के शहीदों की कसम... पंक्तियों को उसके संग सैकड़ों की भीड़ गाती थी। सत्संग के कुछ देर बाद कथित सत्याग्रहियों को तीन रोटी और नमक मिलता था। फिर शाम करीब पांच बजे दाल, चावल और रोटी दी जाती थी। तीन महीने से पत्नी, बेटी और पोते के साथ जवाहर बाग में रह रहे डाहार, लखीमपुरखीरी निवासी श्रीराम (60) ने बताया कि रामवृक्ष से उसकी मुलाकात जयगुरुदेव आश्रम में हुई थी। रामवृक्ष के तेज दिमाग और विचार से प्रभावित होकर वह उससे •जुड़ा था। इसी तरह कसाद, कुशीनगर जिले के दयाशंकर (86) ने बताया कि गांव के दबंग मकान और खेत पर जाने के लिए रास्ता नहीं दे रहे थे। मुकदमेबाजी हुई, समस्या नहीं सुलझी।
आ सकता नया मुखिया
कुछ साल पहले जयगुरुदेव आश्रम में रामवृक्ष को कुछ लोगों ने समाजसेवी बताते हुए परिचय कराया। साथ ही बताया गया कि रामवृक्ष ने पूरे उप्र और बिहार में सैकड़ों लोगों को उनका अधिकार दिलाया है। बाबा जयगुरुदेव के ब्रह्मलीन होने के बाद वह रामवृक्ष से जुड़ गया। उसने बताया कि रामवृक्ष के विचारों को मानने वाले हजारों लोग उप्र और बिहारी के गांवों में हैं। वह सब टुकड़ों में समय-समय पर जवाहरबाग आते रहे हैं। अब भी हजारों लोग ऐसे हैं, जिनमें सरकारी व्यवस्था के टकराने का जहर रामवृक्ष ने भरा था। रामवृक्ष से जुड़े लोग कहते हैं कि उसके मारे जाने के बाद संगठन खत्म नहीं होगा। उप्र और बिहार में उसके हजारों समर्थक हैं। इस आशंका से इन्कार नहीं किया जा सकता कि इन्हीं में से कभी कोई नेतृत्व संभाल ले और ये नेटवर्क फिर से सक्रिय हो जाए।वृंदावन के सौ शैय्या अस्पताल में पुलिस बल के साए में हजारी लाल गुप्ता (57) गजीगनवा, रीवा, मिंटू (23) जांगीनवादा, बरेली, रामसिंघरी देवी (65) हथौली, मुजफ्फरपुर, बिहार, दयाशंकर (86) कसाद, कुशीनगर, श्रीराम (60) दाहाड़, लखीमपुरखीरी, विमला (40) सखवाना, राजपुर, बिहार और कौशल किशोर (60) ए खरौलीपुरे, ऊंचाहार, रायबरेली भर्ती कराए गए हैं।
बड़ी कार्रवाई का अंदेशा
जवाहर बाग में अब अफसरों की चूक उजागर होने लगी है। उच्चाधिकारियों की निर्धारित गाइड लाइन का पालन नहीं किया गया। सबसे महत्वपूर्ण बात यह कि आगरा के मंडलायुक्त ने तीन/चार जून को आपरेशन शुरू करने की बात कही थी लेकिन मुकामी पुलिस-प्रशासन ने दो जून को ही हड़बड़ी में रेकी के नाम पर सब कुछ चौपट कर दिया। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव इस मामले को लेकर गंभीर हैं और कोई बड़ी कार्रवाई हो सकती है। मथुरा से हटाए गये जिलाधिकारी ने फोर्स न मिलने और शासन को कई बार चिट्ठियां लिख कर भले ही अपना दामन बचाने की कोशिश की है लेकिन शासन और मथुरा के अधिकारियों के बीच 17 मई और 31 मई, 2016 को जवाहर बाग को कब्जा मुक्त कराने के लिए हुई वीडियो कांफ्रेंसिंग की रिपोर्ट से पता चलता है कि कागज में फूलप्रूफ योजना बनाने के बावजूद मथुरा पुलिस प्रशासन ने उसका अनुपालन नहीं किया। प्रमुख सचिव गृह देबाशीष पंडा और डीजीपी जावीद अहमद को अफसरों ने भरोसा दिया था कि वह जीरो कैजुअलिटी के साथ बाग को मुक्त करा देंगे। पंडा ने किसी भी स्थिति में जनहानि न होने का निर्देश दिया था।
पखवारे में स्वत: चले गये थे 1800 लोग
17 मई को मथुरा प्रशासन ने यह बताया कि दो हजार पुरुष, आठ सौ महिलाएं तथा पांच सौ के करीब बच्चे बाग में हैं जबकि 31 मई को एसएसपी ने यह जानकारी दी कि अब सिर्फ 1500 लोग शेष बचे हैं। यानी स्वत: 1800 लोग बाग छोड़कर जा चुके थे। जिलाधिकारी मथुरा के मुताबिक इनमें पांच सौ से ज्यादा अतिक्रमणकारी प्रशिक्षित थे जिनके लिए भारी पुलिस फोर्स की जरूरत थी। यह जानते हुए कि बाग में अतिक्रमणकारी प्रशिक्षित हैं एसपी सिटी, एसपी देहात, कुछ क्षेत्राधिकारी और थानाध्यक्षों के साथ प्रशिक्षु सिपाहियों को लेकर आपरेशन शुरू कर दिया गया जबकि मुख्यालय से 13 कंपनी आवंटित हुई थी और घटना के समय वहां 12 कंपनी पीएसी मौजूद थी। 31 मई को ही आठ कंपनी पीएसी पहुंच गयी थी।
बल प्रयोग की योजना नहीं थी
प्रमुख सचिव गृह देबाशीष पंडा ने अतिक्रमणकारियों से मुक्त कराये जाने की कार्ययोजना पूछी। वहीं डीजीपी जावीद अहमद ने यह पूछा जो अतिक्रमणकारी अंदर हैं यदि उनके पास असलहे हैं तो उनके फायर करने की स्थिति में क्या कार्ययोजना है? इस संबंध में एसएसपी मथुरा ने बताया कि द्वार पर संघर्ष की स्थिति में यह कोशिश होगी कि बल प्रयोग की आवश्यकता न पड़े। एसएसपी ने आरएएफ की आवश्यकता बतायी और आयुक्त आगरा ने महिला पुलिस की दो कंपनियों की आवश्यकता बतायी। डीजीपी ने आरएएफ उपलब्ध कराने पर सहमति व्यक्त की थी। अंदर किसी अतिक्रमणकारी महिला द्वारा खुद आग लगाये जाने की स्थिति में भी महिला आरक्षी द्वारा कंबल डालकर आग से बचाने तक की योजना बनायी गयी थी। यह भी तय किया था कि दमकल गाडिय़ां जवाहर बाग के बाहर तैनात रहेंगी और उनके साथ जेसीबी मशीने भी रहेंगी। लेकिन घटना के बाद जो हुआ वह किसी से छिपा नहीं है।
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