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कुरान और हदीस से साबित तीन तलाकः दारुल उलूम

तीन तलाक के मामले पर दारुल उलूम ने कहा है कि यह कुरान और हदीस से साबित है। इसमें किसी किस्म की तब्दीली नहीं की जा सकती।

By Nawal MishraEdited By: Published: Wed, 29 Jun 2016 08:35 PM (IST)Updated: Wed, 29 Jun 2016 08:52 PM (IST)

लखनऊ (जेएनएन)। तीन तलाक के मामले पर दारुल उलूम ने कहा है कि यह कुरान और हदीस से साबित है। इसमें किसी किस्म की तब्दीली नहीं की जा सकती। दैनिक जागरण ने दारुल उलूम से जानना चाहा कि कुरान और हदीस के आईने में क्या प्रावधान है? कुछ मुस्लिम महिला संगठनों की मुखालफत सही है या गलत? सुप्रीम कोर्ट में भी इस मसले पर सुनवाई चल रही है तो ऐसे में दारुल उलूम क्या राय रखता है?

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इस मसले पर दारुल उलूम के मोहतमिम मुफ्ती अबुल कासिम नोमानी के हवाले से संस्था के प्रेस प्रवक्ता अशरफ उस्मानी ने कहा कि तीन तलाक कुरान और हदीस और चारों मसलक के इमामों से साबित है। इसमें किसी किस्म की कोई तब्दीली नहीं की जा सकती। इस्लाम में मर्द को जिस तरह निकाह करने का हक है, उसी तरह तलाक देने का भी हक है। उन्होंने कहा कि मर्द और औरत के रिश्ता जोडऩे की प्रक्रिया ही निकाह है और तोडऩे की क्रिया को तलाक कहा जाता है। उन्होंने यह भी कहा कि मजहबी मामलों में किसी के मोर्चा खोलने से मसला बदल नहीं जाता। उन्होंने मिसाल देते हुए कहा कि अगर ङ्क्षहदुस्तान के मुसलमान मर्द और औरत मिलकर इस बात की ख्वाहिश जाहिर करें कि आइंदा रमजान जून माह के बजाय जनवरी या फरवरी माह में कर दिया जाए तो क्या ऐसा हो जाएगा। इसका इख्तियार किसी को भी नहीं है। सिर्फ मुतालबा करने से मजहब की बुनियादें नहीं बदली जा सकती हैं। उन्होंने न्यायपालिका में विश्वास जताते हुए कहा कि हमें अदालत पर यकीन है। हम समझते हैं कि अदालत मजहबी कानून को समझती है और वह कोई भी गलत फैसला नहीं दे सकती लेकिन अगर हुकूमत मुस्लिम पर्सनल लॉ में किसी भी किस्म का हस्तक्षेप करती है तो सहन नहीं किया जा सकता। हुकूमत को चाहिए कि वह मुस्लिम पर्सनल लॉ में दखलंदाजी न करे।


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