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    काशी के संगीत महाकुंभ में भिगोती रहीं स्वर लहरियां

    By Nawal MishraEdited By:
    Updated: Thu, 09 Apr 2015 08:26 PM (IST)

    वाराणसी के संकट मोचन संगीत समारोह संगीत महाकुंभ में पहली निशा को उठती स्वर लहरियों ने सुबह को प्रणाम कर ही विराम लिया। बुधवार की रात से शुरू होकर गुरुवार की भोर तक कलाकारों ने सुर लय ताल का कमाल दिखाया। लगभग तीन बजे उस्ताद अमजद अली खां के पुत्र

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    लखनऊ। वाराणसी के संकट मोचन संगीत समारोह संगीत महाकुंभ में पहली निशा को उठती स्वर लहरियों ने सुबह को प्रणाम कर ही विराम लिया। बुधवार की रात से शुरू होकर गुरुवार की भोर तक कलाकारों ने सुर लय ताल का कमाल दिखाया। लगभग तीन बजे उस्ताद अमजद अली खां के पुत्र अमान व अयान अली खान ने सरोद की झंकार बिखेरी। लोकधुन बजाया और राग मालकौंस में धमार व तीन ताल में गतकारी से जादू बिखेरा।

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    पुत्रों के कमाल से विभोर उस्ताद अमजद अली खान ने राग चारुकेशी में सरोद के तार छेड़े। गत बजाई, भजन 'वैष्णव जन तेने कहिए...' व 'रघुपति राघव राजाराम...' से भक्ति का रंग गाढ़ा किया। इनके साथ तबला पर संजू सहाय व अनुव्रत चटर्जी ने संगत की। मुंबई के पं. अजय पोहनकर ने राग विलास खानी तोड़ी में बड़ा ख्याल गाया। विलंबित एक ताल बंदिश 'पिय के घुंघरिया बाजे...' व 'कोयलिया काहे करत पुकार...' से हनुमत प्रभु को प्रणाम किया। कोलकाता से आए अनुव्रत चटर्जी ने तीन ताल में एकल तबला वादन किया। संतोष मिश्र ने सारंगी पर साथ दिया। इससे पहले पं. बिरजू महाराज का कथक, पं. हरिप्रसाद चौरसिया के बांसुरी की तान, पं. विश्वनाथ और गजलों के शहंशाह का शास्त्रीय गायन लोगों को झूमने पर विवश कर चुका था।

    दिलों पर दिन भर छाया रहा उस्ताद गुलाम अली का खुमार

    गजल गायकी के शहंशाह उस्ताद गुलाम अली खां का खुमार गुरुवार को भी श्रोताओं के दिलों पर छाया रहा। बुधवार को नगर में उतरने के बाद उन पर छाये भक्ति भाव का ही असर रहा कि उन्होंने पंच सितारा होटल का वैभव छोड़ महंत परिवार के तुलसीघाट स्थित अतिथि गृह में डेरा डाला। गंगा तट पर ही आरती देखी और शाम की नमाज भी पढ़ी, देर रात प्रस्तुति देने के बाद यहीं विश्राम भी किया। सुबह महंत परिवार से मिले। इस दौरान उस्ताद गुलाम अली श्रोताओं से मिले प्यार से गदगद दिखे। उन्होंने कहा ऐसा जिंदादिल शहर दुनिया में नहीं देखा। उन्होंने अगले साल फिर आने का वादा भी किया और दोपहर दो बजे विमान से गंतव्य के लिए प्रस्थान कर गए।

    वहीं रात के तीसरे पहर उनकी प्रस्तुति का खुमार लोगों के दिलों पर छाया रहा। उन्होंने बुधवार की रात लगभग दो बजे हनुमत प्रभु के चरणों में हाजिरी लगाई थी। इसमें गजल सम्राट ने प्रभु को राग काफी थाट की ठुमरी 'गोरी तेरे नयन कजर बिन काले...' अर्पित की। सुरों के खजाने से एक से एक तराने निकले और इसके ताब से मानों सरहदें पिघल गईं। उन्होंने इसे अपने भावों से जताया 'फासले इतने बढ़ जाएंगे सोचा न था, मैं उसे महसूस कर सकता था, छू सकता न था...'। 'रोज कहता हूं भूल जाऊं उसे, रोज ये बात भूल जाता हूं...', 'दिल में एक लहर सी उठी है...' और 'हमने सुना है इस बस्ती में दिलवाले भी रहते हैं...'। श्रोताओं की मांग पर 'चुपके चुपके रात दिन...', 'हंगामा है क्यूं बरपा...' और 'का करूं सजनी आए न बालम...' भी सुना कर दिलों में उतर गए। उनके हर गायन पर हर हर महादेव का उद्घोष गूंजता रहा। गुलाम अली श्रोताओं के भाव से इस कदर विभोर हुए कि कह बैठे अगले साल फिर आऊंगा, नए तराने ले आऊंगा।