वकालत की एबीसीडी तक नहीं जानते यूपी के लॉ ग्रेजुएट
कानून की डिग्री लेने के बाद भी 99 फीसद को चार-पांच साल तक कोर्ट-कचहरी में वकीलों के मुंशी की भूमिका निभानी पड़ रही है।
बरेली [अतीक खान]। नामी वकील और जज बनने की तमन्ना रखने वाले रुहेलखंड के लॉ ग्रेजुएट, असल में वकालत की एबीसीडी तक नहीं जानते हैं। हालात इस कदर बदतर हैं कि कानून की डिग्री लेने के बाद भी 99 फीसद को चार-पांच साल तक कोर्ट-कचहरी में वकीलों के मुंशी की भूमिका निभानी पड़ रही है। तब जाकर एफआइआर लिखाने, रिट दाखिल करने और बहस की जानकारी हासिल हो पाती है। शिक्षा के गिरते स्तर की ये चौंकाने वाली और कड़वी सच्चाई रुहेलखंड विश्वविद्यालय के एलएलएम विभाग में एसोसिएट प्रो.अमित सिंह के शोध में सामने आई है।
काबिल शिक्षकों की कमी : प्रो. अमित सिंह ने बरेली-मुरादाबाद मंडल के नौ जिलों में स्थापित 30 निजी और दो एडेड कॉलेजों में ‘विधि शिक्षा की दशा और दिशा’ विषय पर दो साल से ज्यादा समय तक शोध किया है। उनके शोध में ये निष्कर्ष निकला है कि कॉलेजों में प्रक्रियागत लॉ (दंड प्रक्रिया, सिविल प्रक्रिया, साक्ष्य विधि, ड्राफ्टिंग,) विषय पढ़ाने के लिए काबिल शिक्षक ही नहीं हैं। लॉ छात्रों को भूगोल-इतिहास की तरह पढ़ाया जाता है। इसलिए उनका विधि का कांसेप्ट भी क्लियर नहीं होता है। अपने शोध में वो स्पष्ट करते हैं कि बरेली, पीलीभीत, सम्भल, बिजनौर की जिला अदालतों में इन लॉ स्नातकों को जिरह तो दूर केस दाखिल करना भी नहीं आता है।
वे, ऐसे वकील तैयार करने का दोष कॉलेज और शिक्षकों के सिर मढ़ते हैं। वो बताते हैं कि निजी कॉलेजों में हालात और भी खराब हैं। बीए एलएलबी के तीन साल के कोर्स के दरम्यान छात्रों को एक बार भी रिपोर्टर नहीं पढ़ाया जाता है। उनके इस शोध ने रुहेलखंड परिक्षेत्र में उच्च शिक्षा विशेषकर कानून की के गिरते स्तर पर सुधार की बहस छेड़ दी है। रविवार को शाइनिंग लॉ टीचर ऑनलाइन ग्रुप पर सुधार को लेकर शिक्षाविदों में दिनभर मंथन चलता रहा।
ऐसे होगा सुधार ’ लॉ कॉलेज कक्षाएं समाप्त होने के बाद छात्रों को दो घंटे करियर गाइडेंस दें। ’ एक घंटे रोजाना अंग्रेजी भाषा की कक्षा पढ़ाएं। ’ लॉ छात्रों को अदालत का भ्रमण कराएं। ’ गेस पेपर से पढ़ाई पर बैन लगाया जाए। ’ छात्रों का नियमित कक्षा में आना सुनिश्चित कराया जाए। ’ कॉलेज अच्छी फैकल्टी रखें।
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