कल्याण ने पाट दी गिले शिकवे की खाई
लखनऊ। लोकसभा चुनाव में पूर्ण बहुमत के लिए जोर-आजमाइश कर रही भारतीय जनता पार्टी ने जिले में
लखनऊ। लोकसभा चुनाव में पूर्ण बहुमत के लिए जोर-आजमाइश कर रही भारतीय जनता पार्टी ने जिले में पार्टी की रार पर नियंत्रण कर लिया है। पूर्व मुख्यमंत्री और एटा के सासद कल्याण सिंह के व्यक्तिगत प्रयासों के बाद भीतरी कलह के डिब्बों में बंटी ट्रेन विरोधों को पार कर एक प्लेटफॉर्म पर आ गई है। पूर्व मुख्यमंत्री ने पहली पंक्ति के स्थानीय नेताओं से कहा है कि जो लोग बहक गए हैं उन्हें एक मौका दिया जाए।
कल्याण सिंह भाजपा के प्रदेश प्रभारी अमित शाह और प्रदेश अध्यक्ष डॉ. लक्ष्मीकात वाजपेयी के साथ प्रदेश के दौरे पर थे लेकिन इस बीच एटा और कासगंज जिलाध्यक्षों द्वारा दिए इस्तीफे के बाद जिले में कार्यकर्ताओं के बीच इस्तीफा देने की होड़ लग गई। जिसके चलते कल्याण बीच में दौरा छोड़कर मंगलवार को एटा पहुंचे। यहा उन्होंने मुख्य नेताओं से वार्ता कर इस्तीफा देने वाले कार्यकर्ताओं को एक मौका और देने को कहा। बुधवार को अपने शातिनगर स्थित आवास पर उन्होंने असंतुष्ट भाजपाइयों को बुलाया। पार्टी सूत्रों के मुताबिक कुछ ने पूर्व मुख्यमंत्री के समक्ष अपनी स्थिति साफ करते हुए कहा कि उनका नाम बिना मर्जी के इस्तीफा देने वालों की सूची में दे दिया था। इधर एटा और कासगंज के पूर्व जिलाध्यक्षों ने समर्थकों से इस्तीफा न देने की अपील की है। पार्टी के एटा जिलाध्यक्ष सुरेंद्र प्रकाश गुप्ता पहले ही बयान जारी कर कह चुके हैं कि किसी कार्यकर्ता का इस्तीफा स्वीकार नहीं किया जाएगा। प्रदेश नेतृत्व ने सिर्फ एटा के पूर्व जिलाध्यक्ष पंकज गुप्ता और कासगंज के जिलाध्यक्ष अनिल पुंढीर के इस्तीफे स्वीकार किए हैं। कासगंज में जिले की बागडोर केपी सिंह को सौंपी जा चुकी है। इससे पूर्व कल्याण सिंह जब एटा पहुंचे तो एटा-कासगंज रोड पर नवनियुक्त जिलाध्यक्ष सुरेंद्र प्रकाश गुप्ता ने लंबे काफिले के साथ उनकी अगवानी की। यही स्थिति कासगंज में भी रही वहा पूर्व जिलाध्यक्ष पुंढीर भी मौजूद थे। एटा के मीडिया प्रभारी बल्देव सिंह राठौर ने बताया कि पूर्व मुख्यमंत्री कार्यकर्ताओं से मिलने आए थे। संगठन की मजबूती के लिए उन्होंने सभी से एक जुट होकर पार्टी का काम करने को कहा है।
दो विकल्प : आओ या जाओ
जिन पदाधिकारियों ने इस्तीफे की पेशकश की है उनके पास अब सिर्फ दो विकल्प हैं। या तो वे जाएं या फिर एक मंच पर आएं। कहा तो यह तक जा रहा है कि असंतुष्ट कार्यकर्ता अगर नहीं मानते हैं तो उनके खिलाफ पार्टी अनुशासनहीनता की कार्यवाही कर सकती है।
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