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    अंतरिक्ष में और बढ़ेगा दबदबा

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    Updated: Sun, 09 Nov 2014 11:05 AM (IST)

    लखनऊ (रूमा सिन्हा)। कम्यूनिकेशन व रिमोट सेंसिंग सेटेलाइट के बाद इंडियन स्पेस रिसर्च आर्गनाइजेशन (इ

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    लखनऊ (रूमा सिन्हा)। कम्यूनिकेशन व रिमोट सेंसिंग सेटेलाइट के बाद इंडियन स्पेस रिसर्च आर्गनाइजेशन (इसरो) अब नेवीगेशन सेटेलाइट छोड़ने की तैयारी में है। अभी भारत नेवीगेशन के लिए अमेरिकी सेटेलाइट पर निर्भर है। यदि अमेरिका चाहे तो भारत को यह सर्विस देना कभी भी बंद कर सकता है। यही वजह है कि भारत कम्यूनिकेशन व रिमोट सेंसिंग में आत्मनिर्भर होने के बाद नेवीगेशन के क्षेत्र में भी आत्मनिर्भर होना चाहता है। ये जानकारी इसरो अहमदाबाद के वरिष्ठ वैज्ञानिक डा.एसके शर्मा ने दी।

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    डा.शर्मा बायोटेक पार्क में कल्याणी जियोस्पेशियल के प्रो.आरएस चतुर्वेदी की स्मृति में आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी में भाग लेने लखनऊ आए थे। उन्होंने बताया कि अभी नेवीगेशन के लिए जियोग्राफिकल पोजीशनिंग सिस्टम (जीपीएस) का इस्तेमाल किया जाता है। आज हर जगह जीपीएस का प्रयोग किया जाता है। उन्होंने कहा कि भारत रिमोट सेंसिंग और कम्यूनिकेशन के क्षेत्र में आत्मनिर्भर हो चुका है, लेकिन नेवीगेशन के लिए हम अमेरिकी सेटेलाइट पर निर्भर हैं। नेवीगेशन के बढ़ते उपयोग को देखते हुए यह बेहद जरूरी हो गया है कि इस क्षेत्र में भी आत्मनिर्भर हुआ जाए। इस कार्यक्रम के तहत सात सेटेलाइट छोड़े जाने हैं, जिसमें से तीन छोड़े जा चुके हैं और चार पर काम चल रहा है। यह कार्य दो साल के भीतर पूरा करना है। इसके बाद हमारी अमेरिकी नेवीगेशन सेटेलाइट पर निर्भरता समाप्त हो जाएगी। चंद्रयान-2 पर भी काम चल रहा है। दो साल के अंदर इसे भी लांच कर दिया जाएगा। बताया कि अंतरिक्ष में भेजी जाने वाली सेटेलाइट में जो कैमरे लगाए जाते हैं वह अहमदाबाद इसरो में तैयार होते हैं। मंगलयान से जुड़े अनुभवों के बारे में बताया कि इस समय यान इलिप्टीकल ऑरबिट में है और कुछ ही दिनों में उसे सर्कुलर आरबिट में स्थापित किया जाएगा, जिसके पश्चात वह पूरी तरह से कार्य करना शुरू कर देगा। मंगलयान ने जो पहला फोटो भेजा वह कैमरा उन्हीं के सेंटर में तैयार किया गया था। उन्होंने कहा कि अंतरिक्ष विज्ञान दिनोंदिन एडवांस हो रहा है। अब हर क्षेत्र में रिमोट सेंसिंग तकनीक का उपयोग बढ़ रहा है। यही वजह है कि आने वाले समय में जीआइएस में नौकरी के बेहतर अवसर प्राप्त होंगे। ऐसे छात्र जो साइंस ग्रेजुएट हों, इंजीनियर हों जियोइंफॉरमेटिक्स में परास्नातक कोर्स करके बेहतर कॅरिअर बना सकते हैं।