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    योगी सरकार के सौ दिनः कर्ज माफी बड़ा फैसला, बड़ी चुनौती

    By Ashish MishraEdited By:
    Updated: Wed, 28 Jun 2017 01:37 PM (IST)

    सत्ता संभालने से लेकर अब तक योगी सरकार ने जिस विषय पर सबसे ज्यादा माथापच्ची की, वह किसानों की ऋण माफी का ही मुद्दा है। हालांकि शासन की चुप्पी ने असमंजस का माहौल भी बनाया।

    योगी सरकार के सौ दिनः कर्ज माफी बड़ा फैसला, बड़ी चुनौती

    लखनऊ [राजीव दीक्षित]। विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा का सबसे चर्चित चुनावी वादा था लघु व सीमांत किसानों के फसली ऋण की माफी और अब जबकि योगी सरकार के सौ दिन पूरे होने को आये हैं तो इसकी भूमिका भी लगभग तैयार है। किसानों की उम्मीदें बजट सत्र पर टिकी हैं। क्योंकि सत्ता संभालने से लेकर अब तक योगी सरकार ने जिस विषय पर सबसे ज्यादा माथापच्ची की, वह किसानों की ऋण माफी का ही मुद्दा है। हालांकि शासन की चुप्पी ने असमंजस का माहौल भी बनाया। 

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    भाजपा ने अपने लोक कल्याण संकल्प पत्र में वादा किया था कि उत्तर प्रदेश में सत्ता में आने पर वह लघु और सीमांत किसानों के फसली ऋण माफ करेगी। पार्टी के सबसे बड़े चुनावी वादे की अहमियत तब और बढ़ गई जब लखीमपुर खीरी की चुनावी सभा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने घोषणा की कि प्रदेश में भाजपा सरकार बनने पर कैबिनेट की पहली बैठक में किसानों की कर्जमाफी का फैसला किया जाएगा। मोदी की घोषणा पर योगी सरकार ने अपनी पहली कैबिनेट बैठक में अमल तो किया लेकिन कुछ शर्तों के साथ।

    पहली कैबिनेट बैठक में योगी सरकार ने 31 मार्च 2016 तक प्रदेश में लघु व सीमांत किसानों द्वारा लिये गए फसली ऋण को एक लाख रुपये की सीमा तक माफ करने का फैसला किया। सरकार के मुताबिक इस फैसले से सूबे के 86 लाख से ज्यादा लघु व सीमांत किसानों को फायदा मिलेगा। वहीं इस फैसले को अमली जामा पहनाने के लिए 36,359 करोड़ रुपये की दरकार होगी। कर्ज माफी की प्रक्रिया तय करने के लिए मुख्य सचिव की अध्यक्षता में कमेटी गठित करने का भी निर्णय हुआ।


    सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों के बोझ तले कराहती सरकार ने किसानों की कर्ज माफी के भारी-भरकम खर्च का इंतजाम करने के लिए बांड जारी कर रकम जुटाने की सोची। तय सीमा से अधिक कर्ज पहले ही ले चुकने के कारण भारतीय रिजर्व बैंक ने राज्य सरकार को बांड जारी करने की मंजूरी देने से इंकार कर दिया। काफी गुणा-भाग करने के बाद सरकार ने किसानों की कर्ज माफी के खर्च को अपने संसाधनों से वहन करने का फैसला किया है। देखना होगा कि अपने पहले बजट में सरकार कैसे यह इंतजाम करती है।


    संसाधनों के इंतजाम के साथ ही किसानों की कर्ज माफी की प्रक्रिया तय करना भी कठिन चुनौती थी। आखिरकार 22 जून को हुई कैबिनेट बैठक में सरकार ने मुख्य सचिव की अध्यक्षता में गठित कमेटी द्वारा किसानों की कर्जमाफी के लिए तय की गई प्रक्रिया पर मुहर लगा दी। यह बात और है कि सरकार ने अपने इस फैसले को गोपनीय रखा। इस वजह से कर्ज माफी को लेकर किसानों में असमंजस बरकरार है। यह तय है कि किसानों को कर्ज माफी का लाभ योगी सरकार के पहले बजट के पारित होने के बाद ही मिलेगा।

    किसानों को मिलीं नोटिस तो हरकत में आयी सरकार
    इधर सरकार किसानों की कर्ज माफी के लिए संसाधनों के इंतजाम और ऋण माफी की प्रक्रिया तय करने की चुनौतियों से जूझ रही थी और उधर बैंकों ने बकायेदार किसानों को कर्ज वसूली के लिए नोटिस भेजनी शुरू कर दीं। जब मीडिया में यह खबरें आयीं तो मुख्यमंत्री को निर्देश देना पड़ा कि बैंक किसानों से कर्ज वसूली के लिए उन्हें नोटिस न जारी करें। मुख्यमंत्री के फरमान पर संस्थागत वित्त विभाग ने बैंकों को किसानों को नोटिस न जारी करने का निर्देश दिया है।

    योगी ने संभाली स्टीयरिंग
    सरकार ने कर्ज माफी के तौर-तरीके को लेकर भले ही अपने पत्ते न खोले हों लेकिन इसे लेकर उसकी संजीदगी का अंदाज इस बात से लगाया जा सकता है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने खुद पूरे मसले की कमान संभाल रखी है। किसानों की कर्ज माफी में बैंकों की अहम भूमिका है। यही वजह हैै कि 28 जून को होने वाली राज्य स्तरीय बैंकर्स समिति की बैठक में योगी खुद शामिल होंगे।