बसपा विधायक उमाशंकर सिंह ने गंवा दी सदस्यता
उमाशंकर सिंह बलिया के रसड़ा सीट से बहुजन समाज पार्टी के विधायक है। उन पर विधायक होने के बावजूद अपनी ही फर्म में ठेकेदारी होने का आरोप लगा है।
लखनऊ (जेएनएन)। राज्यपाल राम नाईक ने बलिया की रसड़ा सीट से बसपा के टिकट पर विधायक चुने गए उमाशंकर सिंह की विधानसभा की सदस्यता समाप्ति का आदेश दिया है। उमाशंकर की सदस्यता उनके विधायक निर्वाचित होने की तारीख यानी छह मार्च, 2012 से समाप्त करने का निर्णय दिया गया है। राज्यपाल ने अपना यह आदेश मुख्य सचिव राहुल भटनागर से राजकीय गजट में अविलम्ब प्रकाशित करने को कहा है। उमाशंकर पर विधायकी के दौरान अपने पद का दुरुपयोग करके सरकारी ठेके लेने का आरोप प्रमाणित हुआ है।
उमाशंकर की सदस्यता के बारे में बीती 10 जनवरी को भारत निर्वाचन आयोग से मिली रिपोर्ट के आधार पर राज्यपाल ने संविधान के अनुच्छेद 192 (1) के तहत दी गईं शक्तियों का प्रयोग करते हुए यह निर्णय दिया। वर्ष 2012 में हुए विधानसभा चुनाव में जीतने वाले विधायकों को भारत निर्वाचन आयोग ने छह मार्च, 2012 को निर्वाचित घोषित किया था।
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यह था मामला
एडवोकेट सुभाष चंद्र सिंह ने 18 दिसंबर, 2013 को शपथपत्र देकर उत्तर लोकायुक्त व उप लोकायुक्त अधिनियम, 1975 के तहत उमाशंकर सिंह के खिलाफ आरोप लगाया था कि विधायक चुने जाने के बाद भी वह सरकारी ठेके लेकर सड़क निर्माण करते आ रहे हैं। तत्कालीन लोकायुक्त न्यायमूर्ति एनके मेहरोत्रा ने शिकायत की जांच में उमाशंकर सिंह को दोषी पाते हुए 18 फरवरी, 2014 को अपनी रिपोर्ट मुख्यमंत्री को भेजी थी।
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अखिलेश ने राज्यपाल को भेजी लोकायुक्त की रिपोर्ट
मुख्यमंत्री ने यह प्रकरण भारत निर्वाचन आयोग के परामर्श के लिए राज्यपाल को संदर्भित किया गया। तत्कालीन राज्यपाल बीएल जोशी ने भारत निर्वाचन आयोग को यह मामला तीन अपै्रल, 2014 को संदर्भित किया था। निर्वाचन आयोग की ओर से तीन जनवरी, 2015 को अभिमत प्राप्त होने पर उमाशंकर सिंह ने राज्यपाल राम नाईक के सामने अपना पक्ष प्रस्तुत करने के लिए समय दिये जाने का अनुरोध किया था। उनके अनुरोध को स्वीकार करते हुए राज्यपाल ने 16 जनवरी, 2015 को उनका पक्ष सुना। राज्यपाल ने आरोपों को सही पाते हुए 29 जनवरी, 2015 को उमाशंकर सिंह को विधायक निर्वाचित होने की तारीख से विधानसभा की सदस्यता से अयोग्य घोषित कर दिया था। राज्यपाल के निर्णय को उमाशंकर सिंह ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। कोर्ट ने 28 मई, 2015 को निर्णय दिया कि निर्वाचन आयोग प्रकरण में स्वयं शीघ्रता से जांच कर निर्णय से राज्यपाल को अवगत कराए और उसके बाद राज्यपाल प्रकरण में संविधान के अनुच्छेद 192 के तहत अपना निर्णय लें।
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उच्च न्यायालय के आदेश के क्रम में भारत निर्वाचन आयोग ने उमाशंकर प्रकरण में जांच की। निर्वाचन आयोग में निर्णय में देर होने के कारण राज्यपाल ने नौ अगस्त, 2016 को विधायक की सदस्यता के संबंध में चुनाव आयोग को पत्र भेजा था। इसके जवाब में निर्वाचन आयोग ने एक सितंबर, 2016 को राज्यपाल को पत्र द्वारा अवगत कराया था कि प्रकरण की जांच पूर्ण होने पर आयोग शीघ्र उन्हें अभिमत से अवगत कराएगा। बहरहाल राज्यपाल ने 16 सितंबर, 2016 को इस बारे में मुख्य चुनाव आयुक्त से टेलीफोन पर बात भी की थी। बातचीत के दौरान मुख्य निर्वाचन आयुक्त ने प्रकरण पर शीघ्र निर्णय लेने की बात कही थी। राज्यपाल ने सात जनवरी, 2016, 23 मई, 2016, पांच नवंबर, 2016 और 14 दिसंबर, 2016 को निर्वाचन आयोग को स्मरण पत्र भी भेजे थे।
शिकायतकर्ता हो गए स्वर्गवासी
बलिया के जिन दिव्यांग सुभाष चंद्र क्रांतिकारी की शिकायत पर देश में पहली बार दो विधायकों की सदस्यता खत्म होने का निर्णय हुआ, वह लोकायुक्त के यहां से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक लड़ी गई अपनी लड़ाई का परिणाम देखने के लिए जीवित नहीं हैं। कुछ महीनों पहले बीमारी के चलते उनका निधन हो गया। क्रांतिकारी ने वर्ष 2014 में तत्कालीन लोकायुक्त न्यायमूर्ति एनके मेहरोत्रा के यहां परिवाद दाखिल कर कहा था कि विधायक निर्वाचित होने के बाद उमाशंकर सिंह ने अपनी कंपनी छात्र शक्ति इंफ्रास्ट्रक्चर के जरिये बांदा, वाराणसी, सोनभद्र, मीरजापुर, बलिया, सुनौली, हमीरपुर में पीडब्ल्यूडी से कई सौ करोड़ रुपये के ठेके हासिल किए। 2012 से पहले बसपा सरकार में भी इनकी कंपनी को कई हजार करोड़ के ठेके मिले थे। उन कार्यो की गुणवत्ता भी खराब थी। लोकायुक्त एनके मेहरोत्रा ने इंजीनियरों से ठेकों का विवरण मांगा तो पता चला कि बजरंग बहादुर ने भी भाजपा से विधायक निर्वाचित होने के बाद पीडब्ल्यूडी के ठेके हासिल किए हैं।
यह थी लोकायुक्त की रिपोर्ट
तत्कालीन लोकायुक्त एनके मेहरोत्रा ने 18 फरवरी, 2014 को राज्यपाल को भेजी रिपोर्ट में कहा था कि रसड़ा (बलिया) से बसपा विधायक उमाशंकर सिंह और फरेंदा से भाजपा विधायक बजरंग बहादुर सिंह जनप्रतिनिधि निर्वाचित होने के बाद भी सरकारी ठेके हासिल करते रहे हैं। रिपोर्ट में कहा गया था कि कोई भी जनप्रतिनिधि निर्वाचित होने के बाद सरकारी ठेका, पट्टा नहीं ले सकता है। जिस कंपनी में उसका मालिकाना हक है, वह भी ठेके नहीं ले सकती है। न्यायमूर्ति मेहरोत्रा ने चुनाव आयोग से परामर्श के बाद दोनों की सदस्यता रद करने की उद्घोषणा करने की संस्तुति की थी।
बजरंग पहले ही पूर्व हो गए
उमाशंकर के साथ महराजगंज की फरेंदा सीट केभाजपा विधायक बजरंग बहादुर सिंह की भी सदस्यता राज्यपाल राम नाईक ने एक साथ रद की थी, मगर उमाशंकर हाईकोर्ट से स्टे ले गए थे जबकि बजरंग बहादुर को स्टे नहीं मिला था। इस सीट पर उपचुनाव भी हो गया। बजरंग बहादुर उपचुनाव हार गए और उनकी सीट पर सपा जीत गई थी।
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