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    Mathura Clash: पहले ऑपरेशन अब डैमेज कंट्रोल, बदली अफसरों की जुबां

    By Nawal MishraEdited By:
    Updated: Sat, 04 Jun 2016 08:34 AM (IST)

    मथुरा के जवाहरबाग में अफसरों की शहादत के बाद पुलिस डैमेज कंट्रोल में जुटी है। ऑपरेशन के एक घंटे पहले पूरी तैयारी की बात करने वाले अफसरों के चेहरों पर खौफ है। अफसरों के लिए पुलिस मुखिया का बयान राहत भरा है।

    • गुरुवार शाम 4.30 बजे-डीएम-एसएसपी ने कहा था हम तैयार, कभी भी शुरू हो सकता ऑपरेशन।
    • शुक्रवार 12.30 बजे--डीजीपी बोले नहीं थी तैयारी की गई थी रेकी, दो दिन बाद होना था ऑपरेशन।
    • परिणाम-दो जांबाज अफसर शहीद, 23 पुलिसकर्मी घायल, जवाहरबाग में नुकसान,कब्जा खाली।
    • सवाल-आखिर क्यों बदल रही कहानी? नाकामी पर क्यों पर्दा? कौन किसको और क्यों बचा रहा?
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    लखनऊ। मथुरा के जवाहरबाग में दो अफसरों की शहादत के बाद पुलिस का डैमेज कंट्रोल में जुटी है। ऑपरेशन के एक घंटे पहले पूरी तैयारी की बात करने वाले अफसरों के चेहरों पर खौफ है। लापरवाही के आरोपों से घिरे अफसरों के लिए पुलिस मुखिया का बयान राहत लेकर आया। पुलिस महानिदेशक ने खुद कहा कि ऑपरेशन नहीं था, मगर सवाल अब भी वहीं हैं कि फिर डीएम राजेश कुमार और एसएसपी राकेश सिंह ने कल कैसे कह दिया कि पूरी तैयारी के साथ ऑपरेशन जवाहर बाग शुरू कर रहे हैं। सही है कि पुलिस और प्रशासन कथित सत्याग्रहियों की ताकत को नाप ही नहीं सका।

    जवाहर बाग में कब्जा 18 अप्रैल 2014 को हुआ था। पहले ही दौर में कथित सत्याग्रहियों ने बाग को तहस-नहस कर कर्मचारियों के साथ मारपीट की। पुलिस मुकदमों की फेहरिस्त बढ़ाती रही, मगर कार्रवाई की हिम्मत नहीं जुटा सकी। हाईकोर्ट का आदेश एक साल पहले आया, मगर कब्जा नहीं हटाया। दो माह से ऑपरेशन जवाहर बाग की तैयारियां चल रहीं थीं। स्थानीय से लेकर शासन तक के अफसर मंत्रणा और तैयारियों में शामिल थे, इसके बावजूद ऑपरेशन को क्यों हल्के में लिया गया? पहले सेना की मदद लेने की तैयारी थी, इसके लिए बैठकें हुईं और फिर अचानक इरादा क्यों बदल दिया गया? नेशनल और स्थानीय मीडिया से खचाखच भरे पुलिस लाइंस सभागार में कथित सत्याग्रहियों के मददगारों पर डीजीपी ने मनोरंजन कक्ष से बाहर निकलते समय एक लाइन में जवाब दिया, हमें मददगार के बारे में पता है, कार्रवाई होगी। इस जवाब पर एक बार फिर सवाल उठ रहा है कि मददगार के बारे में पता है, तो पहले उस पर कार्रवाई क्यों नहीं की गई?

    धधकते जवाहर बाग में दौड़ते रहे अफसर

    मथुरा के जवाहर बाग गेट पर लकडिय़ों का ढेर था। धधकती आग और रात के सन्नाटे को चीरती पुलिस गाडिय़ों के सायरन की आवाज गूंज रही थी। दो जांबाज अफसरों की शहादत के बाद देर रात जवाहर बाग के कुछ ऐसे ही हालात थे। रात भर यहां अफसरों के आने-जाने का सिलसिला और पुलिस का सर्च ऑपरेशन चलता रहा। दो साल से कथित सत्याग्रहियों के कब्जे वाले जवाहर बाग में गुरुवार देर रात विस्फोटों के बाद लपटें रह-रहकर उठ रही थीं। गेट से लेकर अंदर तक बाग में पुलिस ही पुलिस थी। आधा दर्जन से अधिक टीमें जवाहर बाग में अलग-अलग इलाकों में सर्च कर रही थीं। एक-एक कर पहले कथित सत्याग्रहियों को हिरासत में लेकर अस्थाई जेलों में भिजवाया गया, फिर शुरू हुई लाशों की तलाश। रात 1.30 बजे अंदर पुलिस अफसरों की टोली आठ लाशें देख चुकी थी। अधिकांश लाशें आग से जली थीं। कुछ सिर में डंडों की चोटों से मारे गए। रात दो बजे आठ लाशों को पोस्टमार्टम हाउस ले जाया गया। रात 2.30 बजे एडीजी (कानून व्यवस्था) दलजीत सिंह चौधरी बाग में पहुंचे और स्थिति का जायजा लिया। उनके जाने के बाद वहां खड़ी दर्जनभर से अधिक दमकलें एक साथ जवाहर बाग में ले जाई गईं। वहां तब तक पेड़ और कूड़े से लेकर उपद्रवियों का सारा सामान जल चुका था। इसके बाद भी आग ठंडी करने में दमकलों को सुबह हो गई।