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    चार दिन पहले दिया था 'अल्टीमेटम'

    By Edited By:
    Updated: Fri, 17 Aug 2012 06:39 PM (IST)

    -उपद्रवियों ने गौतम बुद्ध पार्क की प्रतिमा के पास लगा दिया था बैनर

    -मूर्ति तोड़ देने की दी थी चेतावनी, प्रशासन ने ही हटवाया था

    जागरण संवाददाता, लखनऊ: पक्के पुल से शुरू हुआ बवाल विधान भवन तक जा पहुंचा, लेकिन प्रशासन उसे रोकने में नाकाम रहा। ऐसे हालात तब उत्पन्न हुए, जब उपद्रवियों ने चार दिन पहले ही प्रशासन को अपने इरादे से वाकिफ करा दिया था। पार्क में गौतम बुद्ध की मूर्ति के पास ही बैनर लगाया गया था। मूर्ति पर कालिख पोतने का भी प्रयास किया गया था। प्रशासन ने ही बैनर हटवाया और मूर्ति साफ कराई थी। उसके बावजूद किसी ने उपद्रवियों की चेतावनी को गंभीरता से नहीं लिया। नतीजा, शुक्रवार को हुए उपद्रव के रूप में सामने आया।

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    गौतम बुद्ध पार्क के कर्मचारी बताते हैं कि चार दिन पहले कुछ लोग आए थे। उनके साथ एक मीडियाकर्मी भी था। मूर्ति के पास बैनर लगाया और कालिख भी पोतने का प्रयास किया था। यही नहीं चार दिन बाद मूर्ति तोड़ने की भी धमकी दी थी। पुलिसकर्मी बैनर ले गए थे। मूर्ति भी साफ करवा दी थी। मीडियाकर्मी ने किसी से फोन पर यह भी कहा था कि मामला आज रोक दिया गया है। उसके बाद सभी लोग चले गए थे। शुक्रवार को अलविदा की नमाज के बाद जो मंजर सामने आया। उसके सूत्रधार वही लोग माने जा रहे हैं, जिन्होंने बैनर लगाया था। हैरत की बात यह है कि पार्क के कर्मचारियों की मानें तो चार दिन पहले हुए वाकये की जानकारी पुलिस अधिकारियों के अलावा जिलाधिकारी को भी थी। इसके बावजूद उपद्रव रोकने के कोई पुख्ता इंतजाम नहीं किए गए। पुलिस व प्रशासन के अधिकारी शुक्रवार की सुबह से व्यवस्था चाक चौबंद होने के बड़े-बड़े दावे कर रहे थे, लेकिन दोपहर बाद सब कुछ सामने आ गया। पक्के पुलिस से हंगामा करते हुए उपद्रवी विधान भवन तक पहुंच गए। रास्ते में पुलिस से झड़पें हुई। मारपीट, हाथापाई और लाठीचार्ज तक हुआ, लेकिन पुलिस व प्रशासन उपद्रवियों को विधान भवन तक पहुंचने से रोक नहीं पाया। यही नहीं गौतम बुद्ध पार्क तक हंगामा करने वाले के पहुंचने तक पुलिस व प्रशासनिक अधिकारी यही नहीं समझ पाए कि माजरा क्या है? तोड़फोड़ व आगजनी शुरू होने के बाद पीएसी व आरएफ ने पुलिस के साथ मिलकर मोर्चा संभाला, लेकिन तब तक माहौल बिगड़ चुका था।

    फिर फेल हुई खुफिया पुलिस

    अलविदा की नमाज अदा होने के बाद पुलिस व प्रशासन के अधिकारियों ने राहत की सांस ली। सभी का यही कहना था कि सब कुछ शांति से निपट गया, लेकिन अगले ही पल हालात बिगड़ गए। दरअसल अफसरों को इस बात का अंदेशा ही नहीं था कि बवाल हो जाएगा। माना जा रहा है कि एक बार फिर खुफिया पुलिस फेल साबित हुई। सवाल यह भी है कि अगर खुफिया पुलिस ने अफसरों को सूचना दी तो उससे निपटने की तैयारी क्यों नहीं की गई थी? गौरतलब है कि पूर्व मुख्यमंत्री मायावती की मूर्ति तोड़े जाने में भी खुफिया पुलिस की लापरवाही सामने आई थी। एक एसआइ को निलंबित भी किया गया था।

    नमाज से पहले ही बन गई थी रणनीति

    बवाल करने वालों के हाथों में टेढ़ी सरिया व बांका था। वे डंडे भी लहरा रहे थे। उन्होंने सरिया मारकर कई लोगों को मामूली रूप से जख्मी भी किया, लेकिन वे वहां से चुपचाप चले गए। इससे साफ है कि अलविदा की नमाज से पहले ही बवाल करने की रणनीति बना ली गई थी।

    महिलाओं व बच्चों को भी नहीं

    बख्शा

    हंगामा कर रहे उपद्रवियों ने राहगीरों में शामिल महिलाओं व बच्चों को भी नहीं बख्शा। जो भी मिला, वही पीटा गया। बसों में सवार यात्रियों से उपद्रवियों ने अभद्रता की और उनका सामान भी लूट लिया। पार्क की गार्ड सीमा को तो बेरहमी से पीटा और महिला पर्यटक को भी नहीं बख्शा।

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    ऐसा नहीं है कि सुरक्षा के इंतजाम नहीं किए गए। पब्लिक प्रॉपर्टी की सुरक्षा के लिए गार्ड है। इसके बाद भी अलग से इंतजाम किए गए थे। आज की घटना अचानक हुई, फिर भी स्थिति पर काबू कर लिया गया है।

    अनुराग यादव, जिलाधिकारी

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