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    बाघ के शिकारियों का केस 36 साल से लंबित

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    Updated: Wed, 08 Oct 2014 09:57 AM (IST)

    लखनऊ। गोरखपुर जिले का हिस्सा रहे निचलौल रेंज (सोहगी बरवा वन्य जीव प्रभाग) में 1978 में हिरन ...और पढ़ें

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    लखनऊ। गोरखपुर जिले का हिस्सा रहे निचलौल रेंज (सोहगी बरवा वन्य जीव प्रभाग) में 1978 में हिरन का शिकार करने गए शिकारियों ने राष्ट्रीय पशु बाघ को गोलियों से भून डाला। वन जीव संरक्षण अधिनियम 1972 की धारा 51 (1) के तहत तत्कालीन निचलौल थाने (अब महराजगंज जिले का हिस्सा) में मुकदमा दर्ज किया गया। घटना के 36 साल बाद भी यह मुकदमा मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट गोरखपुर की अदालत में लंबित है। प्रभावी पैरवी के अभाव में तारीख दर तारीख लग रही है।

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    देवरिया के खड्डा क्षेत्र (कुशीनगर जिले का हिस्सा) के ग्राम भैंसहा हरिहरपुर निवासी पारस मणि ने थाने में सूचना दी थी कि निचलौल रेंज के गंडक ब्लाक डोमाबीट में एक मादा बाघ का शव मिला है। पता चला कि खड्डा क्षेत्र के ग्राम भेड़िहारी निवासी राजेंद्र सिंह, शंकर चौबे, राम अधार सिंह, खड्डा चीनी मिल के मैनेजर, केन मैनेजर, कृष्ण प्रताप सिंह व राजेन्द्र प्रसाद तीन फरवरी 1978 की रात में हिरन का शिकार करने जंगल में जीप से गए थे। एक हिरन का शिकार कर उसे जीप में लाद चुक थे। दूसरे हिरन को लाद रहे थे कि जीप की रोशनी में एक बाघ दिख गया। अधाधुंध फायरिंग से बाघ की मौत हो गई।

    सीजेएम गोरखपुर की कोर्ट में चल रहे इस मुकदमें में अभियुक्त राजेंद्र सिंह और राम अधार सिंह की ओर से दरख्वास्त तो पड़ती है, परंतु अन्य सभी अभियुक्तों की ओर से कोई आता नहीं। उनके विरुद्ध सितंबर 2012 में जारी किया गया गैर जमानती वारंट यथावत है। अभियुक्त किस हालत में हैं यह जानने की न पुलिस को चिंता है और न वन विभाग को।