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केले की खेती ने बदली किसानों की ¨जदगी

लखीमपुर : जिले में धौरहरा, निघासन व मितौली क्षेत्र में किसानों ने परंपरागत खेती के साथ ही अब केले क

By Edited By: Published: Sun, 17 May 2015 08:46 PM (IST)Updated: Sun, 17 May 2015 08:46 PM (IST)

लखीमपुर : जिले में धौरहरा, निघासन व मितौली क्षेत्र में किसानों ने परंपरागत खेती के साथ ही अब केले की खेती को प्राथमिकता देनी शुरू कर दी है। टिश्यू कल्चर विधि ने केले का उत्पादन बढ़ाया है। टिश्यू कल्चर से खेती करने वाले किसान मालामाल हो रहे हैं। खीरी जिले में पिछले दो तीन वर्षों से केले की खेती के प्रति लोगों का आर्कषण बढ़ा रहा है। बायोटेक्टनोलॉजी से लैब में टिश्यू कल्चर पौधे तैयार किए जाते हैं। धौरहरा, खमरिया, रमियाबेहड़, बेहजम, ईसानगर व ढखेरवा के किसान एक एकड़ में केले से साढ़े चार लाख से लेकर छह लाख रुपये तक की शुद्ध आय कमा रहे हैं। टिश्यू कल्चर केले से ढाई साल में दो फसल ले सकते हैं। पारंपिरक केले से टिश्यू कल्चर केले की गहर का आकर बड़ा होता है। खीरी जिले में उत्पादित केला अब पड़ोसी राष्ट्र नेपाल तक में बिक्री के लिए बड़ी मात्रा में जाता है।

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विकास खंड ईसानगर के ग्राम बेहटा निवासी स्वप्निल कटियार ने एक एकड़ से टिश्यू कल्चर केले की खेती तय की। आज वह पांच एकड़ में केले की खेती कर रहे हैं। स्वप्निल बताते हैं कि केले की खेती से हुई शुद्ध आय से उन्होंने दस लाख रुपये की कीमत की एक लग्जरी कार खरीदी है। टिश्यू कल्चर केले की खेती ने उनकी क्षेत्र में एक अलग पहचान बना दी है। उनसे क्षेत्र के तमाम किसान केले की टिश्यू कल्चर खेती के बारे में जानकारी लेने आते हैं। वर्तमान में धौरहरा व निघासन के गांव-गांव परंपरागत खेती के साथ ही केले की खेती में उतरे हैं। इसी गांव के प्रियंकुश कटियार भी स्वप्निल की तरह केले की खेती में जुट गए हैं। ईसानगर के रायपुर गांव के प्रवीण ¨सह, मुराउन पुरवा के जीएस मौर्या, परसिया के ज्वाला ¨सह, विकास खंड बेहजम के सिकटिहा निवासी मालती मौर्या केले की खेती कर रहे हैं। जिला उद्यान अधिकारी डॉ. दिग्विजय कुमार भार्गव ने भी शासन को टिश्यू कल्चर केले की खेती के लिए एक प्रस्ताव बनाकर शासन को भेजा है। इसमें स्वीकृति मिलने के बाद जिले के सभी ब्लाकों के करीब 400 किसान केले की खेती कर सकेंगे। पिछले दो-तीन वर्षों से उद्यान विभाग टिश्यू कल्चर खेती करा रहा है। शहर से सटे ग्राम पिपरिया में शिव प्रसाद वर्मा ने पिछले वर्ष टिश्यू कल्चर केले की खेती की थी। इस बार भी दो एकड़ में केले की खेती कर रहे हैं। शिव प्रसाद के मुताबिक एक एकड़ में चार लाख रुपये की आय हुई थी। इस बार केले की खेती और अच्छी है।

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पौधों को विकसित करने की नई तकनीकि

जिला उद्यान अधिकारी डॉ. दिग्विजय कुमार भार्गव ने बताया कि टिश्यू कल्चर पौधों को विकसिक करने की एक तकनीकि है। इसमें प्रयोगशाला में ऊतक से पौधों को विकसित करके उगाया जाता है। इस तरह से तैयार पौधे में रोग कीट से ग्रसित होने की संभावना कम तह जाती है। टिश्यू कल्चर से विकसित पौधों की मृत्यु दर सामान्य पौधों से कम होती है।

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मुनाफे के लिए समय से करें खेती

कृषि वैज्ञानिक डॉ. मो. सुहेल के मुताबिक केला रोपण की शुरुआत जुलाई से अगस्त तक होती है। किसान को 12 माह बाद ही बढि़या उत्पादन और बाजार में फायदा मिलना शुरू हो जाता है। देर से केला लगाने पर भाव का भी नुकसान होता है।


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