शीशम के कैंसर का प्रकृति ने निकाला निदान
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पडरौना,कुशीनगर:
उत्तर प्रदेश के कुशीनगर, महराजगंज, बिहार के पश्चिमी चंपारण व पड़ोसी राष्ट्र नेपाल के तराई क्षेत्र में शीशम के पेड़ पर फ्यूजेरियम सोलेनाई नामक
फंगस ( शीशम का कैंसर) कहर बरपा रहा है। वर्ष 1997-98 के आसपास ही जब मुख्य पश्चिमी गंडक नहर व रेलवे टै्रक के किनारे तथा काश्तकारों के खेत में एक-एक कर सैकड़ों शीशम के पेड़ सूखे तब वन विभाग की तंद्रा टूटी पर अब तक यह बीमारी लाइलाज है। खुशी की बात यह है कि इस बीमारी के इलाज का अब तक वैज्ञानिक नहीं ढूंढ पाए लेकिन ऐसा लग रहा है कि प्रकृति ने स्वयं इसका इलाज तलाश लिया है।
जानकारी के अनुसार वर्ष 97-98 में तत्कालीन डीएफओ चैतन्य नारायण ने मामले की गंभीरता भांप एफआरआई देहरादून को सूचना दी। वहां से एक वैज्ञानिक टीम भी आयी जिसने सूखे पेड़ की जड़ की खुदाई कर वहां से मिट्टी निकाली और जांच में पाया कि अत्यधिक नमी वाले क्षेत्र में स्थित शीशम के पेड़ों की जड़ों में फंगस फ्यूजेरिएम सोलानाई अपने आप पैदा हो रहा है। इस फंगस से निपटने का कोई उपाय डेढ़ दशक बाद भी न हो पाना। इस खास वन संपदा के अस्तित्व पर संकट के बादल बन खड़ा है।
वन विभाग ने इससे उबरने का काश्तकारों को उपाय यह सुझाया कि वह शीशम की काली प्रजाति का रोपण करे। इस प्रजाति पर फंगस यानी शीशम के कैंसर का प्रभाव नहीं के समान है। अब जब अपने आप उगे या लगाए गए हजारों पेड़ सूखी लकड़ी के मानिंद खड़े है एक बारगी काश्तकार या फिर पर्यावरण प्रेमी काफी सहमें है। कारण कि तराई क्षेत्र में अपने आप यह पौधा उगता है और पेड़ बनता है जो आय का सशक्त माध्यम भी रहा।
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क्या करता है फंगस
पडरौना। जानकार बताते है और एफआरआई देहरादून के वैज्ञानिकों ने जो तथ्य प्रकाश में लाए उनके अनुसार यह फंगस पेड़ की जड़ में जाला बनाकर जड़ का मिट्टी से संपर्क खत्म कर देता है। जड़ से पेड़ की भोजन व पानी की सप्लाई बंद हो जाती है। इससे हरा भरा पेड़ सूखी लड़की बन जाता है।
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वन अनुसंधान केन्द्र देहरादून कर रहा काम:कन्जरवेटर
पडरौना। इस संबंध में वन संरक्षक पूर्वी वृत्त गोरखपुर अजय कुमार ने कहा कि चूंकि मामला एफआरआई देहरादून को सुपुर्द है इसलिए इस बारे में कुछ कहना उचित नहीं। उन्होंने कहा कि तीन साल पूर्व तक इस रोग का कहर रहा। इधर ऐसी कहीं से शिकायत नहीं मिल रही कि हो हल्ला मचा हो। वैसे भी पेड़ों में रोग प्रतिरोधक क्षमता धीरे-धीरे बढ़ जाती है। शीशम की हर प्रजाति में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ी है। ऐसा मेरा मानना है।
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कोई दवा इजाद नही:डीएफओ
पडरौना। इस संबंध में प्रभारी डीएफओ आरपी सिंह ने बताया कि यह रोग महामारी की तरह है। इसका निदान स्वत: हो रहा है। जिस काश्तकार के पेड़ में यह रोग लगे उसे जड़ से निकाल कर जड़ काटकर जला दें। जहां तक मुझे ज्ञात है अब तक इस रोग से निपटने की कोई दवा ईजाद नहीं हो पायी है। धीरे धीरे रोग का प्रकोप कम हो रहा है।
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