जिसकी मौत पर ठहाके लगाते चले सब ़ ़ ़
नीरज सौंखिया, हाथरस 'मेरी मौत पर न रोयेगा कोई, ऊंटगाड़ी पर निकलेगी शव यात्रा, ठहाके लगाते चलेंग

नीरज सौंखिया, हाथरस
'मेरी मौत पर न रोयेगा कोई, ऊंटगाड़ी पर निकलेगी शव यात्रा, ठहाके लगाते चलेंगे सब, शमशान पर होगा कवि सम्मेलन, जब तक मेरी चिता जलेगी, तब तक काव्य पाठ करेंगे कवि।' जीते-जी ऐसी वसीयत सिर्फ और सिर्फ पद्मश्री काका हाथरसी ही लिख सकते थे। उन्होंने हंसते-हंसाते ¨हदी की काव्य पताका को पूरी दुनिया में फहराया। दुर्लभ संयोग भी है कि जिस रोज काका का जन्मे, उसी तारीख को देह छोड़ी। रविवार (18 सितंबर) को काका की जयंती है, पुण्यतिथि भी। सबके प्यारे काका के साथ बीते लम्हे याद करने को हर कोई तैयार है।
अद्भुत हस्ती
हास्य सम्राट काका हाथरसी का जन्म 110 वर्ष पूर्व 18 सितंबर 1906 को हुआ था। आज के ही दिन 21 साल पहले 18 सितंबर 1995 को उन्होंने देह छोड़ी। 'काका' के नाम से दुनियाभर में विख्यात प्रभूदयाल गर्ग के जीवन में तमाम अद्भुत घटनाएं घटीं। पैदा हुए थे, तब महामारी फैली हुई थी। कुछ ही दिन बाद पिता शिवलाल चल बसे। मां बरफी देवी बाल प्रभूदयाल गर्ग के लालन-पालन के लिए इगलास स्थित मायके ले आईं। मामा लाला रोशन लाल के सहयोग से शुरुआती पढ़ाई हुई।
पहली कविता
पहली कविता लिखने पर पुरस्कार मिलते तो आपने सुना होगा, लेकिन काका को मार पड़ी। उन्होंने ये कविता लिखी थी, गुरु लखमी चंद्र पर। वे उनसे अंग्रेजी पढ़ते थे। बहरहाल, तंगी-तुरसी से निबटने के लिए काका ने किशोर अवस्था में ही कम तनख्वाह पर नौकरी भी की।
'काका' नामकरण
ब्रज के ऐतिहासिक और अनूठे लक्खी मेला श्री दाऊजी महाराज से काका किशोर उम्र से ही जुड़ गए थे। वे लाउड स्पीकर लगाते थे। उन्होंने अग्रवाल समाज के शिविर में हुए एक नाटक में 'काका' की भूमिका निभाई। दूसरे दिन वे जहां से गुजरे, सबने कहा.'काका आए गयौ-काका आए गयौ'। यहीं से प्रभु बन गए कवि काका हाथरसी।
मुंबई के मंच पर
काव्य यात्रा का दौर भी विलक्षण रहा। तब काव्य मंचों पर हास्य कवि को विदूषक बताकर हिकारत भरी नजरों से देखा जाता था। काका बिन बुलाए ही पहुंच गए मुंबई के एक कवि सम्मेलन में। विरोध और मनाही के बावजूद जबरन पढ़ी हास्य कविता। फिर, ऐसे जमे कि देश-विदेश तक डिमांड होने लगी।
संगीत प्रेस तक
काका की ब्रज भाषा के साथ अंग्रेजी व उर्दू पर भी अच्छी पकड़ थी। दोस्त रंगीलाल की मदद से चित्रकारी सीखी। मथुरा से हारमोनियम, तबला, बांसुरी मास्टर नामक पत्रिका निकाली। बाद में, हाथरस में 'संगीत प्रेस' की स्थापना की। यह आज भी चालू है। काका स्मारक पर रविवार को श्रद्धांजलि सभा होगी।
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