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    जीवनरक्षक दवा की कमी ने ली 300 जानें

    By Edited By:
    Updated: Sat, 29 Dec 2012 11:13 PM (IST)

    गोरखपुर : तीन साल में मेडिकल कालेज में भर्ती हुए इंसेफेलाइटिस के तीन सौ मरीजों की मौत जीवनरक्षक दवा नहीं मिलने से हुई। दवा के इस्तेमाल पर रोक के चलते डाक्टर चाह कर भी कुछ नहीं कर पाए। यह खुलासा उत्तर प्रदेश के आडिटर जनरल की आडिट रिपोर्ट में हुआ है।

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    इस साल बीस से तीस सितंबर तक बीआरडी मेडिकल कालेज में इंसेफेलाइटिस से हुई मौतों की आडिट की गई थी। दस दिन की जांच के बाद शासन को भेजी रिपोर्ट में कहा गया है कि महानिदेशक चिकित्सा शिक्षा व प्रशिक्षण उत्तर प्रदेश ने 18 अगस्त 2008 को भेजे पत्र में गोरखपुर मेडिकल कालेज के प्रधानाचार्य को इंसेफेलाइटिस के मरीजों के लिए अति आवश्यक दवा इम्यूनोग्लोबिन खरीदने की अनुमति दी थी। उप सचिव उत्तर प्रदेश शासन द्वारा भी 20 अक्टूबर 2008 को यह दवा पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध कराने का निर्देश महानिदेशक चिकित्सा शिक्षा को दिया गया था। जांच में पाया गया कि महानिदेशक तथा शासन के निर्देश के बावजूद संबंधित जीवन रक्षक दवा की खरीद अक्टूबर 2009 के बाद नहीं की गई। यह दवा न देने से वर्ष 2010 से लेकर 2012 तक इंसेफेलाइटिस से मृत्यु दर में अप्रत्याशित वृद्धि हुई है। वर्ष 2010 में 3003 मरीज भर्ती किए गए जिसमें 514 मौतें हुई। यह मृत्यु दर 15.60 फीसद रही। 2011 में 3305 मरीज भर्ती किए गए जिसमें से 627 की मौत हुई। जीवन रक्षक दवा न मिलने से इस बार मौतें बढ़कर 18.97 फीसद तक पहुंच गईं। 2012 में भी यह सिलसिला जारी रहा। इस साल आडिट में 29 अगस्त 2012 तक भर्ती मरीजों का आंकड़ा शामिल किया गया। तब तक भर्ती 971 मरीजों में 199 की मौत हुई जो कि 20.50 फीसद है।

    रिपोर्ट से साफ है कि दवा का इस्तेमाल बंद होने के बाद साल दर साल मौतों में इजाफा हुआ। कुल भर्ती मरीजों के अनुपात में पांच फीसद अधिक मौतों को जोड़ा जाए तो हर साल सौ मौतें ज्यादा हुई। तीन साल की बात करें तो यह तादाद करीब तीन सौ से अधिक है।

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    काफी महंगी है दवा

    जीवन रक्षक दवा इम्यूनोग्लोबिन काफी महंगी है। एक मरीज को दिए जाने वाले डोज पर एक से डेढ़ लाख का खर्च आता है। ऐसे में आम आदमी के लिए दवा की व्यवस्था कर पाना आसानी से संभव नहीं है।

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    शोध में दवा उपयोगी साबित

    आडिट रिपोर्ट में मेडिकल कालेज के बाल रोग विभाग के अध्यक्ष डा. केपी कुशवाहा के 26 मई 2012 को प्रकाशित शोध का जिक्र किया गया है। इसमें स्पष्ट किया गया था यह दवा मरीजों के उपचार में उपयोगी सिद्ध हुई है। शोध परिणाम से साफ है इंसेफेलाइटिस में इम्यूनोग्लोबिन दवा अत्यंत लाभकारी थी जिसका उपयोग न किए जाने से मृत्यु दर में वृद्धि हुई।

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    इस साल सितंबर में आडिटर जनरल यूपी की टीम मेडिकल कालेज आई थी। इंसेफेलाइटिस मरीजों पर जीवन रक्षक दवा इम्यूनोग्लोबिन के इस्तेमाल के बारे में फार्मासिस्टों से तथा मुझसे बात हुई थी। जहां तक दवा की उपयोगिता का सवाल है तो यह शोध में यह प्रमाणित हो चुका है।

    डा. केपी कुशवाहा, प्रधानाचार्य

    गोरखपुर मेडिकल कालेज

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