Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे बाबा राघवदास

    By Edited By:
    Updated: Tue, 11 Dec 2012 09:20 PM (IST)

    देवरिया: बाबा राघवदास का व्यक्तिगत जीवन समाज के उपेक्षित व कमजोर वर्ग की सेवा करना था। उन्होंने इस सिद्धांत को लेकर समाज में समानता का बीज बोने का प्रयास किया था। उनका मानना था कि असहाय गरीब की सेवा ही ईश्वर दर्शन है। इस परिकल्पना को लेकर बाबा जी ने समाज के कमजोर वर्ग पर विशेष ध्यान दिया और जगह-जगह कुष्ठाश्रम व अस्पतालों की स्थापना की, जिससे सभी लोगों को सुविधा मिल सके। वह गरीबों की पीड़ा को सहन नहीं कर पाते। कई बार उन्हें गरीबों के लिए समाज से टकराना पड़ा था।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    एक बार बाबाजी किसी कार्यवश कपरवार स्थित राप्ती नदी के तट पर नाव से पटना जाने की तैयारी में थे। उस समय उनके साथ गांव के कुछ प्रबुद्ध लोग भी थे। उसी दौरान उनकी नजर एक स्त्री पर पड़ी जो बकरी के बच्चे को स्तनपान करा रही थी। उस दृश्य में स्पष्ट रूप से एक मां की ममता दिखी, जिसमें समानता व करुणा का भाव था। बाबाजी उस महिला के समर्पण से बहुत प्रभावित हुए। नाव आने पर वह स्त्री नाव पर चढ़ने लगी तो ग्रामीणों ने उसे दलित महिला बताते हुए नाव पर चढ़ने से रोक दिया। इस प्रसंग से बाबाजी बहुत व्यथित हुए। बाबा जी महिला को अपने साथ नाव पर ले जाने पर अड़ गए। लोगों के विरोध के बावजूद उसे नदी पार कराया। यह अपार करुणा व प्रेम की भावना थी जिसे ईश्वरानुभूति की कल्पना व सेवा से जोड़ा था।

    बाबाजी का व्यक्तित्व बहुमुखी था। उन्होंने युगानुरूप मानवीय गरिमा का संरक्षण व पोषण किया। वे वस्तुत: एक आध्यात्मिक पुरुष थे। किंतु अध्यात्म को व्यक्तिगत जीवन से इसे दूर रखा। उनके प्रसिद्ध कथन ईश्वर दर्शन गरीब की सेवा है। आचार्य शंकर ने जिस ब्रह्मा को आत्मानुभूति और परमार्थ स्तर का विषय माना था, बाबाजी ने उसे व्यवहारिक धरातल पर लाकर सेवा से जोड़ दिया। दरिद्रनाथ की संकल्पना स्वामी विवेकानंद ने की थी। महात्मा गांधी ने उसे व्यवहारिक रूप प्रदान किया। बाबा राघवदास भी इसी परंपरा के थे। जिन्होंने दरिद्र लोगों में सेवा के माध्यम से नारायण को देखने का प्रयास किया। भावनात्मक रूप से देखा जाए तो बाबाजी के सिद्धांतों में ही सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय की संकल्पना थी जो व्यवहारिक धरातल पर स्पष्ट रूप से दिखाई देती है। उनके सबसे महत्वपूर्ण प्रयास था आर्थिक समानता। राघवदास इन बातों को बखूबी महसूस करते थे कि आम शोषित व्यक्ति के अवशेष पर ही समाज का एक वर्ग सुविधा का उपभोग करता है, आर्थिक बोझ अंतत: समाज के कमजोर वर्ग पर पड़ता है। जब सरकार ने कोल्हू पर टैक्स लगाया तो उसका खुल कर न केवल विरोध किया बल्कि विधानसभा से इस्तीफा भी दे दिया। उनका मानना था कि कोल्हू समाज का गरीब चलाता है। अंत में कोल्हू पर टैक्स का प्रस्ताव वापस लेने पर ही माने। यह उनके सम्यक, आर्थिक दृष्टिकोण का ही परिचायक है।

    मोबाइल पर ताजा खबरें, फोटो, वीडियो व लाइव स्कोर देखने के लिए जाएं m.jagran.com पर