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संस्कृत के प्रबल समर्थक थे सत्यव्रत : आंजनेयदास

जागरण संवाददाता, बरहज, देवरिया: परमहंसाश्रम परिसर में आश्रम के द्वितीय पीठाधीश्वर सत्यव्रतजी महाराज

By Edited By: Published: Mon, 15 Feb 2016 10:47 PM (IST)Updated: Mon, 15 Feb 2016 10:47 PM (IST)
संस्कृत के प्रबल समर्थक थे सत्यव्रत : आंजनेयदास

जागरण संवाददाता, बरहज, देवरिया: परमहंसाश्रम परिसर में आश्रम के द्वितीय पीठाधीश्वर सत्यव्रतजी महाराज की जयंती संस्कृत सम्मेलन के रूप में मनाई गई। वक्ताओं ने सत्यव्रत को संस्कृत भाषा का प्रबल पक्षधर बताया गया।

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जयंती कार्यक्रम को संबोधित करते हुए पीठाधीश्वर आंजनेयदास महाराज ने कहा कि सत्यव्रतजी ने आजीवन संत धर्म का पालन किया। वह संस्कृत भाषा के प्रबल समर्थक थे। वह संस्कृत का देश की दूसरी प्रमुख भाषा बनाने की पुरजोर वकालत किए। बरहज में संस्कृत महाविद्यालय की स्थापना भी उन्हीं के प्रयासों की देन है। जीवन में भी संस्कृत को अपनाया। प्रतिदिन सुबह से लेकर दोपहर तक केवल संस्कृत बोलते थे। उनका मानना था कि संस्कृत और संस्कृति से भारत की एकता को अक्षुण बनाया जा सकता है। सरयू विद्यापीठ के प्रधानाचार्य रमेश तिवारी अंजान ने कहा कि वह दार संत थे, उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि आश्रम में आने वाला जरूरतमंद खाली हाथ न लौटे। संचालन आचार्य परशुराम पांडेय ने किया।

इस दौरान ब्रजराज उपाध्याय, बलिभद्र त्रिपाठी, विनय कुमार मिश्र, ब्रह्मचारी जी महाराज, रामकृष्ण, राम नारायण, घनश्याम पांडेय, अनमोल मिश्र, मुरलीधर मिश्र आदि मौजूद रहे।


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