जीरो ट्रिल विधि से करें मसूर की खेती
चंदौली : भोजन की थाली में भात (चावल) के साथ दाल जरूरी है, बल्कि यह कह लीजिए कि दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। इसलिए यह नितांत आवश्यक है कि धान की पैदावार के अनुपात में दलहन की खेतीबारी भी की जानी चाहिए। जनपद में दलहन की खेती की भी अपार संभावनाएं हैं। इसकी खेती के लिए यहां की दोमट मिंट्टी सर्वोत्तम है तभी तो कृषि वैज्ञानिकों की नजरें दलहन की खेती के तहत मसूर की खेतीबारी के लिए किसानों को प्रोत्साहित करने हेतु उनकी तरफ टिकी हुयी है।
गौरतलब है कि जिले में पिछले साल लगभग एक लाख बीस हजार हेक्टेयर क्षेत्रफल में धान की खेती की गई थी। प्रति हेक्टेयर उपज की लिहाज से यह जिला प्रदेश में तीसरे स्थान था। इस साल जिले में एक लाख चालीस हजार हेक्टेयर क्षेत्रफल में धान की फसल की खेतीबारी की गयी है। कृषि वैज्ञानिकों का ऐसा मानना है कि धान के कटोरे में दलहन की खेती की भी अपार संभावनाएं हैं। दरअसल यहां की मिट्टी दोमट है। इसलिए जिले में दलहन की बेहतर खेती की जा सकती है। कृषि वैज्ञानिकों का मानना है कि जीरो ट्रिल से मसूर की खेती करने पर बेहतर उत्पादन किया जा सकता है।
-भूमि का चयन
मसूर की खेती के लिए दोमट मिट्टी काफी उपयोगी होती है। नमीयुक्त मटियार खेत में धान की अगैती फसल के बाद या फिर खाली पड़े खेत में मसूर की खेतीबारी आसानी पूर्वक की जा सकती है।
-खेत की तैयारी
कृषि वैज्ञानिक डा. प्रदीप कुमार का कहना है कि मसूर की खेती के लिए बीज की बोआई जीरो टिलेज मशीन से करने के बाद कल्टीवेटर या रोटावेटर से जोताई कर खेत भुरभुरा करना पड़ता है।
- मसूर बोने का समय
दलहन की बोआई के लिए वैसे तो असिंचित क्षेत्र में 15 से 31 अक्टूबर के बीच का समय उपयुक्त माना गया है। ..किन्तु सिंचित इलाकों में इसकी बोआई का समय 15 नवम्बर तक निर्धारित किया गया है।
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