Move to Jagran APP

कलम की जगह हाथों में 'चापड़'

By Edited By: Published: Wed, 09 Jan 2013 09:22 PM (IST)Updated: Wed, 09 Jan 2013 09:24 PM (IST)
कलम की जगह हाथों में 'चापड़'

आशीष विद्यार्थी

loksabha election banner

सकलडीहा (चंदौली): कूड़े की ढेर में अपना बचपन खोते बच्चों को आपने अक्सर अपने आसपास देखा होगा। .लेकिन एक ऐसे बच्चे को देखकर आप जरूर सिहर जाएंगे, जो मांस के लोथड़ों व खून के बीच अपना भविष्य तलाश रहा है। यह बालक मुर्गे की टांग और सिर बतौर मेहनताना पाता है। ऐसे बच्चे हमें आदर्श समाज के नए अर्थ गढ़ते नजर आ रहे हैं। ऐसा समाज जहां इंसानियत का घिनौना सच मुंह चिढ़ा रहा है।

सकलडीहा में मांस बेचने की एक दुकान पर बालश्रम और सर्वशिक्षा अभियान और शिक्षा गारंटी योजना जैसी योजनाओं का खुलेआम मखौल उड़ रहा है। हर वर्ष स्कूल चलो अभियान की किरन क्या इस बच्चे पर नहीं पड़ी यह सवाल अभियान को पूरी तरह झुठलाने को काफी है। कस्बे में एक लाइन से मुर्गो की दुकानें हैं। यहां पूरे दिन आठ से 15 वर्ष के अल्प वयस्क बच्चे पूरी तन्मयता से मुर्गे काटते रहते हैं। ग्राहकों की भीड़ के बीच हाथों में तेज धारदार चापड़ से मुर्गे के एक-एक हिस्से को चीरते हुए उनके मासूम चेहरे पर कोई शिकन नहीं दिखती।

सूत्रों की माने तो इस काम के लिए इन्हें कोई मेहनताना नहीं मिलता। बल्कि मुर्गे की टांग व मुंह को बेचकर वे अपनी कमाई करते है। कभी कभी इन्हीं टांगों, मुंह व पथरी को भूनकर यह पार्टी भी मना लेते है। बहरहाल डूबते सूरज बाद सूरज के उगने की उम्मीद हमेशा बनी रहती है। बच्चों के हाथों को चांद सितारे छूने दो, वरना पढ़ लिखकर वो हम जैसे हो जाएंगे। ये युक्तियां कब पूरी होंगी इन पर समाज और समाज के ठेकेदार, अधिकारी वर्ग नजर डाल लें।

मोबाइल पर ताजा खबरें, फोटो, वीडियो व लाइव स्कोर देखने के लिए जाएं m.jagran.com पर


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.