Move to Jagran APP

संसद की गरिमा को महावीर त्यागी ने दी ऊंचाइयां

By Edited By: Published: Sat, 12 May 2012 11:10 PM (IST)Updated: Sat, 12 May 2012 11:11 PM (IST)

बिजनौर। लोकतंत्र के सबसे बड़े मंदिर संसद में सत्ता पक्ष के नेताओं का किसी मुद्दे को लेकर एक हो जाना आम है, अब कोई अपनी सरकार का विरोध करता नहीं दिखता। वही देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू सरकार में शामिल रहे स्वतंत्रता सेनानी महावीर त्यागी ऐसे थे, जो कई मुद्दों पर अपनी ही सरकार को कटघरे में खड़ा करने में पीछे नहीं रहते थे। उनका संसद की गरिमा को ऊंचाईयों को पहुंचाने में अहम योगदान रहा।

loksabha election banner

31 दिसम्बर 1899 को जन्मे जिले के रतनगढ़ गांव निवासी महावीर त्यागी स्वतंत्रता संग्राम में शामिल रहे। स्वतंत्रता संग्राम में उन्होंने कुल मिलाकर 11 साल तक जेल यात्रा की। वर्ष 1920 में जिला कांग्रेस के संस्थापकों में उनकी गिनती होती है। बाद में उन्होंने अपना कार्यक्षेत्र देहरादून बना लिया। देहरादून, बिजनौर (उत्तर-पश्चिम), सहारनपुर (पश्चिम) लोकसभा क्षेत्र से 1952, 57 व 62 में सांसद रहे महावीर त्यागी वर्ष 1951 से 53 तक केन्द्रीय राजस्व मंत्री रहे। वर्ष 1953 से 57 तक श्री त्यागी मिनिस्टर फार डिफेंस ऑर्गेनाइजेशन (1956 तक पंडित नेहरू के पास रक्षा मंत्री का कार्यभार भी था।) रहे। उनके कार्यकाल के दौरान देश में ही रक्षा सम्बंधी सामान बड़े पैमाने पर बनाने का कार्य शुरू हुआ। इस दौरान उन्होंने संसद में आजादी के बाद सेना में मुस्लिम युवकों के कम संख्या में भर्ती होने मुद्दा उठाया था। वर्ष 1957 के बाद भी वह विभिन्न कमेटियों और पुनर्वास मंत्रालय में रहे।

राजनीति के जानकार अतुल गुप्ता और साहित्यकार भोलानाथ त्यागी बताते हैं कि महावीर त्यागी ने वर्ष 1962 के युद्ध के बाद अक्साई चिन क्षेत्र चीन के कब्जे में चले जाने के मुद्दे पर संसद में प्रधानमंत्री पंडित नेहरू के सामने अपना तर्क बेबाकी से रखा। पंडित नेहरू ने कहा था कि 'इस क्षेत्र में घास का एक तिनका नहीं उग सकता है...'। इस पर महावीर त्यागी ने अपने केश विहीन सिर से टोपी उतारी और कहा कि 'यहां पर भी कुछ नहीं उगता, क्या इसे काट देना चाहिए या किसी और को दे देना चाहिए?'

महावीर त्यागी वर्ष 1962 से 64 तक संसद की लोक लेखा समिति के चेयरमैन रहे। जनवरी 1966 में ताशकंद समझौते में कुछ स्थानों को पाकिस्तान को लौटाने के प्रश्न पर उन्होंने मंत्रीमंडल से इस्तीफा दे दिया। महात्मा गांधी का सानिध्य पाने वाले श्री त्यागी सरदार पटेल, पंडित नेहरू, रफी अहमद किदवई और मदनमोहन मालवीय के भी बेहद करीबी रहे। उन्होंने भाषाई आधार पर राज्यों के गठन का विरोध किया था। उनके देशप्रेम के कई किस्से है। 22 मई 1980 को नई दिल्ली में उनका देहान्त हुआ।

मोबाइल पर ताजा खबरें, फोटो, वीडियो व लाइव स्कोर देखने के लिए जाएं m.jagran.com पर


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.