जीवांश कार्बन को मेंटेन करेगी नील हरित शैवाल
ज्ञानपुर (भदोही) : रासायनिक उर्वरकों के असंतुलित प्रयोग व जैविक की अनदेखी से मिट्टी के घटते जीवांश कार्बन को नील हरित शैवाल (काई)मेंटेन करेगा। विशेषज्ञों की मानें तो किसान शैवाल का उत्पादन कर इसके प्रयोग से फसल में आने वाले लागत को भी कम कर सकते हैं।
नील हरित शैवाल के बारे में जानकारी देते हुए राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के जिला प्रभारी कृपाशंकर पांडेय ने बताया कि यह अकसर बारिश के मौसम में खेतों में काई के रूप में जम जाने वाला तत्व है। जो जैव उर्वरक के रूप में वायु मंडलीय नाइट्रोजन को स्थिर कर पौधों को नाइट्रोजन उपलब्ध कराता है। बताया कि इससे किसान नत्रजन के रूप में प्रति हेक्टेयर 30 किलो यूरिया की बचत के साथ उत्पादकता में 8 से 10 फीसदी तक वृद्धि भी कर सकते हैं। बताया कि खासकर धान के खेत में परत के रूप में जम जाने वाले शैवाल से खरपतवार भी नहीं उग पाते व जीवांश कार्बन की मात्रा भी मेंटेन हो जाती है।
कैसे तैयार करें शैवाल
राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के जिला प्रभारी कृपाशंकर पाडेय ने बताया कि एक मीटर चौड़ा, पांच मीटर लंबा व 10 इंच गहरे गड्ढे (टैंक) की खोदाई कर शैवाल आसानी से तैयार किया जा सकता है। बताया कि टैंक में प्लास्टिक बिछाकर उसमें पांच इंच तक पानी का भराव करने के बाद डेढ़ से दो किलो भूरभूरी मिट्टी के साथ 100 ग्राम सिंगर सुपर फास्फेट, 10 ग्राम कार्बो ब्यूरान घोल दिया जाता है। जब मिट्टी बैठ जाती है उसके बाद सौ ग्राम प्रति मीटर की दर से शैवाल स्टार्टर का छिड़काव कर दिया जाता है। श्री पांडेय ने बताया कि एक सप्ताह में पानी सूखने तक प्लास्टिक पर शैवाल की मोटी परत जम जाती है जिसे धान की रोपाई के समय बीज के रूप में खेतों में छिड़काव कर दिया जाता है। जो खेतों के जीवांश को मेंटेन किये रहता है। श्री पाण्डेय ने बताया कि नासटाख टोली, फ्रेथीक्स, कैलाथ्रियस शैवाल की प्रमुख प्रजाति है।
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