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    नशे का मरीज बन गया डॉक्टर

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    Updated: Wed, 26 Feb 2014 07:28 PM (IST)

    बरेली: एक ही कॉलेज में जिंदगी के दो रंग देखने को मिले। सीनियर्स ने नशे की गर्त में धकेला, तो जूनियर्स ने इस दलदल से बाहर खींच निकाला। नशे के आगे जिंदगी घुटने टेकती उससे पहले अंधेरे को चीरती उम्मीद की किरण दिखाई दे गई। न सिर्फ नशे के मर्ज से छुटकारा हासिल किया बल्कि लोगों को सही राह दिखाने के लिए डॉक्टरी की पढ़ाई भी पूरी की। अब में नशे में जकड़ा मरीज नहीं उसका इलाज करने वाला चिकित्सक बन चुका हूं।

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    बात सात साल पुरानी है। साउथ के नामी मेडिकल कॉलेज में दाखिला लिया था। वहां पढ़ रहे दिल्ली के दो सीनियर्स से यारी हो गई। जिंदगी की मुराद पूरी हो रही थी, इसलिए पैर जमीन पर नहीं पड़ रहे थे। इन दोनों सीनियर्स से ऐसी छनी कि यारी कुछ ज्यादा ही गहरी हो गई। कॉलेज में फंक्शन था.. दोनों ने मुझे सिगरेट पीने को दी। शौक-शौक में मैने सिगरेट पी तो ली, लेकिन उसके बाद घन चक्कर बन गया। सिर दर्द, उल्टी और बुखार सब हो गया, लेकिन सीनियर्स के साथ टसन मारने के चक्कर में सिगरेट पीने लगा। ऐसी लत लगी कि पूछिए मत। लत में छटपटाने लगा तो दोनों सिगरेट के बदले कभी पैसे तो कभी मोबाइल, चेन और घडी जैसी चीजें मांगने लगे। असल में मुझे स्मैक की लत लग चुकी थी।

    जब मैं फेल हुआ तो नशे का भेद खुला। घर वाले मुझे लेकर बरेली वापस लौटना चाहते थे, लेकिन जूनियर्स ने उन्हें रोक दिया। मेरी मां ने किराए पर कमरा लिया और मेरे साथ ही रहने लगीं। जूनियर्स मेरा नशा छुड़ाने की कोशिशों में जुट गए, हालांकि, इसका उन्हें खासा खामियाजा भुगतना पड़ा। एक पुडि़या स्मैक के लिए मैंने उनकी बाइक, घड़ी, पैसे और एटीएम तक चुरा डाले, लेकिन उन्होंने फिर भी मेरा साथ नहीं छोड़ा। डेढ़ साल बाद, मैं नशे की लत छोड़ सका। फिर दोबारा किताबों की दुनिया की तरफ लौटा। आज मैं डॉक्टर बन चुका हूं।

    ( सुभाषनगर निवासी चिकित्सक दिल्ली के एक प्रतिष्ठित अस्पताल से जुड़े हैं।)