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    कुबूल-कुबूल-कुबूल तो तलाक-तलाक-तलाक क्यों नहीं

    By Nawal MishraEdited By:
    Updated: Sat, 08 Oct 2016 06:56 PM (IST)

    एक-दो महिलाओं का विरोध को मुसलमानों की आवाज नहीं हो सकती। यदि तीन बार कुबूल-कुबूल-कुबूल कहकर अजनबी महिला बीवी बन जाती है तो तीन तलाक का विरोध क्यों?

    बरेली (जेएनएन)। तीन तलाक के मसले पर केंद्र सरकार के सुप्रीम कोर्ट में दिए गए हलफनामे के बाद बरेलवी उलमा विरोध में आ गए हैं। दरगाह आला हजरत के प्रवक्ता एवं तहरीक तहफ्फुज-ए-सुन्नियत के महासचिव मुफ्ती मुहम्मद सलीम नूरी ने साफ कर दिया है कि मुसलमान किसी भी हाल में शरीयत का दामन नहीं छोड़ेंगे।

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    आज इस मसले पर दरगाह का रुख साफ करते हुए मुफ्ती सलीम नूरी ने कहा कि तीन तलाक पर मुस्लिम समाज में कोई इख्तेलाफ (आपसी विरोध) नहीं है। सभी तीन तलाक को तीन ही मानते हैं। एक बार में तीन बार तलाक कहने से तलाक हो जाएगी। उकसावे में आकर एक-दो महिलाएं इसका विरोध कर रही हैं तो उनकी आवाज को तमाम मुसलमानों की आवाज नहीं माना जाना चाहिए। जिस तरह तीन बार कुबूल-कुबूल-कुबूल कहकर एक अजनबी महिला बीवी बन जाती है तो फिर तीन तलाक का विरोध क्यों? उन्होंने चेतावनी दी कि कितना ही निशाना क्यों न बना लें, मुस्लिम समाज शरई फैसलों को मानता रहा है और मानता रहेगा। मुसलमान दिखा देंगे कि वे मुल्क के संविधान के साथ इस्लामी शरीयत पर भरोसा रखते हैं। साथ ही हुकूमत के जिम्मेदारों का भी यह फर्ज है कि वे संविधान में दी गई मुस्लिम पर्सनल लॉ की हिफाजत की व्यवस्था को बनाए रखें। यह अहसास न कराएं कि मुसलमानों की मजहबी आजादी खतरे में है।

    14-15 अक्टूबर को होने वाले उर्स-ए-नूरी में भी हुकूमत के हलफनामे के खिलाफ आवाज उठाई जाएगी। मुसलमानों से आह्वïान होगा कि तलाक के अधिकार का गलत इस्तेमाल न करें, अपने शरई मसाइल लेकर इधर-उधर न जाएं।