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मुश्किल में बेजुबान, खामोश निजाम

By Edited By: Published: Tue, 16 Apr 2013 01:02 AM (IST)Updated: Tue, 16 Apr 2013 01:04 AM (IST)

जागरण संवाददाता, बरेली : बदइंतजामी को लेकर चर्चित जिला शरणालय एवं प्रवेशालय 'नारी निकेतन' की हालत अच्छी नहीं है। सफाई के लिए स्टाफ नहीं है। न संवासिनियों का दर्द समझने के लिए मनोचिकित्सक की व्यवस्था है और न छोटी-मोटी बीमारी के इलाज को नर्स। एक संवासिनी के खानपान और रहन-सहन के लिए एक माह में महज 1200 रुपये मिलते हैं, जो भोजन के लिए ही नाकाफी हैं। ऐसे में ज्यादातर संवासिनियां बीमार हैं। मौत के शिकंजे में फंसी हैं।

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प्रेमनगर के इस नारी निकेतन में नौ बच्चों समेत 123 संवासिनियां। 32 कोर्ट केस में भेजी गई हैं। कुछ का बालिग होने पर कोर्ट में ट्रायल शुरू हो गया है। बाकी को बालिग होने का इंतजार है। 191 बेजुबान हैं, जो अपना दर्द तक बयां नहीं कर सकतीं। जब तक सह सकती हैं, सह लेती हैं। फिर दर्द से बिलबिलाकर अपने ही शरीर पर हाथ बरसाने लगती हैं। स्टाफ के नाम पर यहां कुल मिलाकर सात लोग हैं। हर बार मॉनीटरिंग कमेटी के निरीक्षण में बदहाली का खुलासा होता है, रिपोर्ट शासन को भेजी जाती है लेकिन सुधार के नाम पर एक भी कदम नहीं उठता। वर्तमान में एक संवासिनी का जिला अस्पताल में इलाज चल रहा है। 22 मानसिक चिकित्सालय में भर्ती हैं। डीएम के स्तर से सप्ताह में एक बार जिला अस्पताल के डाक्टरों की टीम नारी निकेतन जाकर संवासिनियों का चेकअप करती है लेकिन बीमारी थम नहीं पा रहीं। इसलिए क्योंकि नारी निकेतन में संवासिनियों की देखभाल ठीक तरह नहीं हो पा रही है। 24 पदों में सिर्फ 7 भरे हुए हैं। न सहायक अधीक्षक हैं, न क्राफ्ट प्रशिक्षक, नर्स, मेट्रन और न सफाई कर्मचारी। पहले सहायक अधीक्षक रुपिंदर सिंह छुंट्टी गईं और डेढ़ सप्ताह बाद वापस नहीं लौटीं। उसके बाद प्रभारी नेमचंद, जो कि मनोचिकित्सक हैं, वह भी चार दिन पहले बगैर बताए गायब हो गए। रिकार्ड भी नहीं दे गए। शासन से भी नारी निकेतन की बदहाली को दूर करने के लिए प्रयास नहीं हो पा रहे हैं। एक संवासिनी पर 1200 रुपये महीना खर्च होता है। गेहूं, चावल का इंतजाम डीएम के निर्देश पर आरएफसी कराते हैं। कम पैसों के सबब संवासिनियों की थाली से सब्जी गायब हो गई है। रोटी, दाल और चावल से काम चल रहा है। नारी निकेतन की क्षमता सवा सौ की और हैं उससे ज्यादा। एक विकलांग संवासिनी समेत आधा दर्जन घर जाना चाहती हैं लेकिन पता ट्रेस नहीं हो पा रहा। मूक बधिर विद्यालय से एक टीचर की मांग की गई थी, जो अभी तक मिला नहीं है। संवासिनियों को शासन की गाइडलाइन भी पता नहीं है। न ही प्रशासन की तरफ से उन्हें बताने के इंतजाम किए जा सके हैं। गैर सरकारी हाथ मदद को आगे आए थे लेकिन वे भी पीछे हट चुके हैं।

सुधार के नाम पर कार्रवाई

साल 2009-10 के दौरान नारी निकेतन में संवासिनियिों की मौत का सिलसिला आरंभ हुआ तो शासन स्तर से सहायक अधीक्षक, तीन नर्स, 4 चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी और दो सफाई कर्मचारियों पर कार्रवाई हुई। बदले में इतने कर्मचारी अभी तक नहीं मिल सके।

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ज्यादातर संवासिनियां गूंगी-बहरी हैं, उनकी दिक्कतें जानने के लिए हमारे पास कोई टीचर नहीं है। स्टाफ की कमी और बजट बढ़ाने के प्रस्ताव शासन को कई बार जा चुके हैं।

ऊषा तिवारी, जिला प्रोबेशन अधिकारी

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