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विश्व में 'बाबू' ने दी बाराबंकी को पहचान!

By Edited By: Published: Sat, 02 Feb 2013 01:00 AM (IST)Updated: Sat, 02 Feb 2013 01:02 AM (IST)
विश्व में 'बाबू' ने दी बाराबंकी को पहचान!

जागरण कार्यालय, बाराबंकी : बाराबंकी जिले की माटी में है हॉकी के जादूगर बाबू केडी सिंह की स्मृति मानो आज भी रची बसी हो। विश्व में अपनी कलाइयों के करतब से हाकी के मैच का रुख मोड़ने के लिए प्रसिद्ध 'बाबू' ने जिले को अंतराष्ट्रीय पहचान दी है। वह भले ही हमारे बीच नहीं है पर उनकी स्मृतियों से हर कोई जुड़ा हुआ है। प्रदेश की राजधानी से सटे बाराबंकी जिले में दो फरवरी 1922 को जन्मे बाबू केडी सिंह ने 14 वर्ष की आयु में हॉकी का कौशल दिखाना शुरू कर दिया था। इसी आयु में बाराबंकी के देवा में पहली हाकी की प्रतियोगिता भी खेली।

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दो वर्ष बाद लखनऊ यंगमैन एसोसिएशन की टीम से खेलते हुए कलाइयों के जादूगर ने राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनानी शुरू कर दी थी। देश की राजधानी दिल्ली में आयोजित हुए ट्रेडर्स कप में अपने बेहतरीन स्टिक वर्क और ड्रिबलिंग से उन्होंने वहां पर मौजूद लोगों को हतप्रभ कर दिया। इसी ट्रेडर्स कप में लखनऊ की युवा टीम का मुकाबला दिल्ली की बड़ी टीम के साथ हुआ जिसमे ओलंपिक खिलाड़ी हुसैन भी शामिल हुए। बाबू केडी को तब यह नहीं बताया गया प्रतिद्वंदी टीम में ओलंपिक खिलाड़ी हुसैन भी खेल रहे है। उनका नैसर्गिक खेल प्रभावित न हो। हाकी के जादूगर ने पूरे मैच के दौरान हुसैन को दबाए रखा। हुसैन भी कम आयु के इस लड़के के खेल कौशल से आश्चर्यचकित हुए। हुसैन ने मैच के पश्चात कहा कि यह लड़का एक दिन हाकी का महान खिलाड़ी बनेगा। बाबू ने 16 वर्ष तक यूपी की टीम का प्रतिनिधित्व किया। इसके बाद भारतीय हाकी टीम के उप कप्तान भी बने। लंदन में 1948 में हुए ओलंपिक में वह भारतीय टीम के उप कप्तान के बाद वर्ष 1952 में आयोजित ओलंपिक में कप्तानी भी उनके हाथ में आ गई। अन्य देशों के खिलाड़ी गोल करने की उनकी जादूई कला से प्रभावित थे। और समझ नहीं पाते थे इस तरह गोल कैसे किया जा सकता है। अपनी कला में माहिर खिलाड़ी बाबू केडी सिंह गेंद को पहले गोल पोस्ट पर मारते थे और वापस आने के बाद उसे जाल से सुलझा देते थे। बाबू केडी ने यूपी में हाकी खेल को विकसित किया और खिलाड़ियों को आगे बढ़ाया। इसी का नतीजा था कि यूपी ने हाकी के खेल में अंतर्राष्ट्रीय खिलाड़ी देश को दिए। उनके नाम पर प्रदेश की राजधानी व जिले में स्टेडियम भी बनाया गया। खेल छात्रावास भी बनाया गया। केडी के 1978 में निधन के पश्चात उनके काम को उनके प्रशंसक और ओलंपिक खिलाड़ी झमनलाल ने बढ़ाया।

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