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    खीलों पर महंगाई की मार

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    Updated: Sun, 27 Oct 2013 11:47 PM (IST)

    बदायूं : दीपावली के त्योहार पर पूजन के काम आने वाली धान से बनी खीलें भी महंगाई से अछूती नहीं रह गई हैं। पिछले साल के मुकाबले खीलों के भाव तो आसमान छू रहे हैं। यही वजह है कि खीलें अब केवल पूजन के लिए ही खरीदकर रस्म अदायगी की जाती है।

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    दीपावली के त्योहार पर खीलों का अपना महत्व है। दीपावली पर धान की फसल काटी जाती है। इसे खाने में प्रयोग करने से पहले धान से बनी खीलों को लक्ष्मी गणेश को समर्पित करते हैं। खीलों से दीपावली पर लक्ष्मी गणेश का पूजन किया जाता है। बाजार में जगह जगह फड़ लगाकर खीलें बेचने वालों का कहना है कि अभी बिक्री मंदी है। दीपावली नजदीक आने पर बिक्री में इजाफा होगा। दुकानदार राम सनेही बताते हैं कि ग्राहक को खीलों का रेट बताने पर नाक भौं सिकोड़ता है और बिना खरीदे ही आगे बढ़ जाता है। लोग खरीदते भी हैं तो ढाई सौ ग्राम या फिर आधा किलो।

    ..तब रहता था दीपावली का इंतजार

    एक जमाना था जब बच्चों को दीपावली का बेसब्री से इंतजार रहता था। दीपावली पर घरों में बच्चे खीलों को खिलौनों के साथ बड़े चाव से खाते थे। इसमें बड़े भी पीछे नहीं रहते थे। पर अब वह बात नहीं। महंगाई इतनी है कि बस पूजन के लिए ही खीलें खरीदकर रस्म अदायगी की जाती है।

    अब कम होता है मोटा धान

    इस बार धान की फसल अच्छी है। फिर भी खीलें महंगी बिक रही हैं। दरअसल खीलें बनाने के काम में मोटा धान काम में आता है और इसकी खेती लगातार कम होती जा रही है। अब तो किसान महीन धान ही ज्यादा पैदा करते हैं। यही वजह है कि मोटा धान करीब एक हजार रुपये प्रति कुंतल है। सो खीलों के रेट बढ़े हुए हैं।

    यह है खीलों का रेट

    दीपावली पर बिकने वाली खीलों का रेट साठ रुपये प्रति किलो है। जबकि पिछले साल खीलें पचास रुपये बिकी थीं। परमल पैंतालीस रुपये किलो हैं।

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