हां, बरगलाकर करवाया गया था धर्मातरण!
बदायूं: हां, लिखिए मेरी पीड़ा। मुझे बरगलाकर पहले घर से देवी-देवताओं की मूर्तियां फिंकवाईं, फिर लाकेट पहनाकर इसाई बना दिया..यह कहते-कहते कंजुआ के वीरपाल का चेहरा तमतमा उठा। लंबी सांस लेकर बोले अब घरवापसी हो गई और सुकून मिल गया। वे धर्म रक्षा यज्ञ एवं घरवापसी कार्यक्रम में भाग लेने द्रोपदी देवी इंटर कालेज के परिसर में पहुंचे थे। वहां पर आए लोगों से बात की गई तो अधिकांश लोगों ने यही बताया कि मुफ्त दवाई, पढ़ाई और कमाई का लालच दिया गया। छुआछूत और भेदभाव के नाम पर हिंदू समाज के प्रति नफरत पैदा की गई। घरों से हिंदू देवी देवताओं की मूर्तियां फेंकवा दी, फिर चंगाई सभा में लाकेट पहनाकर इसाई बना दिया। जब हकीकत पता चली तो अपना समाज स्वीकारने को तैयार नहीं था, लेकिन साधु-संतों ने यह पहल कर धन्य कर दिया।
क्रिसमस दिवस पर ही आयोजित कार्यक्रम में कंजुआ (बिल्सी) के वीरपाल ने बताया कि 3-4 साल पहले इसाई मिशनरियों का गांव में आना जाना शुरू हुआ। पहले तो उन लोगों ने बच्चों को मुफ्त पढ़वाने व इलाज करवाने का लालच दिया। फिर हिंदू समाज की अगड़ी जातियों के कुछ लोगों द्वारा किए जाने वाले भेदभाव छुआछूत को हथियार बनाकर नफरत फैलाना चालू किया। धीरे-धीरे घर से देवी-देवताओं की मूर्तियां फेंकवा दीं। प्रार्थना सभा में बाइबिल व लाकेट थमाकर इसाई बना दिया। जब छोटे भाई ओमपाल की शादी की बात आई तो बिरादरी में कोई रिश्ता करने को ही तैयार नहीं हो रहा था। इधर, इसाई मिशनरियां भी अपने वादे से मुकर गईं, जिन चमत्कारों की बात करते थे, वे भी नहीं दिखाई पड़े। इधर, जब मुन्नालाल (धर्म जागरण समिति के कार्यकर्ता) ने संपर्क करके घरवापसी का आग्रह किया तो हमारे गांव के धर्मातरित सभी 15 परिवार तैयार हो गए। बाजार कला उझानी के राकेश वाल्मीकि ने बताया कि आप खुद हमारी बस्ती में आइए तो हकीकत दिखाऊं। एक साल पहले मोहल्ले में आकर दुआ कराई। तब सिर्फ सेवा की बातें करते थे, लेकिन थोड़े दिन बाद ही इसाई मिशनरियों ने खासकर युवाओं को लोभ लालच देकर भ्रमित करने की कोशिश की। बीए में पढ़ने वाले लड़के मोहित ने घर से देवी-देवताओं की मूर्तियां फेंक दी। इसाई धर्मग्रंथ व फोटो आदि घर में लगा दिया। गंगा के बारे में इस कदर नफरत फैलाई कि लड़के गंगा स्नान का मजाक उड़ाने लगे। धीरे-धीरे हकीकत का अहसास होने पर आज 10 परिवारों से करीब 35 लोग घरवापसी के लिए आए हैं। सत्यपाल वाल्मीकि ने बताया कि बेटा चिरौंजीलाल भूत-प्रेत बाधा के चक्कर में चंगाई सभा में जाने लगा और धीरे-धीरे इसाई मिशनरियों ने उसका धर्म परिवर्तन करवा दिया। बुंदूलाल ने बताया कि अलापुर से मिशनरी का एक आदमी पहले तो चोरी-चुपके आता था फिर खुलेआम धर्मान्तरण का खेल शुरू कर दिया। हथिनीभूड़ समरेर के रामलाल हों या फिर शहर के लोटनपुरा मोहल्ले के अरुण कुमार, सबके बयान यही थे कि उन्हें लोभ लालच देकर इसाई बना दिया गया। बाद में जब पता चला कि इन लोगों के पास कोई चमत्कार नहीं है, तब देर हो चुकी थी। अब इस कार्यक्रम के जरिए घरवापसी का रास्ता मिल गया। उझानी के ही मोहित कुमार वाल्मीकि ने कहा कि इस प्रकार आयोजन गांव-गांव करने की जरूरत है। हिंदू समाज को भी छुआछूत और भेदभाव की अपनी कमजोरी खत्म करनी चाहिए, वरना इसाई शिनरियां इसका फायदा उठाती रहेंगी।
दोहरे लाभ का देते हैं लालच
भारतीय वाल्मीकि धर्म समाज के जिलाध्यक्ष संदीप चौहान वाल्मीकि ने कहा कि इसाई मिशनरियां यह भी कहती है कि इसाई बनकर तुम अनुसूचित जाति का भी लाभ पाते रहोगे और चर्च भी मदद करती रहेगी। उन्होंने कहा कि धर्मातरित होने वालों को अनुसूचित जाति का लाभ कतई नहीं मिलना चाहिए। उन्होंने कहा कि दुगरइया में इसाई मिशनरियों ने स्कूल खोला है, वहां बच्चों को मुफ्त शिक्षा के नाम पर इसाइयत का पाठ पढ़ा रहे हैं। ऐसे विद्यालय हिंदू समाज की ओर से भी खोले जाने चाहिए ताकि कोई अशिक्षा का फायदा न उठा सके। नवीन कुमार ने भी इसका समर्थन किया।
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