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    बकरी व मुर्गी पालन को सरकार की कई योजनाएं

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    Updated: Thu, 06 Feb 2014 01:02 AM (IST)

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    औरैया, जागरण संवाददाता : बकरी और मुर्गी पालन कारोबार के लिए सरकार कई योजनाएं चला रही है। उनके बारे में जानकारी करके उद्योग संचालित किया जा सकता है। यह जानकारी जागरण प्रश्न प्रहर में लोगों के सवालों के जवाब देते हुए उप मुख्य पशु चिकित्सा अधिकारी डा. सुरेश कुमार आर्या ने दी। प्रश्न प्रहर में सवाल-जवाब के प्रमुख अंश निम्न हैं।

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    सवाल-भैंस को खुरपका हो गया है इसके लिए क्या उपाय किए जाएं? इंद्रेश कुमार, दिबियापुर

    जवाब-सबसे पहले जानवर के पैरों को घुटनों तक साफ पानी से धो लिया जाएं उसके बाद एक लीटर पानी में 25 ग्राम फिटकरी डालकर उसके घोल को चारों खुरों में डाला जाए। यह प्रक्रिया पूरे दिन में चार बार करनी है। फिटकरी न हो तो पोटेशियम परमेगनेट की दवा एक लीटर पानी में पांच ग्राम घोल ली जाए फिर खुरों में उसे डाला जाए।

    सवाल-बकरी पालन तथा मुर्गी पालन के लिए क्या करना है क्या कोई सरकारी योजना है? संजय कुमार अछल्दा

    जबाव-मुर्गी व बकरी पालन के लिए कई योजनाएं हैं सरकारी स्तर पर योजनाओं को क्रियान्वित किया जा रहा है। इस साल जनवरी माह में बकरी पालन को लेकर आवेदन मांगे गए थे तो वहीं मुर्गी पालन के लिए फरवरी माह में बजट आने के बाद योजना को क्रियान्वित किया जाएगा।

    सवाल-मुर्गियों में कौन-कौन से रोग होते हैं? रघुवीर, बिधूना

    जवाब-मुर्गियों में रानीखेत जानलेवा बीमारी है उसके बाद फाउलपाक्स, पौक्सीडिलोसिस, व्हाइट डायरिया प्रमुख बीमारियां हैं इसलिए जरूरी है इनका टीकाकरण जरूर कराया जाए।

    इनसेट...

    गेहूँ कटाई में बकरियों को रखें दूर वरना हो सकता पीपीआर रोग

    गेहूँ की कटाई के दौरान बकरियों को खेत से दूर रखा जाए क्योंकि जमीन पर पड़ी हुई बालियों को खाने से बकरियां पीपीआर रोग की चपेट में आ जाती हैं जिससे उनकी मौत हो जाती है।

    उन्होंने बताया कि पीपीआर रोग होने पर बकरियों को बुखार व नाक आनी शुरू हो जाती है, साथ ही खूनी दस्त होते हैं। बताया कि गेहूं की बालियां जब बकरियां खाती है तो उनके फांस आंत में संक्रमण पैदा कर देती हैं जिससे आंतों में घाव हो जाते हैं। नए भूसे के बारे में डाक्टर आर्या ने बताया कि नया भूसा दुधारू पशुओं में अफरा रोग उत्पन्न करता है। इसके लिए जरूरी है कि नए भूसे को तीन -चार घंटे पहले भिगो दिया जाए तथा उसके ाद उसके सुखा दिया जाए, फिर जानवरों को कम मात्रा में देने से अफरा रोग नहीं होता है।

    थनेला रोग है गंभीर...

    डा. आर्या ने बताया कि अधिक दूध देने वाले पशुओं में थनेला रोग होने की संभावना सबसे अधिक रहती है असल में गर्भाधान के बाद जानवर के थन फूले होते हैं और यदि इसमें चोट लग जाए तो थनेला रोग उत्पन्न हो जाता है। अफरा रोग के निदान के बारे में बताया गया कि इम्पैक्ट निल 100 ग्राम या टिम्पोल पाउडर देने से अफरा रोग खत्म हो जाता है।

    सर्रा से बचाने के लिए धुआं करें : दुधारू पशुओं में गर्मियों के समय तथा बदलते मौसम में सर्रा रोग बहुतायत में होता है। डा. आर्या ने बताया कि यह प्रोटोजोआ जनित रोग है असल में डांस काटने से यह होता है इसके लिए जरूरी है कि जहां पशु बंधा जाए उसके चारों ओर रात के वक्त धुआं जरूर किया जाए।

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