सामाजिक संबंधों की बुनावट है दूधनाथ का साहित्य
जासं, इलाहाबाद : वरिष्ठ साहित्यकार दूधनाथ सिंह ऐसे लेखक हैं, जिन्होंने ¨हदी साहित्य को नया रुप प्रदा

जासं, इलाहाबाद : वरिष्ठ साहित्यकार दूधनाथ सिंह ऐसे लेखक हैं, जिन्होंने ¨हदी साहित्य को नया रुप प्रदान किया। उनके साहित्य की जमीन सामाजिक संबंधों की बुनावट पर आधारित है। वह जोखिम के लेखक हैं। उन्होंने जीवन, विचार और रचनाकर्म में जोखिम लिए। यह बातें लखनऊ विश्वविद्यालय के प्रोफेसर वीरेंद्र यादव ने कहीं।
¨हदुस्तानी एकेडमी के सभागार में सोमवार को दूधनाथ सिंह के जन्म दिवस पर आयोजित 'अस्सी के दूधनाथ' कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि वह उपन्यासकार, नाटककार, कवि, जीवनीकार, आलोचक कई भूमिकाओं में हैं। वह साठोत्तरी पीढ़ी के रचनाकारों से लेकर अब तक के सबसे सक्रिय रहे हैं। उनकी पुस्तक 'निराला: आत्महंता आस्था' का प्रकाशन 1970 के दशक में हुआ जो निराला को समझने की बेहतरीन पुस्तक है। उनकी कहानी माई के शोकगीत में आजादी के आदोलन और उसके अनुभवों को प्रश्नांकित किया गया है। उनकी कहानियां गांधी के आंदोलन की सीमाओं को रेखांकित करती हैं, जिनमें पूर्वाचल के गावों में आजादी के आदोलन की पड़ताल और उसकी
अनुगूंज भी सुनी जा सकती है। कहा कि उनका उपन्यास आखिरी कलाम धर्म और सत्ता के संबंधों को प्रश्नांकित करता है। इस उपन्यास ने न
केवल फासीवाद को सवालों के घेरे में खड़ा किया बल्कि अयोध्या के मिथक का भेदन किया।
अली अहमद फातमी ने कहा कि आप अस्सी के हो गए हैं, अब आप हंड्रेड इयर नाट आउट रहें। कहा कि इलाहाबाद भाषाओं और तहजीबों के संगम का शहर है। वे जितने हिंदी के उस्ताद हैं, उतने ही उर्दू के तमीजदार विद्वान हैं। उन्होंने अपनी शुभकामनाएं देते हुए कहा कि आप अस्सी के हो गए हैं, अब आप हंड्रेड इयर नाट आउट रहें। बांदा से आए उमाशंकर परमार ने कहा कि दूधनाथ का मूल्याकन अभी तक नहीं हो पाया है। वे वास्तव में तोड़फोड़ के रचनाकार है, उन्होंने विचारों से लेकर शिल्प तक में तोड़फोड़ की है। वे ऐसे कथाकार विचारक हैं जिन्होंने अपनी विचारधारा की जीवंत पौध अपने शिष्यों के रूप में लगाई है। काशीनाथ सिंह ने कहा कि धूप में जले हैं पाव सीना तन गया है, ऐसे ही हमारे दूधनाथ सिंह हैं। वे हमारी पीढ़ी के बहुपठित तेजतर्रार तेजस्वी कवि हैं जिन्होंने रामविलास शर्मा के निराला पर काम को आगे बढ़ाया। महादेवी वर्मा पर उनका एक मुकम्मल काम हैं। वे एक संपूर्ण रचनाकार हैं। झूठा सच और तमस के बाद हिंदी उपन्यास के क्षेत्र में सबसे महत्वपूर्ण काम उनका उपन्यास आखिरी कलाम है। दूधनाथ सिंह ने अपने बारे में बात करते हुए कहा कि जब वे 1992 में बाबरी विध्वंस से एक दिन पहले अयोध्या में थे तो कारसेवकों की उपस्थिति और उनकी कट्टरता ने उन्हें काफी बेचैन किया और उन्होंने 6 साल लगाकर आखिरी कलाम जैसा उपन्यास लिखा। कहा कि 2016 में सरयू स्वच्छ है लेकिन अयोध्या गंदी हो गई है। अयोध्या को एक सामान्य शहर की तरह माना जाए और उसकी साफ सफाई हो। साधु महात्मा की जगह हमें आम इंसान को बड़ा मानना चाहिए जो रोजी रोटी कमाता है।
कवि अनिल सिंह ने कहा कि उनकी स्मृतियों में अमरकात की कहानी दोपहर का भोजन टंकी सी है जब दूधनाथजी ने जीवन को उसके संपूर्ण यथार्थ को उसके वाचन में प्रस्तुत किया। वे कोई आदर्श उत्तर न देकर आपको एक धूसर क्षेत्र में लाकर छोड़ देते थे। वे कहते थे कि जीवन का उत्तर खुद खोजिए। वे कक्षा के बाहर जीवन सिखाते रहे हैं। विवेक निराला ने कहा कि यह तो जैसे निर्धारित था कि मैं दूधनाथ सिंह का शिष्य बनूं। मेरी वंश परंपरा मुझे निराला से जोड़ती है जबकि मैं दूधनाथ का छात्र बना जिन्होंने निराला पर मन से लिखा। उन्होनें थोड़ा सा सरल तरीके से कहा कि वे तिलिस्मी गुरु हैं और उनके छात्रों ने उन्हें खोलने की कुंजी पा ली है। इलाहाबाद विश्वविद्यालय के पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष कमलकृष्ण राय ने कहा कि दूधनाथ सिंह ने उत्तर प्रदेश की जन विरोधी, छात्र विरोधी, मजदूर विरोधी निजाम के खिलाफ खडे़ पाया है। वे हमेशा इन सबके साथ खड़े रहे, यह उनकी सामाजिक प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
प्रोफेसर सदानंद शाही ने उन्हें आनंदभाव का लेखक बताया। अध्यक्षता चिंतन मिश्र ने किया। इस मौके पर सुधीर सिंह, अनिल रंजन भौमिक, असरार गांधी, अनीता गोपेश, हीरालाल, हरिश्चंद्र द्विवेदी, वसुंधरा पांडेय, रामाधीन सिंह, आलोक बोध आदि मौजूद रहे। संचालन सुधीर सिंह ने किया। आभार राम प्यारे राय ने जताया।

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