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    एक आरटीआइ, 297 जवाब, जानकारी नदारद

    By Edited By:
    Updated: Tue, 28 Jul 2015 07:04 PM (IST)

    हरिशंकर मिश्र, इलाहाबाद : पुलिस महकमे की कुछ जानकारियों के लिए चली सूचना अधिकार की चिट्ठी एक अंतही

    हरिशंकर मिश्र, इलाहाबाद :

    पुलिस महकमे की कुछ जानकारियों के लिए चली सूचना अधिकार की चिट्ठी एक अंतहीन यात्रा बनकर रह गई। जवाब हैं कि द्रौपदी के चीर की तरह लंबे होते जा रहे हैं लेकिन जानकारी के नाम पर कुछ भी हाथ नहीं लग सका। महकमा इस बात के लिए अपनी पीठ जरूर थपथपा सकता है कि उसने एक आरटीआइ का सबसे अधिक जवाब देने का रिकार्ड अपने नाम कर लिया है।

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    कंप्यूटराइजेशन और डिजिटलाइजेशन का ढिंढोरा पीटने वाली पुलिस की कार्यशैली पर यह आरटीआइ कथा एक सवाल है। सात नवंबर, 2014 को आरटीआइ कार्यकर्ता और पूर्व पार्षद आनंद अग्रवाल ने राज्य के प्रमुख सचिव (गृह) से सूचना अधिकार कानून के तहत महिला अपराधियों पर कुछ बिंदुओं के तहत जानकारी मांगी थी। उनका सवाल था कि पिछले पांच सालों में कितनी महिला अपराधियों के खिलाफ मुकदमे दर्ज हुए। इनमें कितनों को भगोड़ा घोषित किया गया। कितनी महिला अपराधियों पर हत्या और अपहरण के केस हैं और कितनों के खिलाफ मुठभेड़ के मुकदमे कायम हुए हैं। इनमें जेल भेजी गई महिला अपराधियों की संख्या कितनी है।

    होना यह चाहिए था कि गृह विभाग अपने स्तर पर यह जानकारियां एकत्रित कराकर पत्र का जवाब दे देता, लेकिन उसने लालफीताशाही की परंपरागत शैली को ही अख्तियार किया। शासन से यह पत्र डीजीपी कार्यालय को भेज दिया गया और वहां से सभी आइजी को भेज दिया गया। फिर नीचे तक की पूरी कड़ी बन गई और थानों व पुलिस चौकियों तक से जानकारियां मांग ली गई। आनंद अग्रवाल बताते हैं कि जानकारी का उद्देश्य प्रदेश स्तर का आंकड़ा हासिल करना था लेकिन जवाब थानों, पुलिस चौकियों और क्षेत्राधिकारी कार्यालयों तक से अलग-अलग आ रहे हैं और उनका क्रम बना हुआ है। अब तक 297 जवाब आ चुके हैं, जिनको मिला दिया जाए तो तीन हजार से अधिक पन्नों का जवाब हो जाएगा। इससे किसी भी निष्कर्ष पर नहीं पहुंचा जा सकता। और अभी कितने जवाब आने बाकी हैं, यह भी तय नहीं किया जा सकता। विडंबना यह है कि इसके खिलाफ अपील भी नहीं की जा सकती क्योंकि जवाब आने का सिलसिला लगातार बना हुआ है।

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    जवाबों में दफन हो गए असली जवाब

    सूचना अधिकार कानून के तहत अनियमितता के दर्जनों मामले प्रकाश में ला चुके आनंद अग्रवाल बताते हैं कि उत्तर प्रदेश में आइएएस और आइपीएस अधिकारियों के खिलाफ दर्ज मामलों के बारे में मांगी गई जानकारियां भी सूचनाओं के बोझ में दफन हो गई। इसके बारे में भी जानकारियां थानों से मांगी गई और उसके भी लगभग दो सौ जवाब आ चुके हैं जिनसे कोई निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता। इससे तो अच्छा था कि सिर्फ इतना ही जवाब दे दिया जाता कि आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं।