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    मंत्र सुनते ही रोग छूमंतर

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    Updated: Tue, 05 Feb 2013 12:14 PM (IST)

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    इलाहाबाद [एल एन त्रिपाठी]। वेदों में शब्द को ब्रह्मा कहा गया है। यह शब्द और उनसे बने मंत्र विशाल शक्ति के परिचायक बताए गए हैं। मंत्रों की यह ताकत असाध्य बताए जा रहे रोगों का इलाज करने में भी सक्षम है। अब आधुनिक विज्ञान भी इसे स्वीकार करने लगा है।

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    यूएसए समेत विश्व के करीब आधा दर्जन विकसित देशों में मंत्र चिकित्सा पर किए जा रहे क्लीनिकल ट्रॉयल के परिणाम तो यही बता रहे हैं। इसमें हृदय रोग से लेकर उच्च रक्तचाप, मधुमेह, स्लिप डिस्क, ब्रेन ट्यूमर समेत तमाम तरह की गंभीर किस्म की बीमारियां शामिल हैं। माना यह जा रहा है कि अगले एकाद वर्ष में मंत्रों से इलाज की यह व्यवस्था वैज्ञानिक परीक्षणों से निकल कर सभी के लिए उपलब्ध हो जाएगी।

    आयुर्वेद को जीवन का विज्ञान कहा गया है। आयुर्वेद में कहा गया है सिद्ध वैद्य मंत्रिका। अर्थात कुशल वैद्य मंत्रों के माध्यम से रोग निवारण करते हैं। ब्रह्मलीन महर्षि महेश योगी ने इसी श्लोक को आधार बनाते हुए इलाज में मंत्रों के इस्तेमाल पर शोध शुरू कराया था। 1958 से अमेरिका समेत विश्व के तमाम देशों में भावातीत ध्यान का प्रचार प्रसार कर रहे महर्षि इससे पूर्व 60-70 के दशक में अपनी ध्यान पद्धति को वैज्ञानिक परीक्षणों के लिए खोल चुके थे। भावातीत ध्यान पर 235 से अधिक स्वतंत्र व सरकारी शोध संस्थानों द्वारा किए गए शोध ने यह साबित कर दिया था कि हृदय रोग, उच्च रक्तचाप, इन्सोमनिया, अस्थमा, माइग्रेन, तनाव, व्याकुलता आदि तमाम तरह के शारीरिक मानसिक बीमारियां इससे दूर हो जाती हैं। इन परीक्षणों ने भारत के परंपरागत ज्ञान को वैज्ञानिक कसौटियों पर खरा साबित कर विश्व भर में इनकी स्वीकार्यता बढ़ाई थी।

    इसी क्रम में महर्षि ने मंत्रों से बीमारियों के इलाज का भी वैज्ञानिकों से परीक्षण कराने को कहा था। इस शोध में शामिल रहे व वर्तमान में महर्षि के विभिन्न संगठनों का जिम्मा संभाल रहे ब्रंाचारी गिरीश के अनुसार वर्ष 1998 से इसकी शुरुआत की गई थी।

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