5 बड़े आम बजट जिन्होंने बदल दी भारत की तस्वीर
आजादी के बाद भारत में पांच ऐसे बजट पेश किए जा चुके हैं जिन्होंने देश की तस्वीर बदलने की कोशिश की है।
नई दिल्ली (बिजनेस डेस्क)। बजट किसी देश की अर्थव्यवस्था की तस्वीर होती है। देश की अर्थव्यवस्था आने वाले समय में किस ओर रुख करेगी यह तस्वीर भी आम बजट से साफ होती है। आजाद भारत में कई केंद्रीय मंत्रियों ने बजट पेश किए हैं, लेकिन उनमे से पांच बजट ऐसे रहे हैं जिन्होंने देश की अर्थव्यवस्था की तस्वीर को पूरी तरह से बदल दिया और आर्थिक विकास दर का नया अध्याय शुरू किया।
1. वित्त वर्ष 1957 का कृष्णामाचारी-कलडोर बजट:
यह बजट कांग्रेस की सरकार में तात्कालीन वित्त मंत्री टी टी कृष्णामाचारी ने पेश किया था। 15 मई,1957 को पेश किया गया यह बजट कई मायनों में खास था। इस बजट में कुछ बड़े फैसले लिए गए जिसके सकारात्मक और नकारात्मक दोनों असर देखे गए।
इस बजट के जरिए आयात के लिए लाइसेंस जरूरी कर दिया गया। नॉन-कोर प्रोजेक्ट्स के लिए बजट का आवंटन वापस ले लिया गया। निर्यातकों को सुरक्षा देने के नजरिए से एक्सपोर्ट रिस्क इन्श्योरेंस कॉरपोरेशन के गठन किया गया। साथ ही इस बजट के जरिए वेल्थ टैक्स लगाया गया। इतना ही नहीं इस बजट में एक्साइज ड्यूटी को 400 फीसदी तक बढ़ाया गया। एक्टिव इनकम (सैलरी और बिजनेस)और पैसिव इनकम(ब्याज और भाड़ा) में फर्क करने की कोशिश की गई साथ ही आयकर को भी बढ़ाया गया। इस बजट के जरिए आयात पर लगाई गई बंदिशों और ऊंची कर दरों के कारण कई तरह की मुश्किलें पेश आईं। सीधे तौर पर कहें तो बाहरी कर्ज लेना मुश्किल हो गया।
2.वित्त वर्ष 1973 का द ब्लैक बजट:
यह आम बजट वित्त मंत्री यशवंतराव बी चव्हाण ने पेश किया था। 28 फरवरी, 1973 को पेश किए गए इस बजट में कई खास बातें थीं।
कोयले की खदानों का राष्ट्रीयकरण:
इस बजट के माध्यम से सामान्य बीमा कंपनियों, भारतीय कॉपर कॉरपोरेशन और कोल माइन्स के राष्ट्रीयकरण के लिए 56 करोड़ रुपए मुहैया कराए गए। वित्त वर्ष 1973-74 के लिए बजट में अनुमानित घाटा 550 करोड़ रुपए का रहा था। लेकिन ऐसा कहा जाता है कि कोयले की खदानों का राष्ट्रीयकरण किए जाने से व्यापक असर पड़ा। कोयले पर पूरा अधिकार सरकार का हो गया और इससे बाजार में प्रतिस्पर्धा के लिए कोई जगह नहीं बची। आपको बता दें कि भारत पिछले 40 सालों से कोयला आयात कर रहा है।
3.वित्त वर्ष 1987 का गांधी बजट:
वित्त वर्ष 1987 के केंद्रीय बजट को पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने पेश किया था। 28 फरवरी, 1987 को पेश किए गए इस बजट में न्यूनतम निगम कर के संबंध में एक अहम फैसला हुआ। इस बजट में न्यूनतम निगम कर, जिसे आज एमएटी (मैट) या मिनिमम अल्टरनेट टैक्स के नाम से जाना जाता है, लाया गया। इसका मुख्य उद्देश्य उन कंपनियों को टैक्स की सीमा में लाना था, जो भारी मुनाफा कमाती थीं, लेकिन वो सरकार को टैक्स देने से बचती थीं। यह आज सरकार की आय का एक बड़ा जरिया बन चुका है।
4.पी चिदंबरम ने वित्त वर्ष 1997 में पेश किया ड्रीम बजट:
वित्त मंत्री पी चिदंबरम की ओर से पेश किए गए इस बजट को ड्रीम बजट कहा जाता है। 28 फरवरी, 1997 को पेश किए गए इस बजट में लोगों और कंपनियों के लिए टैक्स प्रावधान में बदलाव किया गया। कंपनियों को पहले से भुगते गए एमएटी को आने वाले सालों में कर देनदारियों में समायोजित करने की छूट दे दी गई। वॉलंटियरी डिसक्लोजर ऑफ इनकम स्कीम (वीडीआईएस) लॉन्च की गई, ताकि काले धन को बाहर लाया जा सके। इस योजना का व्यापक असर देखने को मिला। लोगों ने अपनी आय का खुलासा करना शुरू किया। साल 1997-98 के दौरान पर्सनल इनकम टैक्स से सरकार को 18,700 करोड़ रुपए मिले। वहीं अप्रैल 2010 से जनवरी 2011 के बीच यह आय एक लाख करोड़ रुपए से ऊपर पहुंच गई। लोगों के हाथों में पैसा आया तो बाजार में मांग तेज हुई जिससे औद्योगिक विकास को काफी बल मिला।
5.वित्त वर्ष 2005 में पी चिदंबरम ने पेश किया फ्लैगशिप प्रोग्राम:
वित्त वर्ष 2005 के बजट में पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने एक खास योजना की शुरुआत की। 28 फरवरी, 2005 को आम बजट पेश करते हुए पी चिदंबरम ने पहली बार राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार योजना (नरेगा) पेश किया। इस योजना के नाम पर कांग्रेस आज तक वाहवाही लूटती है। हालांकि इस योजना से कई नुकसान और फायदे रहे। जहां एक ओर ग्रामीण क्षेत्र में रोजगार और आमदनी का जरिया खुला और देश में बड़े पैमाने पर ब्यूरोक्रेसी को प्रोत्सााहन मिला, तो वहीं दूसरी तरफ पंचायत, गांव और जिला स्तरर पर नौकरशाहों का जाल सा बिछ गया।
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