सरकारी बैंकों के लिए खुलेगी खजाने की झोली
कर्ज की दलदल और ऐतिहासिक तौर पर कम हो रहे मुनाफों के दलदल में फंसे बैंकों के लिए वित्तमंत्री अरुण जेटली की पोटली में कुछ विशेष इंतजाम हो सकता है। सोमवार को पेश होने वाले आम बजट 2016-17 में सरकारी बैंकों के लिए कई अहम ऐलान कर सकते हैं।
नई दिल्ली। कर्ज की दलदल और ऐतिहासिक तौर पर कम हो रहे मुनाफों के दलदल में फंसे बैंकों के लिए वित्तमंत्री अरुण जेटली की पोटली में कुछ विशेष इंतजाम हो सकता है। सोमवार को पेश होने वाले आम बजट 2016-17 में सरकारी बैंकों के लिए कई अहम ऐलान कर सकते हैं। इसके तहत एक तो बैंकों को सरकारी खजाने से ज्यादा मदद देने की व्यवस्था की जाएगी वही इनमें सरकारी हिस्सेदारी की रणनीतिक बिक्री की नीति का भी ऐलान किया जा सकता है।
सरकारी बैंकों में चल रही यथास्थिति को बदलने के लिए वित्त मंत्री ने एक विस्तृत नीति तैयार की है। बजट में इसकी घोषणा के बाद इन्हें लागू करने का खाका भी तैयार कर लिया गया है। बजट पेश करने के अगले कुछ दिनों के भीतर ही बैंकों के साथ बजटीय घोषणाओं को लागू करने के लिए 'ज्ञानसंगम' नाम से बैठक की जाएगी। पहली ज्ञान संगम बैठक एक जनवरी, 2015 को पुणे में की गई थी जिसे पीएम नरेंद्र मोदी ने संबोधित किया था। इस बैठक में मिले सुझावों पर अगस्त, 2015 में सरकार ने बैंकों में सुधार के लिए कई कदम उठाये थे। लेकिन इन कदमों का असर सरकारी बैंकों पर खास नहीं दिखाई दे रहा है।
वित्त मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कुछ दिन पहले यह स्वीकार किया था कि बैंकों को फंसे कर्जे की स्थिति हाथ से फिसलती जा रही है। फंसे कर्जे की वजह से बैंकों को काफी राशि मुनाफे से निकाल कर समायोजन करना पड़ रहा है। अधिकांश बैंक तरलता (राशि) की कमी से जूझ रहे हैं। वर्ष 2009-10 से लेकर चालू वित्त वर्ष के बीच सरकार इन बैंकों को 1.02 लाख करोड़ रुपये खजाने से दे चुकी है लेकिन इनकी स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ है। बैंकों को अगले पांच वर्षो के भीतर सरकारी खजाने से 1.80 लाख करोड़ रुपये देने पड़ सकते हैं। इसके अलावा इन बैंकों को अपनी तरफ से लगभग इतनी ही राशि बाजार से जुटानी होगी। इन सभी मुद्दों को एक नीति के शक्ल में पेश किया जा सकता है। सरकार पहले ही कह चुकी है कि वह हर सरकारी बैंक में अपनी हिस्सेदारी घटा कर 51 फीसद करने को तैयार है। माना जा रहा है कि वित्त मंत्री इस बारे में विधिवत घोषणा करेंगे और इसके लिए किन कानूनों में बदलाव की जरुरत है, इसका ब्यौरा देंगे।
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