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    किसी अजूबे से कम नहीं है कांगड़ा घाटी

    By Neeraj Kumar AzadEdited By:
    Updated: Sun, 27 Sep 2015 01:01 PM (IST)

    हिमाचल प्रदेश की कांगड़ा घाटी किसी अजूबे से कम नहीं है। यह एक ऐसी घाटी है, जहां हर तरह के पर्यटक के लिए उसकी इच्छा अनुसार पर्यटन स्थल मौजूद हैं।

    किसी अजूबे से कम नहीं है कांगड़ा घाटी

    मुनीष दीक्षित, धर्मशाला : हिमाचल प्रदेश की कांगड़ा घाटी किसी अजूबे से कम नहीं है। यह एक ऐसी घाटी है, जहां हर तरह के पर्यटक के लिए उसकी इच्छा अनुसार पर्यटन स्थल मौजूद हैं। धार्मिक पर्यटन के लिए इस घाटी में जहां कई मंदिर हैं, तो साहसिक पर्यटन के लिए ट्रैकिंग, हवाई रोमांचक खेलों से लेकर वाटर स्पोट्र्स के अवसर। प्रकृति के बीच रहने वाले पर्यटकों के लिए कई पर्यटक स्थल। धरोहर पर्यटन को देखने की इच्छा रखने वाले पर्यटकों के लिए कई ऐतिहासिक किले व धरोहर स्थल। कांगड़ा घाटी को आज भी पर्यटन के क्षेत्र में बढऩे के वे अवसर नहीं मिल पाए है, जो मिलने चाहिए थे। आज भी इस घाटी के कई पर्यटन स्थल पर्यटकों की नजर से अछूते हैं, तो कुछ सुविधाओं की कमी के कारण पर्यटकों अपने पास नहीं बुला पा रहे हैं।
    जिला कांगड़ा के मुख्यालय धर्मशाला से महज 10 किलोमीटर की दूरी पर विश्व प्रसिद्ध पर्यटन स्थल मैक्लोडगंज है। तिब्बती धर्मगुरु दलाईलामा की मौजूदगी से यह स्थान विदेशी पर्यटकों के लिए भी आकर्षण का केंद्र है। इसी स्थान पर निर्वासित तिब्बती सरकार का मुख्यालय भी है। इसके साथ ही मिनी इजरायल के नाम से विख्यात धर्मकोट, भागसूनाग व नड्डी भी बेहतरीन पर्यटन स्थल हैं। यहां से 10 किलोमीटर की पैदल दूरी पर त्रियुंड नामक स्थान है, जो ट्रैङ्क्षकग के शौकीन पर्यटकों के लिए किसी स्वर्ग से कम नहीं है। यहां हर हजारों पर्यटक पहुंचते हैं।
    धार्मिक पर्यटकों के आकर्षण के केंद्र
    जिला कांगड़ा में धार्मिक पर्यटन की अपार संभावना है। यहां कई शक्तितपीठ व प्रसिद्ध मंदिर हैं। इनमें मां चामुंडा देवी, मां बज्रेश्वरी देवी, मां ज्वालाजी के मंदिर प्रसिद्ध हैं। इसके अलावा बेहद पुरानी शैली में निर्मित बैजनाथ शिव मंदिर, नूरपुर में भगवान श्री कृष्ण व मीरा का मंदिर, आशापुरी मंदिर, महाकाल मंदिर व मां बगलामुखी का मंदिर भी आकर्षण का केंद्र है। इसके अलावा भी यहां कई मंदिर मौजूद हैं। बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए भी यहां दलाईलामा टेंपल, नोरबुलिंगा, शेराबिलिंग, खंपागार जैसे प्रसिद्ध बौद्ध मठ स्थापित है।
    धरोहर पर्यटन का भी खजाना है कांगड़ा
    कांगड़ा में धरोहर पर्यटन की भी अपार संभावना है। कांगड़ा शहर से महज तीन किलोमीटर की दूरी पर स्थित ऐतिहासिक किला, नूरपुर का किला, बैजनाथ शिव मंदिर व एक ही चट्टान को काटकर बनाया गया मसरूर मंदिर, मैक्लोडगंज की चर्च धरोहर पर्यटन के मुख्य केंद्र हैं।
    साहिसक पर्यटक के लिए स्वर्ग है यहां
    स्थल, जल व हवा में रोमांच की तलाश किसी भी पर्यटक की यहीं पूरी होती है। कांगड़ा के बैजनाथ में दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी पैराग्लाइडिंग टेक ऑफ साइट मौजूद है। जहां इस बार पैराग्लाइडिंग वर्ल्ड कप का आयोजन होने जा रहा है। यहां से पर्यटक हवावाजी के खेल पैराग्लाइङ्क्षडग का खूब आनंद उठा सकते हैं। रोमांच का ट्रैकिंग के जरिए आनंद लेने वाले पर्यटकों के लिए इस घाटी में कई ट्रैकिंग रूट मौजूद हैं। जहां पर्यटन विभाग द्वारा पंजीकृत गाइडों व ट्रैवल एजेंसियों की मदद से पहुंचा जा सकता है। जबकि जल रोमांचक खेलों के लिए देहरा से लेकर तलवाड़ा तक फैली महाराणा प्रताप सागर झील यानी पौंग बांध आकर्षण का केंद्र है। पौंग बांध में स्थित वाटर स्पोर्ट्स सेंटर की मदद से यहां वाटर स्पोर्ट्स का लुत्फ उठाया जा सकता है। इसी झील में हर साल लाखों की संख्या में आने वाले विदेशी पङ्क्षरदे भी आकर्षण का केंद्र है।
    यह भी है दर्शनीय स्थल
    धर्मशाला में बना अंतरराष्टीय क्रिकेट स्टेडियम, पालमपुर का सौरभ वन बिहार, बीड़, छोटा व बड़ाभंगाल घाटी, कांगड़ा कला संग्रहालय, डल झील, भागसूनाग वाटर फॉल भी पर्यटकों के लिए दर्शनीय स्थल हैं।
    कैसे पहुंचे कांगड़ा घाटी
    कांगड़ा घाटी के मुख्यालय धर्मशाला तक आने के लिए दिल्ली, पठानकोट व चंडीगढ़ से सीधी बस सेवा उपलब्ध है। इसके अलावा यह घाटी पठानकोट-जोगेंद्रनगर नैरोगेज रेलमार्ग से भी जुड़ी हुई है। इस छोटी ट्रेन का भी पर्यटक आनंद उठा सकते है। यहां का ब्राडगेज रेलमार्ग का नजदीकी स्टेशन पठानकोट है। जबकि हवाई सेवा के लिए धर्मशाला से महज 14 किमी की दूरी पर गगल में एयरपोर्ट स्थित है। यहां से दिल्ली के लिए रोजाना दो हवाई उड़ाने हैं।

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