इस तरह करें नव वर्ष का स्वागत खुशियां आपकेे कदम चूूमेगी
पंछी की तरह स्वतंत्रता आप स्वयं में महसूस करें। स्वतंत्र हो जाएं। थोडे़ समय के लिए शांत होकर बैठ जाएं और स्वयं को संतुष्ट महसूस करें।
नए विचारों का करें स्वागत, पुराने की विदाई तो नए का स्वागत। नए वर्ष के आगमन। नव वर्ष का स्वागत हम किस तरह करें, बता रहे हैं अलग-अलग अध्यात्मिक गुरु..नव वर्ष पुराने वर्ष को विदा देने के लिए द्वार तक आ पहुंचा है। ठीक उसी प्रकार नए विचार पुराने विचारों को विदा करने के लिए अग्रसर हो रहे हैं। यह सच है कि नए की नीव पुराने में ही पड़ी होती है। बीत चुके समय में यदि कोई बुरी यादें या कोई नकारात्मक विचार मन-मस्तिष्क को परेशान कर रहे हैं, तो 'बीत गई बात गई' की तर्ज पर उसे भूलने की कोशिश करें। तभी नव वर्ष में नए और सकारात्मक विचारों का आगाज हो पाएगा।
हर व्यक्तिमें संस्कारों की पड़े नीव- परमहंस स्वामी अड़गड़ानंद
भारत विभिन्न धर्मो का देश है। यहां अलग-अलग धर्मावलंबियों द्वारा नव वर्ष की शुरुआत अलग-अलग समय पर होती है। वास्तव में इन सबसे हटकर विचार करने पर कहा जा सकता है कि प्राणी मात्र जब अपने अंदर विद्यमान अहंकार पर विजय प्राप्त कर ले और अविद्या से पार पाकर विद्या का ज्ञान हासिल कर ले, तभी उसके जीवन के नववर्ष का प्रारंभ होना मानना चाहिए।
विश्व की सभी समस्याओं के समाधान का एकमात्र रास्ता है हर बच्चे, बड़े, बूढ़े के हाथ में 'यथार्थ गीता' पहुंच जाए और वह उसका अध्ययन करने के बाद उसमें अपने प्रश्नों का समाधान प्राप्त कर ले। उसमें संस्कारों की नीव पड़ जाए, इससे सभी धमरें एवं संप्रदायों के बीच की दूरी अपने आप समाप्त हो जाएगी। साथ ही विश्व को एक नए वर्ष के शुभारंभ का निर्विवाद दिन मिल जाएगा। नए वर्ष में लोगों को सच्चे गुरु की शरण में पहुंचने की तलाश शुरू करनी चाहिए। अब तक जो इस संसार में भटक रहे हैं, उन्हें सही रास्ता सच्चे गुरु, सच्चे संत की शरण में पहुंचने के बाद ही मिल पाएगा। संसार में न कभी कुछ नया हुआ है और न कभी कुछ पुराना होगा। केवल काल-परिवर्तन के साथ ऐसा लगता है कि यहां कुछ नया हुआ है, जबकि सब पूर्व से ही जुड़ा रहता है। केवल उसके पास तक पहुंचने के लिए सद्गुरु के पास तक प्राणी को पहुंचना होगा। जैसे दिन निकलते ही चंद्रमा के प्रकाश का महत्व नहीं रह जाता है, उसी भांति सच्चा गुरु या संत मिल जाने पर अंधविश्वास की जकड़न समाप्त हो जाती है। गीता के उपदेश में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है कि जो भी करता हूं, मैं करता हूं। मुझ पर विश्वास करो, कर्म करो और उसके फल में क्या मिलना है, यह मुझ पर छोड़ दो। अहंकार, मोह, माया जैसी आसुरी प्रवृत्तियों को जब तक नहीं त्यागोगे, संसार से सद्गति की आशा निरर्थक होगी। नए साल की शुरुआत मन को संवारने से करें। भगवान श्रीकृष्ण के श्रीमुख से निकली गीता को जानने से करें। यथार्थ गीता को सर्वमान्य ग्रंथ बनाने के लिए संसार को नए वर्ष में परमात्मा शक्ति प्रदान करें, यही यथार्थ होगा।
जीवन को लें उत्सव की तरह- श्री श्री रविशंकर
मुस्कुराहट के साथ करें नव वर्ष का स्वागत। जैसे ही हम कैलेंडर बदलते हैं, वैसे ही अतीत के पन्ने भी हमारे दिमाग में पलटने लगते हैं। अक्सर हमारी डायरियां समृतियों से भरी होती हैं। कभी भी अपने भविष्य को अतीत के साथ गड्ड-मड्ड नहीं करना चाहिए। वास्तव में अतीत की कुछ बातों को छोड़कर कुछ सीखेंगे, तभी आप स्वतंत्र हो पाएंगे।
यदि दिमाग लोभ, घृणा, ईष्र्या जैसी नकारात्मक बातों से घिरा रहेगा, तो निश्चित ही जीवन में आप खुश और शांत नहीं रह पाएंगे। इसलिए पहले तो यह समझें कि जो भी ऋ णात्मक विचार हैं, वे सब अतीत की देन हैं। इसलिए अतीत को छोड़ दें। यदि आप अतीत को नहीं छोड़ पा रहे हैं, तो आपका भविष्य निश्चित रूप से दुखमय होगा। यह नया साल आपको जगा रहा है कि जिनके साथ अच्छे संबंध नहीं हैं, उनके साथ आप नए संबधों की शुरुआत करें। संकल्प लें कि अतीत को छोड़कर आगे बढेंगे।
आप एक पंछी की तरह हैं, यह स्वतंत्रता आप स्वयं में महसूस करें। यदि आप स्वयं को किन्हीं चीजों या सिद्धांतों से बांधते रहते हैं, तो आप स्वयं को बंधन में ही पाएंगे। इसलिए स्वतंत्र हो जाएं। थोडे़ समय के लिए शांत होकर बैठ जाएं और स्वयं को संतुष्ट महसूस करें। कुछ समय ध्यान, मंत्र ध्यान और सत्संग में गुजारें। आप महसूस करेंगे कि आप अधिक सशक्त हो रहे हैं। सहज रहें, प्रेम में रहें, सेवा करें और जीवन को उत्सव की तरह लें। प्रत्येक वर्ष जब भी नया साल आए, तो एक-दूसरे से मिलकर यह संकल्प लें और दुआ करें कि इस धरती पर शांति और समृद्धि आए।
छोटे परिवर्तन से करें शुरुआत- मां अमृतानंदमयी
जब किसी बच्चे का जन्म होता है, तो परिवार में हर सदस्य खुश होता है। हर व्यक्ति बहुत ही बेसब्री के साथ बच्चे को खड़ा होने और चलने की कोशिश करते हुए देखने का इंतजार करता रहता है। इसके बाद बच्चे के बोलने और उसके पल-पल बढ़ने का इंतजार किया जाता है। बच्चे के विकास की प्रक्रिया के दौरान न सिर्फ माता-पिता, बल्कि परिवार के हर सदस्य बच्चे के गिरने, साफ-सफाई के प्रति सतर्क व सावधान रहते हैं। इसी तरह हमें नए साल का स्वागत करना चाहिए-खुशी और सावधानी के साथ। इसके हर पल को जीना चाहिए।
नए साल के आगमन के साथ हम इस आशा और उम्मीद से भर जाते हैं कि भविष्य के गर्भ में अच्छे समय की सौगात है। चीजों का बदलाव बेहतरी के लिए होगा। हालांकि हमेशा हमारी उम्मीद के अनुसार चीजें नहीं होती हैं। हमें बाधाओं और मुश्किलों से भी पार पाना होता है। अध्यात्म हमें हर बाधा का सामना मुस्कुराते हुए करना सिखाता है। जो व्यक्ति तैरना जानता है, उसके लिए समुद्र की लहरें रमणीय होती हैं। जो लोग तैरना नहीं जानते हैं, उनके लिए समुद्र और उसकी लहरें भयानक प्रतीत होती हैं। उनके मन में डूबने की आशंका भी बनी रहती है। यदि हमारे पास समुचित ज्ञान एवं सही व्यवहार हो तो हमें जीवन के उतार-चढ़ाव का सामना करने में मदद मिलती है।
जो व्यक्ति सफल होने पर भी अहंकारी नहीं बनते, दूसरों को सुख देने में खुशी महसूस होती है तथा जो आलोचन के बावजूद विनम्र बना रहे तो ऐसा व्यक्ति कभी विफल नहीं हो सकता है। विपरीत परिस्थितियों में भी वह अप्रभावित रहता है। किसी भी यात्रा की शुरुआत छोटे कदमों से ही होती है। हममें से प्रत्येक को नए साल का स्वागत करने के लिए स्वयं में छोटे-मोटे परिवर्तन लाने की शुरुआत करनी चाहिए। यदि हममंे से हर व्यक्ति ऐसा करने लगे, तो इस सामूहिक प्रयास से एक नए युग की शुरुआत होगी। हम स्वयं को परमात्मा के लिए समर्पित कर दें और एकसाथ मिलकर किसी एक लक्ष्य की प्राप्ति के लिए आगे बढ़ें।
मिलकर बनाएं स्वच्छ देश-समाज- सुधांशु जी महाराज
संपूर्ण संसार में हर पल, हर क्षण नवीनता का संचार हो रहा है। रात्रि का बीत जाना और सूर्य का उदय होना नया है। यही नवीनता का संदेश है। ईश्वर की कृपा से हम नूतन वर्ष में प्रवेश कर रहे हैं। नए साल के अवसर पर लोग अपनी बुरी यादों को त्याग दें। प्रसन्नतापूर्वक रहते हुए प्रत्येक व्यक्ति से प्रेम करने की शुरुआत कर दें। तभी ईश्वर उनकी झोली सुख-शांति से परिपूर्ण करेंगे। घर-परिवार में खुशियों के फूल खिलेंगे और जीवन में सद्ज्ञान का नवप्रभात उदित होगा। नव-वर्ष के अवसर पर मैं संपूर्ण विश्व में सुख-शांति की मंगलकामना करते हुए ईश्वर से प्रार्थना करता हूं कि राष्ट्र की उन्नति-प्रगति हो, यश-कीर्ति बढ़े। जन-जन में स्वच्छता, शुचिता का प्रसार हो, यश-कीर्ति बढ़े, जन-जन में स्वच्छता, शुचिता का प्रसार हो और हमारा देश भारत विश्व सिरमौर 'विश्व गुरु' बने।
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