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    प्रार्थना के लिए भाव ही है जरूरी

    By Preeti jhaEdited By:
    Updated: Tue, 08 Dec 2015 11:07 AM (IST)

    मूर्ख या समझदार, अमीर या गरीब हर कोई प्रार्थना कर सकता है। इससे अभिप्राय यह नहीं है कि आप मंत्रों का उच्चारण कर रहे हैं, लेकिन भाव कैसा है इससे है...! ...और पढ़ें

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    मूर्ख या समझदार, अमीर या गरीब हर कोई प्रार्थना कर सकता है। इससे अभिप्राय यह नहीं है कि आप मंत्रों का

    उच्चारण कर रहे हैं, लेकिन भाव कैसा है इससे है...!

    लोगों द्वारा यह कहा जाता है कि किसी सफल पुरुष के पीछे एक महिला होती है। पर मैंने इसमें थोड़ा सा बदलाव किया है-प्रत्येक सफलता के पीछे दिव्यता होती है जो यह कहती है, च्च्मैं तुम्हारे पीछे हूंज्ज्। जब आप प्रार्थन करते हैं या करूणमयी तरीके से दिव्यता को पुकारते हैं तो वह स्वयं आपमें प्रकट होती है।

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    प्रार्थना आपके जीवन को बेहतर बनाने का एक महत्वपूर्ण साधना है। जब आप किसी कार्य को कर सकने में स्वयं को सक्षम पाते हैं तो आप उन्हें कीजिए। पर जब आप किसी कार्य को कर सकने में सक्षम नहीं पाते तो उसके लिए प्रार्थना कीजिए। जब आप यह सोचते हैं कि मुश्किल बहुत है आप उसे संभाल नहीं पा रहे तो प्रार्थना एक चमत्कार के समान कार्य करती है।

    आप जो भी करो, पर यह जान लो कि अंतिम निर्णय उस परम शक्ति का ही होगा जिसका आप अपनी प्रार्थना द्वारा आह्वान करते हैं। प्रार्थना के लिए आपमें किसी खास योग्यता की भी आवश्यकता नहीं होती। मूर्ख या समझदार, अमीर या गरीब कोई भी प्रार्थना कर सकता है। प्रार्थना से अभिप्राय यह नहीं है कि आप बैठ कर किंन्हीं

    मंत्रों को उच्चारण कर रहे हैं। प्रार्थना का मतलब शांत, सौम्य व आध्यात्मिक स्थिति है।

    इ स िल ए व्ौ िद क परंपरा में प्रार्थना से पूर्व व बाद में ध्यान किया जाता है। जब मन केंद्रित होता है तब

    प्रार्थना बहुत ही शक्तिशाली होती है। प्रार्थना आत्मा की पुकार है। अत: आप किससे प्रार्थना कर रहे हैं यह उतना महत्वपूर्ण नहीं है जितना यह कि क्या आपकी प्रार्थना आपकी आत्मा की गहराई से है या नहीं। हांलाकि धर्म द्वारा प्रार्थना को विभिन्न शब्दों में ढाला गया है, अनेक प्राकर के प्रतीकों व अनुष्ठानों द्वारा इसे विभिन्न प्रकार से किया जाता रहा है। प्रार्थना भावनाओं के सूक्ष्म स्तर पर होती है, क्योंकि वास्तव में हमारी भावनाएं ही शब्दों व धर्म को पार कर दिव्यता तक हमारी प्रार्थना पहुंचाती हैं। स्वयं प्रार्थना में ही बदलाव लाने की असीम शक्ति है।

    जब आप प्रार्थना करते हैं तो आपका पूर्ण समग्रता से शामिल होना आवश्यक है। यदि प्रार्थना के समय दीमाग अन्य किसी कार्य में उलझा रहेगा या मग्न रहेगा तो वह प्रार्थना नहीं होगी बल्कि उसका दिखावा होगा। अत: जब हम दर्द में होते हैं तो प्रार्थना में हमारी भागीदारी अधिक होती है। इसलिए आमतौर पर दुख के समय ही लोग प्रार्थना पूरी तल्लीनता से करते हैं।

    आप प्रार्थना जब करते हैं जब आप स्वयं को आभारी महसूस करते हैं और अपनी प्रार्थना के माध्यम से आप धन्यवाद देते हैं वही दूसरी अवस्था वह है जब आप स्वयं को नि:सहाय महसूस करते हैं। दोनों ही स्थितियों में आपको आपकी प्रार्थना का उत्तर ज़रूर मिलेगा।